रेनू गंगवार की सुरक्षा के लिए दिल्ली पुलिस को दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश
तीन तलाक कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस, कहा 4 हफ्ते में जवाब करे दाखिल
जेपी सिंह की रिपोर्ट
उच्चतम न्यायालय तीन तलाक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। तीन तलाक कानून के खिलाफ दायर तीन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्ते में केंद्र से इस मामले को लेकर जवाब दाखिल करने को कहा है। नए कानून के तहत ऐसा करने वालों को तीन साल तक की जेल की सजा हो सकती है।
मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान संसद के पहले सत्र में पास हुए ट्रिपल तलाक के कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। ट्रिपल तलाक कानून के खिलाफ तीन अलग-अलग याचिकाएं दायर हुई हैं।
शुक्रवार 23 अगस्त को जस्टिस एनवी रमण की कोर्ट ने तीन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद केंद्र को नोटिस दिया, जिसमें 'द मुस्लिम वीमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) एक्ट, 2019 ट्रिपल तलाक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी, जो तत्काल ट्रिपल तलाक को अपराध मानता है।
पीठ ने वरिष्ठ वकील सलमान खुर्शीद से कहा कि हम इसकी जांच करेंगे। खुर्शीद ने पीठ को बताया कि इस प्रथा को दंडनीय अपराध बनाने और तीन साल तक की जेल की सजा सहित कई आयाम हैं, जिनकी उच्चतम न्यायालय द्वारा जांच की जानी जरूरी थी। कोर्ट ने याचिकाओं को स्वीकार करते हुए और सरकार और विभिन्न मंत्रालयों को नोटिस जारी करते हुए दहेज से निपटने वाले कानूनों का उदाहरण दिया।
गुरुवार 22 अगस्त को इस कानून की वैधता को चुनौती देने वाली नयी याचिका जमीयत उलमा-ए-हिन्द ने दायर की है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मुताबिक मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 2019 (अधिनियम) का एकमात्र उद्देश्य मुस्लिम पतियों को सज़ा देना है।
यह भी कहा गया है कि मुस्लिम पतियों के साथ यह भेदभाव वाला कानून है। ट्रिपल तलाक कानून- महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 को केंद्र सरकार द्वारा जुलाई 31, 2019 को पारित किया गया था, इस कानून में इस तरह के तलाक देने वाले मुस्लिम पुरुष के लिए 3 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। महिला अधिकार संरक्षण कानून 2019 बिल के अनुसार एक समय में तीन तलाक देना अपराध है, इसलिए पुलिस बिना वारंट के तीन तलाक देने वाले आरोपी पति को गिरफ्तार कर सकती है।
याचिका में कहा गया है कि इस कानून से संविधान के प्रावधानों का कथित रूप से उल्लंघन होता है। याचिका में मुस्लिम महिला (विवाह में अधिकारों का संरक्षण) कानून, 2019 को अंसवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है.। वकील एजाज मकबूल के माध्यम से दायर इस याचिका में दावा किया गया है कि चूंकि मुस्लिम शौहर द्वारा बीवी को इस तरह से तलाक देने को पहले ही ‘अमान्य और गैरकानूनी’ घोषित किया जा चुका है, इसलिए इस कानून की कोई जरूरत नहीं है।
याचिकाओं में मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अधिनियम 2019 को संविधान का कथित तौर पर उल्लंघन के आधार पर इसे ‘असंवैधानिक’ करार देने की मांग की है। याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 के संदर्भ में केंद्रीय कानून की संवैधानिक वैधता पर सवाल किया गया है। अधिनियम के अधिनियमित होने की आवश्यकता वाली कोई भी परिस्थिति मौजूद नहीं है, क्योंकि इस तरह के तलाक को पहले से ही उच्चतम न्यायालय ने असंवैधानिक घोषित किया था।
इससे इस तरह की तलाक गैर कानूनी तलाक की श्रेणी में थी और एक विवाह का उक्त घोषणा के बाद भी निर्वाह होगा। इस अधिनियम को बनाते समय अंडर ट्रायल और न्यायपालिका पर अत्यधिक बोझ और उसकी दुर्दशा की ओर से आंखें मूंद ली गईं।
इससे पहले केरल में सुन्नी मुस्लिम विद्वानों और धार्मिक नेताओं के संगठन ‘समस्त केरल जमीयुल उलेमा’ ने इस कानून को असंवैधानिक घोषित करने का अनुरोध करते हुए इसकी संवैधानिकता को चुनौती दी थी।