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रिपोर्ट से हुआ खुलासा 2050 के बाद हर साल आयेंगी भयानक महासागरीय आपदायें
file photo
दुनिया के अधिकतर महानगर महासागरों के किनारे स्थित हैं और दुनिया की दो अरब से अधिक आबादी भी। जैसे-जैसे महासागरों का तल बढ़ रहा है, पृथ्वी का भूगोल भी बदल रहा है। पानी का क्षेत्र बढ़ता जा रहा है और भूमि का क्षेत्र कम होता जा रहा है
जलवायु परिवर्तन का महासागरों पर बढ़ते असर को लेकर महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
मानव इतिहास में सबसे गर्म पांच वर्ष 2014 से 2019 तक हैं। यह सब जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि का असर है, पर दुनिया अभी तक अधिवेशनों से बाहर निकल कर इसे रोकने में कामयाब नहीं रही है। जैसे जैसे इसके असर और स्पष्ट होते जा रहे हैं, अधिवेशनों की संख्या और इनका स्तर बढ़ता जा रहा है।
हरेक अगले अधिवेशन में पहले से भी और भयावह स्थिति पर चर्चा की जाती है, मीडिया इसे पहले पन्ने की खबर बनाता है, टीवी चैनेल चक्रवात और बाढ़ की भयावह तस्वीरें दिखाते हैं और फिर अधिवेशन ख़त्म होते ही अगले अधिवेशन तक सन्नाटा रहता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार वर्ष 1850 के बाद से वायुमंडल का औसत तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है और इसमें से 0.2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोत्तरी तो वर्ष 2011 के बाद से ही दर्ज की गयी है। इस सन्दर्भ में दुनिया कितनी संजीदा है, यह तो इस तथ्य से ही उजागर होता है कि जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार प्रमुख गैस कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन लगातार बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 2015 से 2019 के बीच वायुमंडल में कार्बन का उत्सर्जन इसके पहले के पांच वर्षों की तुलना में 20 प्रतिशत अधिक रहा है।
महासागरों का औसत तल वर्ष 1993 के बाद से 3.2 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ चुका है। वर्ष 2015 से 2019 के बीच तो यह बढ़ोत्तरी 5 मिलीमीटर प्रतिवर्ष तक रही है जबकि वर्ष 2007 से बढ़ोत्तरी का औसत 4 मिलीमीटर प्रतिवर्ष रहा है। इसका सीधा सा मतलब है कि साल-दर-साल महासागरों के औसत तल में पहले से अधिक बढ़ोत्तरी होती जा रही है।
आईपीसीसी की नई रिपोर्ट के अनुसार महासागरों से सम्बंधित भयानक आपदाएं जो अब तक एक शताब्दी में एक बार आती थीं, अब वैसी आपदाएं वर्ष 2050 के बाद से वार्षिक घटनाएँ हो जायेंगी। विश्व के महासागरों और ग्लेशियर पर जलवायु परिवर्तन के असर से सम्बंधित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अनेक असर तो अभी ही स्पष्ट हो रहे हैं।
खतरनाक चक्रवातों और तूफानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और दूसरी तरफ पृथ्वी के दोनों ध्रुवों पर जमी बर्फ लगातार तेजी से पिघलती जा रही है। इससे महासागरों की सतह की ऊंचाई बढ़ती जा रही है, पानी अधिक गर्म होता जा रहा है और पानी में ऑक्सीजन की कमी हो रही है। कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ रही है जिससे महासागरों का पानी अधिक अम्लीय हो रहा है। इन सबसे समुद्री जीवन खतरे में है और अनेक समुद्री प्रजातियाँ विलुप्त भी हो चुकी हैं।
प्रायः माना जाता है कि सागरों और महासागरों के ठीक आसपास रहने वाले लोगों पर ही सागर तल के बढ़ने का असर पड़ेगा या फिर चक्रवात प्रभावित करेगा। पर, वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया में जीवन के हरेक पहलू पर महासागरों का असर होता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन में इनकी भूमिका प्रमुख है।
दुनिया के अधिकतर महानगर महासागरों के किनारे स्थित हैं और दुनिया की दो अरब से अधिक आबादी भी। जैसे-जैसे महासागरों का तल बढ़ रहा है, पृथ्वी का भूगोल भी बदल रहा है। पानी का क्षेत्र बढ़ता जा रहा है और भूमि का क्षेत्र कम होता जा रहा है। भूमि के क्षेत्र के कम होने से एक बड़ी आबादी लगातार विस्थापित होती जा रही है, जाहिर है इसका सीधा असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
भूमि के कम होने से केवल जनसंख्या का घनत्व ही नहीं बदलेगा पर साथ-साथ साफ़ पानी और खाद्य पदार्थों के लिए भी संघर्ष बढेगा। दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन के असर से साफ़ पानी के स्त्रोत कम हो रहे हैं और पहले से अधिक जमीन बंजर होती जा रही है।
हिमालय के गगनचुम्बी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं और सिकुड़ रहे हैं। जाहिर है, इन ग्लेशियर पर निर्भर चीन, भारत, बांग्लादेश, चीन, नेपाल, पाकिस्तान और भूटान में बहने वाली नदियों पर असर पड़ेगा।