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राजनीति

राममंदिर भूमि विवाद में मध्यस्थता नहीं चाहते हिंदू पक्षकार

Prema Negi
1 Oct 2019 10:36 AM IST
राममंदिर भूमि विवाद में मध्यस्थता नहीं चाहते हिंदू पक्षकार
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राममंदिर मामले में हिंदू पक्ष ने कल 30 सितंबर को हुई सुनवाई में कोर्ट में साफ कर दिया कि उन्हें भूमि विवाद में कोर्ट से बाहर कोई मध्यस्थता नहीं है मंजूर, इससे विवाद के मध्यस्थता से हल होने की कोशिशों को लगा है बड़ा झटका...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

योध्या भूमि विवाद में उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई के 34वें दिन सोमवार 30 सितंबर को इस मामले में फिर एक नया मोड़ आ गया है। सोमवार को सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष ने साफ कहा कि उन्हें मामले पर कोई मध्यस्थता (कोर्ट के बाहर समझौता) नहीं करनी है। रामलला विराजमान की तरफ से पेश वकील के बयान के बाद मध्यस्थता की कोशिशों को बड़ा झटका लगा है।

हीं मुस्लिम पक्षकार के वकील शेखर नाफडे ने दलील दी कि 1885 के मुकदमे और अभी के मुकदमे एक जैसे ही हैं, दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि 1885 में विवादित स्थल के एक जगह पर दावा किया गया था और अब पूरे हिस्से में दावा किया गया है। अब हिंदू अपने दावे के दायरे को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। नाफडे ने कहा कि सिविल लॉ के तहत उसी विवाद को हिंदू पक्षकार दोबारा नहीं उठा सकते। ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि क्या इस तरह से एक ही वाद को बार-बार उठाया जा सकता है जबकि वाद पर 1885 में फैसला हो चुका है।

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नाफडे ने कहा कि 1885 में महंत रघुबर दास ने वाद दायर किया था। उन्होंने हिंदुओं का प्रतिनिधित्व किया था या नहीं किया था, यह बड़ा सवाल उठता है। इस पर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि लेकिन जब दोनों केस के विषय को देखा जाए तो दोनों के कॉन्टेंट में अंतर तो दिख रहा है, उस अंतर को देखा जा सकता है। नाफडे ने कहा कि रेस ज्यूडीकाटा नियम (एक ही तरह के विषय पर दो बार वाद दायर नहीं किया जा सकता) को हाईकोर्ट ने नजरअंदाज कर दिया था।

नाफडे ने कहा कि जहां तक 1885 की बात है तो उस वक्त विवादित इलाके में हिंदुओं का प्रवेश सिर्फ बाहरी आंगन तक सीमित था। बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरा और सीता की रसोई तक हिंदुओं की पहुंच हुआ करती थी। राम चबूतरा बाहरी आंगन में स्थित था और हिंदू उसी राम चबूतरे को जन्मस्थान कहते थे। बाकी तमाम जगह मस्जिद की थी और मुस्लिम मस्जिद में नमाज पढ़ते थे।

स्जिद की जगह के संदर्भ में कोई दावा नहीं था। राम चबूतरे पर छोटा सा मंदिर था। बाकी पूरा इलाका मस्जिद का था और उस पर दूसरे पक्षकार का दावा नहीं था। वह उस एरिया को मस्जिद के तौर पर स्वीकार करते थे। इस बात को साबित करने की जरूरत नहीं है। ज्यूडिशियल कमिश्नर की रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र है। अब हिंदू अपने दावे के क्षेत्र को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं।

नाफडे ने कहा कि मुस्लिम पक्षकारों के लिए यह ओपन है कि वह महंत के लोकस (पक्षकार होने पर) पर सवाल करें। जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि निर्मोही अखाड़ा या फिर हिंदू पक्षकारों ने ऐसा दावा नहीं किया है कि उनका प्रतिनिधित्व रघुबर दास कर रहे थे। महंत दास ने भी ये दावा नहीं किया था कि वह पूरे हिंदुओं का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। नाफडे ने कहा कि लेकिन महंत हिंदुओं के ग्रुप हैं और इस तरह वह प्रतिनिधित्व करते हैं। महंत जब कहते हैं कि वह पूजा स्थान के महंत हैं तो वह पूजा स्थल व मठ का न्यायिक प्रतिनिधि हो जाते हैं।

मुस्लिम पक्षकार के एक अन्य वकील मोहम्मद निजाम पाशा ने कहा कि निर्मोही का मतलब बिना किसी मोह का होना है। ऐसे में निर्मोही को तो किसी भी संपत्ति से कोई मोह होना ही नहीं चाहिए, लेकिन फिर भी वह पजेशन का दावा कर रहे हैं। हमारा कहना है कि हमें धार्मिक पहलू पर बहस के बजाय कानूनी पहलू को देखना चाहिए। किसी ढांचे के बारे में परीक्षण करते वक्त कि वह ढांचा मस्जिद है या नहीं उसे शरियत कानून के बदले उस वक्त के मौजूदा कानून के हिसाब से परखना चाहिए। हम इस बात का अनुमान नहीं लगा सकते कि बाबर के समय शरिया कानून होगा और तब कहें कि बाबर ने कानून का पालन नहीं किया। मस्जिद में वजू का होना जरूरी नहीं है। अगर है तो ज्यादा धर्मपरायणता है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह ढांचा मस्जिद नहीं है, क्योंकि वहां वजू नहीं होता था।

मुस्लिम पक्षकारों की दलील पूरी होने के बाद हिंदू पक्षकारों की ओर से परासरण ने जवाब शुरू किया। परासरण ने कहा कि हिन्दू मान्यताओं में परम ईश्वर तो एक ही है लेकिन लोग अलग-अलग रूप, आकार और मंदिरों में उसकी अलग-अलग तरह से पूजा-उपासना करते हैं। हिन्दू उपासना स्थलों के आकार-प्रकार और वास्तु विन्यास अलग-अलग हैं। कहीं मूर्तियों के साथ तो कहीं बिना मूर्तियों के, कहीं साकार तो कहीं निराकार रूप में उपासना की पद्धति प्रचलित है। बस इन विविधताओं के बीच समानता यही है कि लोग दिव्यता या देवता की पूजा करते हैं। मंदिरों के वास्तु और पूजा पद्धति भी अलग-अलग है। आप एक खांचे या फ्रेम में हिन्दू मंदिरों को नहीं बांध सकते।

स्टिस बोबड़े ने परासरण से कहा कि आप न्यायिक व्यक्तित्व को साबित करने के ‘देवत्व' पर जोर क्यों दे रहे हैं? इसकी आवश्यकता नहीं है। अगर ये कोई वस्तु है, या उत्तराधिकार का मामला है तो न्यायिक व्यक्तित्व की आवश्यकता है। हम देवत्व में क्यों आ रहे हैं? परासरण ने कहा कि हमें देवता के बारे में ध्यान करने को कोई आधार चाहिए, ताकि हम आध्यात्मिक दिव्यता की ओर जा सकें। परासरण ने कहा कि हिंदू धर्म में ईश्वर एक होता है और सुप्रीम होता है। अलग रूप में अलग प्रकार से अलग-अलग मंदिरों में पूजा होती है।

राजीव धवन ने परासरण की दलील पर विरोध किया। उन्होंने कहा ये जो उदाहरण दे रहे हैं इसका इस केस से कोई लेना-देना नहीं है। इन्होंने हमारे उठाए सवाल का जवाब नहीं दिया। परासरण ने कहा कि धवन ने हमारे सवालों पर चार दिन जवाब दिया, लेकिन मेरे बोलने पर सवाल खड़ा कर रहे हैं। मैं जो भी बोल रहा हूं उसका मतलब है।

संविधान पीठ ने कहा कि गुरुवार 3 अक्तूबर को भोजनावकाश से पहले तक हिन्दू पक्षकार अपनी दलीलें खत्म कर लें। निर्मोही अखाड़ा को गुरुवार दोपहर बाद एक घंटा मिलेगा। मुस्लिम पक्षकार धवन शुक्रवार 4 अक्टूबर की सुबह सूट 4 पर बहस शुरू करेंगे। अब सबको अलग-अलग सुनने का समय नहीं है।

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