किसानों को कर्जमाफी के नाम पर बेइज्जत कर रही योगी सरकार
अखबारों में छप रहे कर्जदार किसानों की सूची देखकर किसान हैं आहत, खफा हैं इस बात से कि करोड़ों के डिफॉल्टर पूंजीपतियों का नाम छापने की बारी आने पर सरकार की हेकड़ी निकल आती है और गरीब किसानों को बेइज्जत करके मुख्यमंत्री दांत निपोरते हैं...
जनज्वार, लखनऊ। सरकार की हिम्मत नहीं कि वह अरबों की रकम डकार चुके पूंजीपतियों का नाम सार्वजनिक करे, लेकिन यहां 9 पैसे वाले किसानों का नाम गर्व से सरकार अखबारों में छपवाकर किसान हितैषी बनने का नाटक कर रही है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो पहला वादा किया था, वह था किसानों की कर्जमाफी। लेकिन अब जब कर्जमाफी का मौका आया है तो सरकार कर्जमाफी के नाम न सिर्फ किसानों का मजाक उड़ा रही है, सार्वजनिक तौर पर बेइज्जत भी कर रही है।
मीडिया और सोशल मीडिया में कर्जमाफी वाले किसानों की जो सूची छप रही है, उससे साफ है कि सरकार कर्जमाफी की गिनती बढ़ाने के लिए किसानों के साथ यहअसंवेनशील कारगुजारी यूपी सरकार कर रही है।
कर्जमाफी की खबरें और किसानों का मजाक उड़ाती कर्जराशि की सूचियां हर रोज किसी न किसी स्थानीय अखबार में छप रही हैं। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री की असंवेदनशीलता यह है कि वह खुद 73 या 75 रुपए कि कर्जमाफी का प्रमाणपत्र मंचों से किसानों को प्रदान कर रहे हैं।
बाराबंकी जिले के किसान रामनरेश पटेल कहते हैं, 'ये कोई कर्जमाफी है। कल को हम बेटे—बेटियों की शादी करेंगे तो लोग मजाक उड़ाएंगे कि ये देखो इनका तो कर्जदार के नाम पर अखबारों में नाम छपा था। किसानों के इस मजाक की कीमत योगी और मोदी 2019 में चुकाने के लिए तैयार रहें।'
किसान नेता और योजना आयोग के पूर्व सदस्य प्रोफेसर सुधीर पंवार कहते हैं, 'शायद यह पहली बार हो रहा है कि किसानो की ऋणमाफी में किसान को स्टेज पर बुलाकर यह महसूस कराया जा रहा है कि देखो तुम कितने नाकारा और ग़रीब हो और अमुक पार्टी के मंत्री जी कितने दयालु कि तुम्हारा क़र्ज़ा माफ़ कर रहे हैं।'
किसान नेता पंवार नागरिक अधिकार संगठनों से अपील करते हुए कहते हैं, 'सरकार ने अभी तक बड़े बकायादारों के नाम सार्वजनिक नहीं किए है और न ही काला धन रखने वालों के। एक देश मे दो व्यवस्था कैसे हो सकती है। एक ओर करोड़ों के क़र्ज़दार उद्योगपति का नाम गुप्त रखा जाता है और दूसरी ओर दस—बीस रुपए से लेकर 9 पैसे के कर्जदार किसानों के नाम स्टेज पर बुलाकर सबके सामने प्रदर्शित किया जा रहा है। यह बुनियादी तौर पर किसानों के मान को ठेस पहुंचाना और सार्वजनिक रूप से बेइज्जत करना है।'
नरेश कुमार सिंह दिल्ली की एक कंपनी में मैनेजर हैं। वह सहारनपुर जिले की एक तहसील के रहने वाले हैं। उनके पिता का नाम अखबार में 97 रुपए की कर्जमाफी के लिए अखबार में छपा है। उनके गांव और परिवार के वाट्सग्रुप में उनके पिता वाली सूची घूम रही है और लोग एक—दूसरे को भेज रहे हैं।' नरेश कहते हैं, 'मैं किसी वकील से संपर्क सरकार की इस कारगुजारी के खिलाफ मुकदमा करना चाहता हूं। कर्ज जैसा कर्ज नहीं और बेइज्जती पूरी।'
बुंदेलखंड में किसानों के मसलों को लेकर सक्रिय रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर दीक्षित हमीरपुर के एक किसान के कर्जमाफी का प्रमाण पत्र लगाते हुए योगी सरकार से पूछते हैं, 'इस किसान का 10 रुपया 37 पैसा कर्जा माफ़ हुआ है। यह है योगी की कर्जमाफी? शर्म आनी चाहिए ऐसी सरकार को।'
आशीष सागर दीक्षित द्वारा दिखाए जा रहे प्रमाण पत्र के कंफरमेशन के लिए जनज्वार ने नीचे दिए गए नंबर पर फोन किया तो पता चला कि यह नंबर कंट्रोल रूम प्रभारी हमीरपुर का है।
जिस व्यक्ति ने फोन उठाया उसने बताया कि वह उत्तर प्रदेश के हमीरपुर कंट्रोल रूम जिला प्रभारी है। प्रदेश भर में राज्य सरकार ने किसानों के सवालों को हल करनेे के लिए कंट्रोल रूम बना रखे हैं। 10 रुपया 37 पैसे की कर्जमाफी पर अधिकारी ने बड़े गर्व से बताया, 'जितना कर्जा होगा उतना ही माफ होगा न।'