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विमर्श

दहेज उत्पीड़न मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने दिया पुलिस को गिरफ्तारी का आदेश, मगर बांध दिए हाथ

Prema Negi
15 Sep 2018 4:23 AM GMT
दहेज उत्पीड़न मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने दिया पुलिस को गिरफ्तारी का आदेश, मगर बांध दिए हाथ
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पुलिस मनमानीपूर्वक नहीं कर सकेगी अभी भी गिरफ्तारी, गिरफ्तारी केवल अपवादिक परिस्थितियों में होगी, जमानत और ​अग्रिम जमानत का होगा पति पक्ष का पूरा अधिकार

पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों की जांच के लिए सिविल सोसाइटी की कमेटी को इजाजत नहीं दी जा सकती। कोर्ट इस तरह की गाइडलाइन नहीं बना सकता क्योंकि ये विधायिका का काम है.....

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह का विश्लेषण

दहेज प्रताड़ना को लेकर आईपीसी की धारा 498ए के प्रावधानों में बदलाव के 27 जुलाई 2017 के दो जजों की पीठ के फैसले में उच्चतम न्यायालय की तीन जजों की पीठ ने संशोधन किया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने उस गाइडलाइन को हटा दिया है, जिसमें स्थानीय परिवार कल्याण समितियों की रिपोर्ट से पहले गिरफ्तारी पर रोक लगाई गई थी।

इसके साथ ही पीठ ने गिरफ्तारी के अधिकार को फिर से पुलिस को दे दिया है, लेकिन उच्चतम न्यायालय ने दहेज उत्पीडन में गिरफ्तारी के लिए पुलिस के हाथ बांध दिए हैं।कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पुलिस मनमानी गिरफ्तारी नहीं करेगी, गिरफ्तारी केवल अपवाद की परिस्थितियों में की जाएगी और गिरफ्तारी के लिए धारा 41(1) (बी) सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुरूप विशेष कारण दर्ज़ करेगी।

कोर्ट ने कहा है कि पुलिस वैवाहिक विवादों में प्रारम्भिक जांच के बाद एफआईआर दर्ज़ करेगी तथा गिरफ्तारी के सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करेगी। उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों को निर्देश दिया है कि 498ए आईपीसी के तहत अपराधिक मामलों में विवेचना अधिकारी को इस न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी के सम्बंध में दिए गये निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

उच्चतम न्यायालय ने गिरफ्तारी के सम्बंध में यह निर्देश अर्नेश कुमार, ललिता कुमारी, जोगिदर कुमार और डीके वसु मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा समय समय पर दिए गये दिशा निर्देशों को आधार मानकर दिया है।

पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों की जांच के लिए सिविल सोसाइटी की कमेटी को इजाजत नहीं दी जा सकती। कोर्ट इस तरह की गाइडलाइन नहीं बना सकता क्योंकि ये विधायिका का काम है। हालांकि पीठ ने इस मामले में संतुलन बनाने की बात कहते हुए कहा है कि पति व अन्य के हितों के सरंक्षण के लिए अदालत को उन्हें जमानत या अग्रिम जमानत देने का अधिकार है। ऐसे मामलों में पति या उनके पक्ष की अर्जी मिलते ही अदालत को तुरंत सुनवाई करनी चाहिए। यदि दोनों पक्ष समझौते के लिए तैयार हैं तो वो संबंधित हाईकोर्ट जा सकते हैं।

गौरतलब है कि न्यायमूर्ति एके गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ के 27 जुलाई 2017 के आदेश को चुनौती देने के वाली दायर याचिकाओं पर मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में तीन जजों की पीठ ने फैसला फैसला सुरक्षित रख लिया था। 27 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की पीठ ने कहा था कि आईपीसी की धारा-498 ए यानी दहेज प्रताड़ना मामले में गिरफ्तारी सीधे नहीं होगी।

दहेज प्रताड़ना मामले को देखने के लिए हर जिले में एक परिवार कल्याण समिति बनाई जाए और समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही गिरफ्तारी होनी चाहिए, उससे पहले नहीं। उच्चतम न्यायालय ने दहेज प्रताड़ना मामले में कानून के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की थी और लीगल सर्विस अथॉरिटी से कहा है कि वह प्रत्येक जिले में परिवार कल्याण समिति का गठन करे। इसमें सिविल सोसायटी के लोग भी शामिल हों।

जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने कहा था कि राजेश शर्मा बनाम स्टेट ऑफ यूपी के केस में गाइडलाइंस जारी किए थे और इसके तहत दहेज प्रताड़ना के केस में गिरफ्तारी से सेफगार्ड दिया गया था। लॉ कमीशन ने भी कहा था कि मामले को समझौतावादी बनाया जाए। निर्दोष लोगों के मानवाधिकार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अनचाही गिरफ्तारी और असंवेदनशील छानबीन के लिए सेफगार्ड की जरूरत बताई गई, क्योंकि ये समस्याएं बदस्तूर जारी हैं।

गिरफ्तारी से पहले दहेज प्रताड़ना की जांच के लिए सिविल सोसायटी की कमेटी बनाने की गाइडलाइन को उच्चतम न्यायालय ने हटा दिया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पति और उसके रिश्तेदारों के संरक्षण करने के लिए जमानत के रूप में अदालत के पास अधिकार मौजूद हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कोर्ट इस तरह आपराधिक मामले की जांच के लिए सिविल कमेटी नियुक्त नहीं कर सकता, इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।

अब कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने दो जजों की बेंच के फैसले में संशोधन किया और कहा कि इस तरह कोर्ट कानून की खामियों को नहीं भर सकता। ये कार्यपालिका द्वारा कानून लाकर ही करना संभव है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच बैलेंस बनाना जरूरी है।

उच्चतम न्यायालय ने दोहराया कि अगर दोनों पक्षों में समझौता होता है तो कानून के मुताबिक वो हाईकोर्ट जा सकते हैं। अगर पति पक्ष कोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल करता है तो केस की उसी दिन सुनवाई की जा सकती है।

गिरफ्तारी को लेकर उच्चतम न्यायालय ने निर्देशित किया है कि सीआरपीसी की धारा 41 में गैर जमानती अपराध में गिरफ्तारी को लेकर संतुलन कायम किया गया है। मनमानी गिरफ्तारी को रोकने के लिए इस धारा में साफ प्रावधान है कि पुलिस अगर किसी को गिरफ्तार करती है तो पर्याप्त कारण बताएगी और न गिरफ्तार करने का भी कारण बताएगी।

गैर सरकारी संगठन न्यायधर का कहना था कि इससे महिलाओं को परेशानी हो रही है और फैसले के बाद कोई शिकायत नहीं आ रही है। मानव अधिकार मंच नाम के गैर सरकारी संगठन ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर मांग की थी कि कोर्ट को उस संबंध में दूसरी गाइड लाइन बनाने की जरूरत है, क्योंकि कोर्ट के फैसले के बाद दहेज उत्पीड़न का कानून कमजोर हुआ है। याचिका में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि 2012 से 2015 के बीच 32,000 महिलाओं की मौत की वजह दहेज उत्पीड़न था।

(विभिन्न समाचार पत्रों से जुड़े रहे जेपी सिंह कानूनी विषयों के जानकार हैं।)

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