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जनज्वार विशेष

भाषा विशेषज्ञों की स्टडी से हुआ खुलासा, कोई भी भाषा नहीं होती दूसरी भाषा से श्रेष्ठ या कमतर

Prema Negi
1 Oct 2019 10:28 AM GMT
भाषा विशेषज्ञों की स्टडी से हुआ खुलासा, कोई भी भाषा नहीं होती दूसरी भाषा से श्रेष्ठ या कमतर
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अब तक माना जाता रहा है कि जिस भाषा को जल्दी-जल्दी बोला जाता है उससे होता है किसी सूचना का प्रसार अधिक तेजी से जबकि आराम से बोली जाने वाली भाषाओं में उसी सूचना के प्रसार में अपेक्षाकृत लगेगा अधिक समय, मगर यह है मात्र भ्रम, क्योंकि हरेक भाषा के सूचना सम्प्रेषण की दर रहती है लगभग एक...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

भाषाओं पर समाचार कम ही बनते हैं, और जो समाचार बनते भी हैं वे भाषा के विकास से अधिक लोगों की मानसिकता से सम्बंधित होते हैं। कुछ दिन पहले ही अमित शाह ने हिंदी को राष्ट्रभाषा से सम्बंधित बयान दिया था जिसके बाद हिंदी के पक्ष और विपक्ष में बहुत सारे विचार आये। पर इन विचारों में हिंदी से अधिक चर्चा इसे श्रेष्ठ साबित करने या फिर स्थानीय भाषाओं से कमतर आंकने पर हुई।

भाषा पर दूसरी चर्चा जो होती है, उसके अनुसार बहुत सारी भाषाएँ और बोलियाँ विलुप्त होती जा रही हैं। पर, एक नए अनुसन्धान से स्पष्ट होता है कि किसी भी भाषा की सूचना प्रचार की क्षमता एक सामान होती है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह भाषा जल्दी-जल्दी बोली जाती है या फिर उसका व्याकरण बहुत समृद्ध है। किसी भी भाषा में सूचना के प्रसार की दर 39 बिट्स प्रति सेकंड रहती है। तह गति टेलीग्राम के आधार मोर्स कोड से लगभग दोगुनी है।

माना जाता है कि इटली के निवासी विश्व के किसी और देश की तुलना में जल्दी बोलते हैं और इनके बोलने की दर लगभग 9 शब्दांश प्रति सेकंड रहती है। दूसरी तरफ जर्मनी के कुछ इलाकों में बोलने की दर 5 शब्दांश से अधिक नहीं रहती। हमारे देश में भी भाषाओं में इस तरह का अंतर रहता है। मैथिली और भोजपुरी अपेक्षाकृत धीरे बोली जाती हैं, जबकि हरयाणवी और पंजाबी जल्दी बोली जाती है। पर, भाषा को धीरे बोलने या फिर जल्दी बोलने का महत्व क्या है?

ब तक यही माना जाता रहा है कि जिस भाषा को जल्दी-जल्दी बोला जाता है उसके द्वारा किसी सूचना का प्रसार अधिक तेजी से होता होगा, जबकि आराम से बोली जाने वाली भाषाओं में उसी सूचना के प्रसार में अपेक्षाकृत अधिक समय लगेगा।

वैज्ञानिकों ने सबसे पहले अंग्रेजी, इटालियन, जापानीज, वियातनामीज और हिन्दी जैसी 17 भाषाओं का चयन कर हरेक भाषा के सूचना घनत्व को बिट्स में परिवर्तित किया। बिट्स से पहले लोग अनजान थे, पर अब स्मार्टफोन के ज़माने में बिट्स एक सामान्य शब्द हो गया है। हमारा स्मार्टफोन, लैपटॉप या कंप्यूटर मॉडेम भी सूचनाओं का सम्प्रेषण बिट्स में ही करता है। हरेक भाषा का सूचना घनत्व अलग रहता है – जापानी भाषा में यह 5 बिट्स प्रति शब्दांश है, अंग्रेजी में 7 बिट्स प्रति शब्दांश और वियातानामीज में 8 बिट्स प्रति शब्दांश।

सके बाद एक ही आलेख का भाषा-विशेषज्ञों की मदद से हरेक भाषा में अनुवाद कराकर हरेक भाषा के जानकारों को इसे पढ़ने को दिया गया। एक ही आलेख को हरेक भाषा में पढ़ने का उद्देश्य यह था कि हरेक भाषा में सूचना के सम्प्रेषण में एकरूपता रहे। हरेक भाषा में उस आलेख को पढ़ने में कितना समय लगा, यह ज्ञात करने के बाद हरेक भाषा में बोलने की दर शब्दांश प्रति सेकंड में ज्ञात की गई।

विशेषज्ञों को मालूम था कि कुछ भाषाएँ सामान्यतया जल्दी बोली जाती हैं, पर जब विशेषज्ञों ने भाषा के बोलने की दर को बिट्स दर से गुणा करने के बाद परिणाम देखा तो विस्मित रह गए। इस गुणा से यह जानने के लिए किया गया कि हरेक भाषा में प्रति सेकंड में कितनी सूचना का सम्प्रेषण हुआ।

सका परिणाम आश्चर्यजनक था और किसी की उम्मीद से परे भी। हरेक भाषा में सूचना की सम्प्रेषण दर 39.15 बिट्स प्रति सेकंड के आसपास ही थी। इसका सीधा सा मतलब है कि भाषा भले ही जल्दी बोली जाती हो या फिर धीरे बोली जाती हो, भाषा क्लिष्ट हो या सरल, भाषा का व्याकरण विस्तृत हो या संक्षिप्त हो – हरेक भाषा द्वारा सूचना के सम्प्रेषण की दर लगभग एक रहती है। इस अध्ययन को साइंस एडवांसेज नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। इस अध्ययन के मुख्य लेखक फ्रांस स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ लियान के फ्रेंकोइस पेलेग्रिनो हैं।

किसी भाषा में बोलकर सूचना प्रसारण की तुलना में वर्ष 1959 में बने पहले कंप्यूटर मॉडेम की सम्प्रेषण क्षमता 110 बिट्स प्रति सेकंड थी, जबकि आधुनिक मॉडेम के लिए यह दर 100 मेगाबिट्स (10 करोड़ बिट्स) प्रति सेकंड है। फ्रेंकोइस पेलेग्रिनो के अनुसार भाषा के विज्ञान पर बहुत काम किया जा चुका है, पर आश्चर्य है कि इतने सीधे, सरल और मौलिक तथ्य पर पहले कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया। इस अध्ययन से इतना तो स्पष्ट है कि सूचनाओं के प्रसार के सन्दर्भ में कोई भी भाषा किसी अन्य भाषा से श्रेष्ठ नहीं है।

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