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आंदोलन

हजारों आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने 18 हजार न्यूनतम वेतन के लिए दिया दिल्ली में धरना

Prema Negi
27 Feb 2019 4:09 AM GMT
हजारों आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने 18 हजार न्यूनतम वेतन के लिए दिया दिल्ली में धरना
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अब तो हम रिटायर होने की कगार पर पहुंच रहे हैं। हमें जितना पैसा मिलता है, उतने में हम न तो अपने बच्चों को ठीक से पढ़ा पाते हैं न ही खिला पाते हैं। हमारे बच्चे भी कुपोषण के शिकार हैं...

जंतर मंतर से सुशील मानव की रिपोर्ट

जनज्वार। सोमवार 25 फरवरी को अखिल भारतीय आंगनवाड़ी सेविका एवं सहायिका फेडरेशन (आइफा) के नेतृत्व में देशभर से हजारों की संख्या में आंगनवाड़ी सेविकाएं एवं सहायिकाओं ने मंडी हाउस से संसद मार्ग तक संसद मार्च निकाला। ये संसद मार्च जंतर मंतर पहुंचकर सभा में तब्दील हो गया।

संसद मार्च का नेतृत्व सीटू महासचिव तपन सेन, सीटू अध्यक्ष हेमलता, आइफा महासचिव एआर सिंधु व आइफा अध्यक्ष ऊषा रानी ने किया। जंतर मंतर पर आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की सभा हर ओर से लाल ही लाल दिख रही थी।

आइफा के प्रतिनिधिमंडल ने महिला एवं बाल विकास सचिव से मिलकर आईसीडीएस को मजबूत करने तथा आंगनवाड़ी वर्कर्स व हेल्पर्स की कार्यस्थिति को सुधारने के मांग पर एकत्रित किए करीब 40 लाख हस्ताक्षर वाला मांगपत्र सौंपा।

मांगपत्र की मुख्य मांगों में न्यूनतम वेतन के रूप में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को 18 हजार रुपए दिए जाएं। पेंशन के तौर पर 6 हजार रुपए मासिक निर्धारित किया जाए।वेतन का भुगतान करने के लिए बजट में पर्याप्त आवंटन किया जाने और आईसीडीएस का निजीकरण रोकने और उसे बचाने के लिए ज़रूरी कदम उठाए जाने की मांग की।

photo : Sushil Manav

इस दौरान हुई बातचीत में आंगनवाड़ी व हेल्पर्स के आंदोलन में आई कई आंगनवाड़ी महिलाओं ने अपनी समस्याएं साझा कीं।

बिहार के गया से आई शोभा सिंह 12 वर्षों से आंगनवाड़ी वर्कर हैं। वो बताती हैं कि सन 2016 में हमें 10 महीने का वेतन नहीं मिला है। मांगने पर नीतीश सरकार कहती है कि सब दे दिया है।

परमीला देवी 1987 में आंगनवाड़ी में नियुक्त हुईं और 34 वर्षों से लगातार काम कर रही हैं। उस समय उन्हें 125 रुपए वेतन मिलता था। जो बढ़ने के बाद 3700 रुपए हो गया था, लेकिन कुछ महीने देने के बाद सरकार ने उसमें भी 700 रुपए की कटौती कर ली है।

मनोरमा कुमारी सन 1983 से लगातार बतौर आंगनवाड़ी वर्कर काम कर रही हैं। वो कहती हैं कि अब तो हम रिटायर होने की कगार पर पहुंच रहे हैं। हमें जितना पैसा मिलता है, उतने में हम न तो अपने बच्चों को ठीक से पढ़ा पाते हैं न ही खिला पाते हैं। हमारे बच्चे भी कुपोषण के शिकार हैं। वो कहती हैं कि क्या क्या लगातार 36 साल काम करने के बाद भी हम स्थायी किए जाने और पेंशन पाने के योग्य नहीं।

हिमाचल प्रदेश के मंडी से आई आशा देवी 18 वर्ष से आंगनवाड़ी में काम कर रही हैं। वो बताती हैं कि हमें 4500 रुपए वेतन दिया जाता है। इसमें 3000 केंद्र देती है और 1500 राज्य सरकार। लेकिन हमें हमारा वेतन नियमित नहीं मिलती।

जबकि मंडी से ही आई गोदावरी देवी पिछले 34 वर्षों से बतौर आंगनवाड़ी वर्कर अपनी सेवाएं दे रही हैं। वो बताती हैं कि हमें तमाम सरकारी योजनाओं के सर्वे और पंजीकरण के लिए जाना पड़ता है। बच्चा कंसीव करने से लेकर उसके 6 साल होने तक की सारी जिम्मेदारी हमें देखनी होती है। इसके अलावा हिमाचल सरकार ने एक नया नाटक शुरू कर दिया है गर्भवती औरतों की गोदभराई का। खाली हाथ तो गोदभराई होती नहीं, पर इसके लिए वो पैसे भी नहीं देते कहते हैं समुदाय या पंचायत से पैसा इकट्ठा करो या जेब से लगाओ जैसे भी करो पर गोदभराई करो।

हमें गांव में गर्भवती औरतों की गोदभराई करने जाना पड़ता है। इसके अलावा बच्चा होने पर हमें बधाई देने भी जाना होता है। खाली हाथ बधाई दी जाती है क्या, नहीं न। इसके लिए भी हमें पैसे पंचायत या समुदाय से मैनेज करने या खुद से मैनेज करके बधाई देने जाना होता है। इसके अलावा हमें जिन लोगों का आधारकार्ड नहीं बना उनका आधारकार्ड बनवाना होता है। अब हम लोगों की ड्यूटी बतौरी बीएलओ भी लगा दी गई है। गोदावरी बताती हैं कि इसके अलावा हमें महीने में 22-25 रजिस्टर मेनटेन करने और रिपोर्ट बनानी होती है। अब हिमाचल सरकार का नया फ़रमान है कि ऑनलाइन रिपोर्ट बनाओ।

हिमाचल प्रदेश की मंडी से ही आई राजकुमारी बताती हैं कि वो 35 वर्षों से बतौर आंगनवाड़ी वर्कर काम कर रही हैं और हिमाचल प्रदेश आंगनवाड़ी वर्कर की स्टेट जनरल सेक्रेटरी हैं। वो बताती हैं कि बीमार होने पर हमें कुछ भी नहीं मिलता। 60 वर्ष की उम्र में रिटायरमेंट के बाद खाली हाथ घर भेज दिया जाता है। हमें ग्रेच्युट-पेंशन कुछ भी नहीं मिलता।

पलवल फरीदाबाद से आई प्रेमवती बताती हैं कि वो 30 साल से काम कर रही हैं, लेकिन उन्हें नहीं पता कि उनका वेतन कितना है, कभी कुछ आता है तो कभी कुछ। इसके अलावा आंगनवाड़ी कर्मियों के इस धरना प्रदर्शन में कुछ अनूठे नारे भी लगाए गए। जैसे कि –

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