ट्रिपल तलाक : महिलाओं के बराबरी का सवाल कहीं साम्प्रदायीकरण का हथियार न बन जाये
पत्नी ने तनख्वाह नहीं दी, पति ने दुबई से ही फोन पर तीन तलाक दे डाला (file photo from social media)
तीन तलाक विधेयक पारित हो जाने बाद सबसे बड़ा सवाल अब भी यही है कि क्या इससे मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक व पितृसत्तात्मक मूल्य-मान्यताओं से आजादी मिल जाएगी, पढ़िए स्वतंत्र पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता मुनीष कुमार का विश्लेषण...
काफी शोर-शराबे के बाद तीन तलाक पर भाजपा सरकार द्वारा प्रस्तुत बिल मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 लोकसभा के बाद अंततः 30 जुलाई को राज्यसभा में भी पारित हो गया गया। इस बिल के पारित होने के बाद मुस्लिमों में 3 तलाक प्रथा को पूर्णतः गैरकानूनी घोषित कर दिया गया है।
इससे पूर्व देश की सर्वोच्च अदालत ने अगस्त 2017 में मुस्लिमों में जारी 3 तलाक प्रथा- तलाक ए बिद्दत, तलाक ए हसन व तलाक ए अहसन में से मात्र तलाक ए बिद्दत को ही गैरकानूनी घोषित किया था, परन्तु अब उक्त तीनों प्रकार की प्रथाएं गैरकानूनी बन गयी हैं।
राज्य सभा में पारित विधेयक के अनुसार मुस्लिम मर्दों द्वारा मुंह से बोलकर, लिखकर व इलैक्ट्रोनिक फाॅर्म में दिया गया तीन तलाक (तलाक ए बिद्दत समेत) व इसके समान तीन तलाक प्रथाएं गैरकानूनी व शून्य मानी जाएंगी।
इस अधिनियम के तहत 3 तलाक प्रथा के तहत तलाक पीड़ित महिला स्वयं अथवा अपने मायके या ससुराल की तरफ के रिश्तेदार के माध्यम से तलाक देने वाले पति के खिलाफ थाने में रिपोर्ट दर्ज करा सकेगी। तीन तलाक संज्ञेय अपराध घोषित कर दिया गया है। तथा पुलिस के पास तीन तलाक प्रथा के तहत तलाक देने वाले व्यक्ति (पति) को गिरफ्तार करने का अधिकार होगा।
गिरफ्तारी के बाद पति को तब तक जमानत नहीं मिलेगी, जब तक मजिस्ट्रेट द्वारा पीड़ित महिला के बयान दर्ज न कर लिए जाएं। पीड़ित महिला को स्वयं व अपने बच्चे के लिए अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार होगा। उसका नाबालिग बच्चा यदि पति के पास है तो वह उसे मजिस्ट्रेट के आदेश से अपने पास रख सकेगी। अपराध साबित होने पर तीन तलाक देने वाले व्यक्ति को 3 वर्ष की सजा व जुर्माने का प्रावधान किया गया है।
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तीन तलाक अपराध को क्षमा योग्य अपराध (कम्पाउंडेबल) की श्रेणी में रखा गया है। पति-पत्नी के बीच यदि समझौता हो जाता है तो वह न्यायालय में मान्य होगा।
उक्त प्रावधानों के साथ देश की राज्यसभा में बिल मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 84 मतों के मुकाबले 99 मतों से पास हो गया।
कुल मिलाकर इस विधेयक को पारित करने के बाद मुस्लिम महिलाओं को भाजपा सरकार ने कुएं में से निकालकर खाई में धकेल दिया है। इस विधेयक के पारित हो जाने बाद सबसे बड़ा सवाल अब भी यही है कि क्या इससे मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक व पितृसत्तात्मक मूल्य-मान्यताओं से आजादी मिल जाएगी।
इस कानून के आने के बाद पहला काम यह होगा कि भारत के इस मर्दवादी समाज में मुस्लिम मर्द भी वही सब कुछ करने लग जाएंगे, जो अब तक हिन्दू मर्द करते हैं। बगैर तलाक दिये ही अपनी पत्नी को घर से निकाल देंगे अथवा छोड़ देंगे, जैसे इस विधेयक के सूत्रधार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पत्नी यशोदा बेन को छोड़ दिया है।
दूसरा न्यायालयों में तलाक व गुजारा भत्तों से सम्बन्धित मुकदमों के लिए पति-पत्नी न्यायालयों में चप्पल घिसते नजर आएंगे। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार पिछले दिसम्बर 2017 तक देश के न्यायालयों में तलाक से सम्बन्धित 7.13 लाख मुकदमे पैंडिंग थे। आने वाले समय में देश के न्यायालयों में इस तरह के पारिवारिक मुकदमों में बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी हो जाएगी। कानूनविदों का कहना है कि देश के न्यायालयों में तलाक से सम्बन्धित मुकदमों का फैसला आने में 8-10 वर्ष तक का समय लग जाता है।
इस विधेयक के माध्यम से भाजपा सरकार महिलाओं के बराबरी के सवाल का साम्प्रदायीकरण करने में कामयाब हुयी है। इस तरह का माहौल बना दिया गया है कि देश में मात्र मुस्लिम महिलाओं की हालत ही खराब है तथा हिन्दुओं समेत दूसरे धर्मों की महिलाओं की स्थिति अच्छी है।
2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल तलाकशुदा महिलाओं में हिन्दू महिलाओं का प्रतिशत 68 था, वहीं मुस्लिम महिलाओं में यह लगभग एक तिहाई 23.3 प्रतिशत ही है। 1000 महिलाओं में 6.9 प्रतिशत हिन्दू महिलाएं देश में अपने पति से अलग रहती हैं, वहीं मुस्लिम महिलाओं में यह संख्या 6.7 प्रतिशत है।
महिलाओं को बराबरी व सम्मान दिये जाने के लिए जरूरी है कि देश में महिलाओं को शिक्षा व रोजगार की गारंटी मिले। भाजपा सरकार यदि वास्तविक रूप से महिलाओं की बराबरी व उनके उत्पीड़न को खत्म करने के लिए संकल्पबद्ध है तो वह देश की संसद के दोनों सदनों में महिलाओं को रोजगार, आवास व शिक्षा अधिकार दिये जाने व रोजगार न दिये जाने पर बेरोजगारी भत्ता दिये जाने की गारंटी दिये जाने से सम्बन्धित संविधान में संसोधन पारित करे।
(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सह संयोजक हैं।)