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ट्रंप उतरे कोरोना के बाजार में, जर्मनी की फर्म से कोविड 19 का टीका खरीदने की खबरें

Janjwar Team
6 April 2020 2:57 PM IST
ट्रंप उतरे कोरोना के बाजार में, जर्मनी की फर्म से कोविड 19 का टीका खरीदने की खबरें
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कोरोना वायरस ने नेशनल हेल्थ सर्विस में लगातार बजटीय कटौती के प्रभावों को उजागर किया है जिससे यह कोरोनावायरस पहले की अन्य महामारियों की तरह उन लोगों के जीवन ले लेगा जो सबसे ज्यादा कमजोर हैं...

जनज्वार। महामारियां समाजों को खत्म नहीं करती हैं लेकिन वो अपनी कमजोरियों को उजागर कर देती हैं। जैसा कि मेडिसिन के इतिहासकार फ्रैंक स्नोडेन ने हाल ही में न्यू यॉर्कर को बताया था कि महामारी संबंधी बीमारियां अनियोजित घटनाएं नहीं हैं जो समाजों को अस्थिर करती हैं और बिना चेतावनी दिए पीड़ित करती हैं, इसके विपरीत हर समाज अपनी कमजोरियों को पैदा करता है।

कोरोना वायरस ने नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) में लगातार बजटीय कटौती के प्रभावों को उजागर किया है जिससे यह कोरोनावायरस पहले की अन्य महामारियों की तरह उन लोगों के जीवन ले लेगा जो सबसे ज्यादा कमजोर (बुजुर्ग, बेघर, कैदी, प्रवासी मजदूर और कैंसर - एचआईवी जैसी बीमारियों से ग्रसित आदि) हैं।

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द गार्जियनके मुताबिक इस वायरस ने हमारे स्वास्थ्य तंत्र की एक और बड़ी कमजोरी पर प्रकाश डाला है, वो है प्रोफिट ड्राइवेन फार्मास्यूटिकल इनोवेशन मॉडल, जिसपर हम जीवन रक्षक टीकों और दवाओं को विकसित करने का भरोसा करते हैं।

बर है कि डोनाल्ड ट्रंप ने एक जर्मन बायोटेक फर्म से कोविड-19 वैक्सीन को खरीदने की मांग की है। एक वैश्विक संकट के दौरान जब पूरी मानवता खतरे में है, जीवन के अधिकार को खरीदने का हमारा शर्मनाक प्रयास अनैतिक लगता है।

कोरोनावायरस को हमें प्रतिबिंबित करने के लिए विराम देना चाहिए कि क्या दवा उद्योग (जो लाभ के लिए एकाधिकार रखते हैं) को नियंत्रित करना जारी रहना चाहिए कि कौन सी दवाइयां विकसित की जाएंगी, और कौन उन तक पहुंच पाएगा।

लाभ वह है जो फार्मास्यूटिकल्स इंडस्ट्री में निर्णय लेने का काम करता है। हमारे पास तपेदिक जैसी बीमारियों के इलाज के लिए दवाएं क्यों नहीं है, जो पूरी दुनिया में हर साल लाखों गरीबों को मार देती हैं और हम क्यों कोविड 19 के लिए वैक्सीन खोजने के करीब क्यों नहीं है? आखिरकार यह दुनिया को चेतावनी देने वाला पहला कोरोनावायरस नहीं है।

शोधकर्ताओं ने साल 2016 में सार्स और कोरोनावायरस जैसे वायरस का इलाज करने का वादा किया था। लेकिन उन्होंने कम पैसे के चलते इसके बजाय बिजनेस की अधिक आकर्षक लाइनों पर ध्यान केंद्रित किया।

2014 में इबोला संकट के बाद पश्चिमी देशों ने इसके लिए रिसर्च ट्रीटमेंट का फैसला किया था क्योंकि यह सालों से अफ्रीका में रह रहे लोगों को मार रहा था। इस महामारी के उपचार पर रिसर्च और डेवेलपमेंट में सार्वजनिक निवेश को संचालित करने के लिए 2017 में वॉशिंगटन डीसी में एक सीईपीआई (The Coalition of Epidemic Preparedness Innovations) नाम का एक फाउंडेशन बनाया गया था। लेकिन इसकी आज भी शिकायत है कि इसने रिसर्च में फार्मास्युटिकल कंपनियों के लिए संघर्ष किया है जो अनगिनत जीवन बचा सकता है।

जैसा कि कंपनियों ने कोविड-19 में लाभ की संभावनाओं को देखना शुरु कर दिया है, निवेश में वृद्धि हुई है, सार्वजनिक क्षेत्र का लगभग हर उम्मीदवार को वैक्सीन और उपचार के लिए फंडिंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। लेकिन जोखिम यह है कि सरकार के हस्तक्षेप के बिना कोरोना वायरस की किसी भी दवाई की कीमत निर्धारित की जाएगी जिसे केवल अमीर देश ही वहन कर पाएंगे।

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गार्जियन के मुताबिक, अमेरिका में बर्नी सैंडर्स ने किसी भी कोरोनावायरस वैक्सीन को मुफ्त में उपलब्ध कराने का आह्वान किया है। ट्रंप द्वारा अमेरिकियों के लिए एक कैंडिडेट वैक्सीन को खरीदने का कदम भविष्य के लिए अच्छा नहीं है। यूनाइटेड किंगडम को अलग तरीके से काम करना चाहिए। उसी तरह जिस तरह हमने एक नेशनल हेल्थ स्कीम की नैतिक अनिवार्यता को देखा है, जो सभी के लिए समान स्वास्थ्य सेवा की गारंटी देता है। हमें कोविड -19 से मुनाफाखोरी पर रोक लगाने वाली रिसर्च फंडिंग पर शर्तें लागू करने की आवश्यकता है।

जिस तरह से महामारियां हमें अपना सबसे बुरा असर दिखा रही हैं, उसी तरह हमें यह भी सिखा रही हैं कि खुद को कैसे सुरक्षित बनाया जाए।

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