Begin typing your search above and press return to search.
आंदोलन

मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा की गिरफ़्तारी पर 15 तक रोक, लेकिन सुनवाई से क्यों भाग रहे जज

Prema Negi
4 Oct 2019 11:22 PM IST
मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा की गिरफ़्तारी पर 15 तक रोक, लेकिन सुनवाई से क्यों भाग रहे जज
x

file photo

गौतम नवलखा केस से एक के बाद एक 5 न्यायाधीशों ने खुद को सुनवाई से जिस तरह हटा लिया, उससे कहीं न कहीं अचम्भे के साथ-साथ कई सवाल भी खड़े हो गये कि आखिर क्यों इन न्यायाधीशों को इस केस से खुद को हटाना पड़ा और वो भी बिना कोई कारण बताये...

जनज्वार, दिल्ली। सर्व्वोच्च न्यायलय ने मानव अधिकार कार्यकर्त्ता गौतम नवलखा को भीमा-कोरेगांव केस के सम्बन्ध में न गिरफ्तार किये जाने की अंतरिम अवधि 15 अक्टूबर तक बढ़ा दी गयी है। साथ ही न्यायालय ने महाराष्ट्र पुलिस को कहा है कि उनके केस सम्बन्धी उचित दस्तावेजों को कोर्ट के समक्ष पेश करे।

गौरतलब है कि जनवरी 2018 में पुणे पुलिस ने 31 दिसंबर 2017 को भीमा-कोरेगांव में एल्गार परिषद की सभा के बाद पैदा हुयी हिंसा का दोषी मानते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं वरवर राव, अरुण परेरा, वर्नोन गोंजाल्वेस और सुधा भारद्वाज सहित गौतम नवलखा के खिलाफ़ भी एफआईआर दर्ज़ की थी। पुणे पुलिस ने ये आरोप भी लगाए थे कि नवलखा और दूसरे आरोपियों के माओवादियों से सम्बन्ध रहे हैं और ये लोग सरकार का तख़्ता पलटने की कोशिश कर रहे थे।

गौतम नवलखा ने कोर्ट से कहा था कि वे किसी भी प्रतिबंधित संगठन से नहीं जुड़े रहे हैं और उन्होंने केवल नागरिक अधिकार के मुद्दे ही उठाये थे। उन्होंने कोर्ट को यह भी कहा कि पूरा का पूरा केस साथी आरोपियों के वक्तव्यों और दस्तावेजों पर आधारित है।

संबंधित खबर : सच्चाई और ईमानदारी से लड़े शब्द गोली और गाली से ज्यादा ताकतवर : गौतम नवलखा

मुंबई उच्च न्यायलय ने 13 सितम्बर को नवलखा के खिलाफ़ दायर एफआईआर को खारिज करने से मना कर दिया था, लिहाज़ा उन्हें सर्वोच्च अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा।

फिलहाल नवलखा को कुछ दिनों की राहत तो अवश्य मिल गयी, लेकिन उनकी अपील की सुनवाई करने के लिए गठित सर्वोच्च न्यायलय की पीठ में शामिल न्यायधीशों में से जिस तरह एक के बाद एक पांच न्यायाधीशों ने खुद को सुनवाई से हटा लिया, वो कहीं न कहीं अचम्भे के साथ-साथ कई सवालों को भी खड़ा कर गया। आखिर क्यों इन न्यायाधीशों को खुद को हटाना पड़ा और वो भी बिना कोई कारण बताये, जबकि परम्परा यह रही है कि सुनवाई न करने का कारण भी स्पष्ट करना होता है।

ता दें कि नवलखा की याचिका की सुनवाई 1 अक्टूबर को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को करनी थी, लेकिन मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। फिर ये सुनवाई न्यायाधीशों एनवी रमन्ना, आर सुभाष रेड्डी और बीआर गवई की पीठ द्वारा की जानी थी, मगर अचानक तीनों न्यायाधीशों ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया और दूसरी पीठ के गठन का सुझाव मुख्य न्यायाधीश को दिया।

संबंधित खबर : मैं भी नक्सल तू भी नक्सल, जिसने सच बोला वो नक्सल

स केस की सुनवाई न्यायधीशों अरुण मिश्रा, विनीत सरन और एस रविंद्र भट्ट की पीठ को सौंपी गयी, लेकिन जब सुनवाई शुरू होने वाली थी तभी अचानक न्यायाधीश रविंद्र भट्ट ने खुद को अलग कर लिया। तीन दिनों में ऐसा करने वाले वे पांचवे न्यायाधीश थे। ग़ौरतलब है कि इन पांचों न्यायधीशों ने खुद को अलग करने का स्पष्टीकरण नहीं दिया जबकि ऐसा करना वांछित था।

मतौर पर न्यायाधीश सुनवाई से खुद को तब अलग करते हैं, जब उनका निर्णय व्यक्तिगत रूप से प्रभावित होता हो या फिर अपने वकालत के करियर के दौरान वे दोनों पक्षों में से किसी की पैरवी से जुड़े रहे हों। हाल में न्यायाधीश यू ललित ने अयोध्या ज़मीन विवाद केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था, क्योंकि वकालत करने के दौरान वे बाबरी विध्वंस केस के एक आरोपी की पैरवी कर चुके थे।

वकाश प्राप्त न्यायाधीश मार्कण्डेय काटजू ने नोवार्तिस केस से अपने को इसलिए अलग कर लिया था, क्योंकि उन्होंने औषधियों के पेटेंट पर एक लेख लिखा था। इसी तरह पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने वेदांता कंपनी से जुड़े केस की सुनवाई से इसलिए खुद को अलग कर लिया था क्योंकि उनके पास उस कम्पनी के शेयर थे।

समें कोई दोराय नहीं कि पाँच-पाँच न्यायाधीशों द्वारा गौतम नवलखा केस में बिना कारण बताये सुनवाई से खुद को अलग कर लेने से इस सम्बन्ध में एक बार फिर बहस का दौर शुरू हो जाएगा।

ग़ौरतलब है कि वर्ष 2015 में नेशनल ज्यूडिशियल अपोइंटमेंट्स कमीशन क़ानून को ग़ैर-संवैधानिक घोषित करने वाली पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ के एक सदस्य न्यायाधीश कुरियन जोसेफ़ ने अपने निर्णय में लिखते हुए कहा था, "चूँकि यह ऐसी संस्था है जिसका विशिष्ट गुण पारदर्शी बने रहना है, यह उचित है कि उच्च एवं उत्कृष्ट कर्तव्य का निर्वाह करने वाले न्यायधीश को काम से काम केस से खुद को हटा लेने के कारणों को व्यापक रूप से बताना चाहिए, ताकि वादियों को या आम जनता को न्यायाधीश के खुद को हटाने को लेकर किसी तरह की अटकले ना पैदा हों... जैसा कि ली गयी शपथ में परिलक्षित होता है पारदर्शी और उत्तरदायी रहना संवैधानिक कर्तव्य है, और इसीलिये एक न्यायाधीश का कर्तव्य बनता है कि वो किसी ख़ास केस से ख़ुद को अलग कर लेने के निर्णय के कारण इंगित करे।"

Next Story

विविध