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विमर्श

चीन के खिलाफ नस्ली टिप्पणी से एक्सपोज हुआ 'द वॉल स्ट्रीट जर्नल'

Prema Negi
28 Feb 2020 11:35 AM GMT
चीन के खिलाफ नस्ली टिप्पणी से एक्सपोज हुआ द वॉल स्ट्रीट जर्नल
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वॉल स्ट्रीट जर्नल और उसके पत्रकारों ने अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर चीन को बदनाम करने और उसकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने की नाकाम कोशिश की है...

बीजिंग से वरिष्ठ पत्रकार अखिल पाराशर की टिप्पणी

हिन्दी में एक प्रसिद्ध दोहा है- जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी... यानी जैसी आपकी सोच होती है, वैसे नजरिये से ही आप दूसरों को देखते हैं। हम वह नहीं देखते, जो सच में होता है, हम वह देखते हैं, जो हम देखना चाहते हैं। असल में यह उक्ति कुछ पश्चिमी मीडिया की रिपोर्टिंग पर सटीक प्रतीत होती है, वो इसलिए कि कुछेक पश्चिमी मीडिया चीन समेत अनेक एशियाई देशों के बारे में पूर्वाग्रहों से ग्रस्त होकर रिपोर्टिंग और ख़बरें प्रकाशित करती हैं।

हाल ही में अमेरिका के प्रमुख अखबार द वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपने एक लेख की हेडलाइन में चीन को "एशिया का असली बीमार आदमी" बताया, जो सरासर नस्लीय भेदभाव और पूर्वाग्रह से प्रेरित है। अखबार की यह हेडलाइन वाकई अपमानजनक और चीन को नीचा दिखाने वाली है। वॉल स्ट्रीट जर्नल और उसके पत्रकारों ने अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर चीन को बदनाम करने की और उसकी प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाने की नाकाम कोशिश की है।

लोगों का ध्यान खींचने की इस घटिया कोशिश में, वॉल स्ट्रीट जर्नल के संपादकों ने खुद को शर्मसार कर लिया है।उन्हें याद रखना चाहिए कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर किसी देश को बीमार आदमी नहीं बताया जाता, और न ही कोई नस्लीय भेदभाव किया जाता है। हमें ध्यान देना होगा कि नस्लीय भेदभाव केवल राजनीतिक रूप से गलत नहीं है, बल्कि यह सामाजिक नैतिकता और सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत आचार संहिता के विरुद्ध भी है।

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भी 20 फरवरी को द वॉल स्ट्रीट जर्नल के दर्जनों कर्मचारियों ने अखबार के शीर्ष अधिकारियों से माफी मांगने की मांग की। बाकायदा उन्होंने एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर भी किये। उस पत्र में लिखा कि द वॉल स्ट्रीट जर्नल के लेख ने लोगों को नाराज किया है, जो न सिर्फ चीन में रहते हैं, बल्कि उन्हें भी जो चीन से बाहर रहते हैं। इस पत्र में गलती सुधारने और औपचारिक रुप से माफी मांगने के लिए कहा गया है, लेकिन 2 हफ्ते से ज्यादा का वक्त बीत चुका है, पर अभी तक अखबार ने न तो औपचारिक रुप से माफी मांगी है, और न ही कोई कदम उठाया है। बस अपने अहंकार और पूर्वाग्रह को पाले हुए है।

मेरिका प्रेस की स्वतंत्रता का दावा करता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कोई सीमा नहीं है। पूरे इतिहास में मीडिया माध्यमों से नस्लीय भेदभाव की घटनाएं हुई हैं, जिनका व्यापक रुप से नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। समाचार मीडिया में व्यावसायिकता के संदर्भ में, द वॉल स्ट्रीट जर्नल के लेख की अपमानजनक हेडलाइन अत्यधिक चौंकाने वाली है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली अखबार के रूप में, इस तरह की गलती और नस्लीय भेदभाव घटना सच में खतरनाक है। हालांकि, अखबार ने 'शुतुरमुर्गी चरित्र' अपना रखा है, जो खतरे को भांपकर रेत में सिर छिपा लेता है। अखबार अभी भी आंखें मूंदे हुए है, और आलोचना की सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है।

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धर, चीन के विदेश मंत्रालय ने 19 फरवरी को "द वॉल स्ट्रीट जर्नल" के चीन में स्थित तीनों पत्रकारों के प्रेस कार्ड रद्द कर दिये और उन्हें चीन से चले जाने का रास्ता भी दिखा दिया। चीनी विदेश मंत्रालय ने साफ कह दिया कि जो मीडिया, चीन को अपमानित करते हैं, नस्लीय भेदभाव को बढ़ावा देते हैं और चीन पर गलत मंशा से हमला करते हैं, उन्हें कीमत चुकानी पड़ेगी।

स तरह के दुर्भावनापूर्ण अपमान के सामने चीन खामोश नहीं रहेगा। मीडिया को निष्पक्ष और उद्देश्यपरक रिपोर्टिंग करनी चाहिए और बुनियादी मानवीय नैतिकता की रक्षा करनी चाहिए। जाहिर है इस तरह के नस्लीय भेदभावपूर्ण हेडलाइन को पूरी तरह से गलत माना जाता है। कोई भी तर्क इस तथ्य को बदल नहीं सकता है।

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चीन जैसे उभरते और प्रमुख देश के लिए यह अपमानजनक हेडलाइन उन चीनी लोगों के आत्मसम्मान को चोट पहुंचाती है जो सही मायने में अपने राष्ट्र का गौरव बढ़ा रहे हैं। एक तरफ तो चीनी लोग नये कोरोनोवायरस निमोनिया से लड़ रहे हैं, और दूसरी तरफ द वॉल स्ट्रीट जर्नल जैसे अखबार चीन विरोधी टिप्पणियों को हवा देकर भेदभाव फैला रहे है, जो चीनी लोगों को अपमानित करते हैं। दूसरों का अपमान करने के लिए किसी बीमारी या आपदा का उपयोग करना करुणा और विवेक की कमी को दर्शाता है।

वैसे भी भेदभाव, अपमान और अफवाह फैलाना किसी भी महामारी को कम करने का समाधान नहीं है। यह समय न तो दोषारोपण करने, और न ही भेदभाव करने का है, बल्कि एकजुट होने का है। पूरी दुनिया को एकजुटता दिखानी चाहिए और मिलकर चीन के साथ इस अदृश्य दुश्मन के खिलाफ लड़ना चाहिए। पश्चिमी देशों और उनकी मीडिया को चीन सरकार की आलोचना या उपहास करने या चीनी लोगों को बदनाम करने से बचना चाहिए।

(अखिल पाराशर चाइना मीडिया ग्रुप में वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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