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विमर्श

सुप्रीम कोर्ट ने मांगी मोदी सरकार से राफेल खरीद प्रक्रिया की पूरी डिटेल

Prema Negi
10 Oct 2018 2:05 PM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने मांगी मोदी सरकार से राफेल खरीद प्रक्रिया की पूरी डिटेल
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कोर्ट ने कहा मोदी सरकार उच्चतम न्यायालय को बताए कि उसने राफेल डील को कैसे क्रियान्वित किया, 29 अक्टूबर तक कोर्ट में उपलब्ध कराई जाए डील होने की प्रक्रिया....

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट

उच्चतम न्यायालय में जस्टिस दीपक मिश्रा के मुख्य न्यायाधीश पद से अवकाश ग्रहण करने और जस्टिस रंजन गोगोई के नये मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद न्यायाधीशों का नया रोस्टर लागू होने का असर धीरे—धीरे दिखने लगा है। राफेल लड़ाकू विमान खरीद पर जारी विवाद के बीच उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार से खरीद प्रक्रिया की पूरी जानकारी मांगी है।

दरअसल राफेल डील में केवल मूल्यों के अन्तर का ही आरोप नहीं है, बल्कि रक्षा खरीद की स्वीकृति प्रक्रिया कि अनदेखी करने का आरोप भी है। यदि उच्चतम न्यायालय में राफेल डील की खरीद में स्वीकृति प्रक्रिया की अनदेखी का आरोप सही पाया गया तो इससे न केवल मोदी सरकार की किरकिरी होगी, बल्कि राजनीतिक तूफान भी उठ खड़ा होगा।

उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से 29 अक्तूबर तक सीलबंद लिफाफे में उस फैसले की प्रक्रिया की पूरी जानकारी देने को कहा है, जिसके बाद राफेल जेट की खरीद को लेकर फ्रांस की कंपनी दैसॉ एविएशन से डील हुई राफेल डील पर उच्चतम न्यायालय में अब 31 अक्टूबर को सुनवाई होगी। विपक्ष राफेल जेट की कीमतों को लेकर सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगा रहा है। इसी के तहत मामला उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गया है।

कीमत, तकनीकी डीटेल्स देने की जरूरत नहीं

राफेल से संबंधित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बिना नोटिस जारी किए केंद्र से यह रिपोर्ट तलब की। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस केएम जोसेफ की पीठ ने साफ कहा है कि वह रक्षा बलों के लिए राफेल विमानों की उपयुक्तता पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं। पीठ ने कहा कि हम सरकार को कोई नोटिस जारी नहीं कर रहे हैं, हम केवल फैसला लेने की प्रक्रिया की वैधता से संतुष्ट होना चाहते हैं। पीठ ने यह भी साफ किया है कि वह राफेल डील की तकनीकी डीटेल्स और कीमत के बारे में सूचना नहीं चाहता है।

केंद्र ने की जनहित याचिकाएं रद्द करने की मांग

केंद्र सरकार ने राफेल डील पर दायर की गई याचिकाओं को रद्द करने की मांग की है। केंद्र ने दलील दी कि राजनीतिक फायदे के लिए राफेल पर जनहित याचिकाएं दायर की गई हैं। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि ये जनहित याचिका नहीं बल्कि राजनीतिक हित की याचिका है। ये चुनाव का समय है और कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए।

केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि ये नेशनल सिक्योरिटी का मामला है। केंद्र सरकार ने कहा कि ये जनहित याचिका नहीं है, बल्कि राजनीति से प्रेरित याचिका है और ये समय चुनाव का है अगर कोर्ट याचिका पर नोटिस जारी करता है तो सीधे प्रधानमंत्री को जाता है।इस याचिका पर सुनवाई की जरूरत नहीं है।

क्या हुआ सुप्रीम कोर्ट में?

उच्चतम न्यायालय ने सरकार से कहा है कि वह बताए कि उसने राफेल डील को कैसे क्रियान्वित किया है। पीठ ने सरकार से कहा है कि 29 अक्टूबर तक वह डील होने की प्रक्रिया उपलब्ध कराए। मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को होगी। मुख्य न्यायाधीश ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि यह आदेश केवल यह सुनिश्चित करने के लिए है कि फैसला लेने में समुचित प्रक्रिया का पालन किया गया।

इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि रक्षा सौदों में प्रोटोकॉल होता है। यह बताया जा सकता है। मुख्य न्यायाधीश ने पूछा कि अगर हम डील की जानकारी को छोड़कर इसमें फैसले लेने की प्रक्रिया की जानकारी मांगें तो क्या आप यह उपलब्ध करा सकते हैं? पीठ ने कहा कि यह डील सरकारों के प्रमुखों ने की है। इसकी सभी जानकारी सामने आनी चाहिए।

अटॉर्नी जनरल द्वारा संसद में राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित जवाल पूछे गए थे, जिनकी जानकारी नहीं दी जा सकती है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है। संसद में 40 सवाल पूछे गए हैं। यह न्यायिक समीक्षा का मामला नहीं है। अंतरराष्ट्रीय समझौते में दखल नहीं दिया जा सकता है।

इस मामले में वकील मनोहर लाल शर्मा और वकील विनीत ढांडा याचिकाकर्ता हैं। विनीत ढांडा ने कहा कि सरकार यह नहीं बता रही है कि राफेल जेट की लागत में हथियार और इसके रखरखाव की कीमत भी शामिल है या नहीं। ढांडा ने कहा कि अदालत के सामने सबकुछ आना चाहिए। मनोहर लाल शर्मा ने कहा है कि यह कानून का उल्लंघन और भ्रष्टाचार है। यह विएना कन्वेंशन का भी उल्लंघन है। भ्रष्टाचार के विरोध में अंतरराष्ट्रीय संधियां हुई हैं और देश भ्रष्टाचार के आरोप वाले समझौतों को रद्द कर सकते हैं।

2012 के समझौते के मुताबिक फ्रेंच संसद के सामने पेश की गई राफेल की असल कीमत 71 मिलियन यूरो है। दसॉ की वार्षिक रिपोर्ट में भी एयरक्राफ्ट की 'असल कीमत' का जिक्र है। शर्मा ने सरकार पर 206 मिलियन डॉलर के भ्रष्टाचार का आरोप लगाया।

कांग्रेस के आरोप

कांग्रेस इस मामले में सरकार पर अनियमितता बरतने का आरोप लगाती रही है। कांग्रेस पिछले कई महीनों से यह आरोप लगाते रही है कि मोदी सरकार ने फ्रांस की कंपनी दसॉ से 36 राफेल लड़ाकू विमान की खरीद का जो सौदा किया है, उसका मूल्य पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में विमानों की दर को लेकर जो सहमति बनी थी उसकी तुलना में बहुत अधिक है। इससे सरकारी खजाने को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। कांग्रेस ने यह भी दावा किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सौदे को बदलवाया और एचएएल से ठेका लेकर रिलायंस डिफेंस को दिया गया।

क्या है राफेल डील

राफेल डील के तहत 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए भारत और फ्रांस की सरकारों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। राफेल लड़ाकू विमान दोहरे इंजन वाला अनेक भूमिकाएं निभाने वाला मध्यम लड़ाकू विमान है. इसका निर्माण फ्रांसीसी एयरोस्पेस कंपनी डसॉल्ट एविएशन करती है। राफेल विमान फ्रांस की डेसाल्ट कंपनी द्वारा बनाया गया दो इंजन वाला लड़ाकू विमान है।

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