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राजनीति

सवर्ण आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ है ?

Nirmal kant
20 Feb 2020 5:00 AM GMT
Hijab Row : शैक्षणिक संस्थान तय कर सकते हैं ड्रेस, हिजाब बैन को चुनौती देने पर बोला सुप्रीम कोर्ट
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Hijab Row : शैक्षणिक संस्थान तय कर सकते हैं ड्रेस, हिजाब बैन को चुनौती देने पर बोला सुप्रीम कोर्ट

संविधान के मूल अधिकार में यह साफ प्रावधान है कि आरक्षण प्रतिनिधित्व का मामला है और यह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को प्रतिनिधित्व देने के लिए लाया गया, यह कोई योजना नहीं है। सवर्ण आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ है..

जनज्वार। वाराणसी के कचहरी स्थित अंबेडकर पार्क में बुधवार को अनुसूचित जाति-जनजाति/पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय के मौलिक अधिकारों पर हमला व अधिवक्ताओं की भूमिका विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर कार्यक्रम के संयोजक और मुख्य वक्ता एडवोकेट प्रेम प्रकाश सिंह यादव ने कहा कि एक तरफ सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स अपने निर्णयों द्वारा एससी-एसटी/ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्ग के आरक्षण को व पदोन्नति में आरक्षण को खत्म कर रही हैं। दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय के माध्यम से कहा कि आरक्षित वर्ग का उम्मीदवार आरक्षित वर्ग में ही चयनित होगा, चाहे वह परीक्षा में टॉप ही क्यों न करे। उक्त 85 प्रतिशत के लोगों को आरक्षण का लाभ न मिले इसके लिए उन्होंने क्रीमी लेयर लागू कर दिया व सरकारी संस्थानों का निजीकरण कर रहे हैं।

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दूसरी तरफ सवर्ण आरक्षण उन्होंने संसद में चाय पार्टी पर पास कर दिया और उसका अनुपालन भी हो गया। प्रेम प्रकाश ने कहा कि ब्राह्मणवादी व्यवस्था की सरकार व न्यायपालिका भेदभाव जाति के आधार पर करती है और अपने लोगों को आरक्षण गरीबी के आधार दे दिया है। संविधान के मूल अधिकार में यह साफ प्रावधान है कि आरक्षण प्रतिनिधित्व का मामला है और यह सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों को प्रतिनिधित्व देने के लिए लाया गया, यह कोई योजना नहीं है। सवर्ण आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विश्राम यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स में कोलेजियम के नाम पर ब्राह्मणवादी व्यवस्था के तहत ब्राह्मणों का 99 फीसदी कब्जा है और वहाँ पर कोई परीक्षा नहीं होती, चाय पार्टी पर देश के कुछ ब्राह्मण परिवारों की बेटियों और दामादों का चयन होता है। हम लोग इसका पुरजोर विरोध करते हैं और इस गोष्ठी के माध्यम से मांग करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में भी परीक्षा और अनुभव के माध्यम से जजों की नियुक्ति हो और उसमें भी 85 प्रतिशत लोगों का प्रतिनिधित्व आरक्षण के माध्यम से सुनिश्चित किया जाए।

उन्होंने कहा कि मंदिरों में शत-प्रतिशत व उच्च पदों पर 90 प्रतिशत से ज्यादा उनका कब्जा है और जहां हमारे लोगों का थोड़ा-बहुत प्रतिनिधित्व होना शुरू हुआ वहां पर उन्होंने निजीकरण कर दिया है या तो लगातार कर रहे हैं। गोष्ठी को संबोधित करते हुए एडवोकेट मोहसिन शास्त्री ने कहा कि हम लोगों को खतरा 15 प्रतिशत ब्राह्मणवादी व्यवस्था के लोगों से नहीं है बल्कि 85 प्रतिशत समाज के उन बिचौलियों से है जो हमारे समाज के नाम पर वोट लेते हैं लेकिन दलाली ब्राह्मणवादी व्यवस्था की करते हैं और हमारे अधिकारों पर कुठाराघात करने में निर्णायक भूमिका निभाकर हमें गुमराह किए रहते हैं, जिससे हमारी लड़ाई खड़ी ही न हो पाए।

डवोकेट प्रेमनाथ शर्मा ने कहा कि आरक्षण में प्रोन्नति पर सुप्रीम कोर्ट का वर्तमान निर्णय का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि केशवानंद भारती के केस में 9 जजों की पीठ ने व तमाम संवैधानिक पीठों ने अपने फैसलों में कहा कि आरक्षण प्रतिनिधित्व का मामला है, ऐसे में उक्त फैसले का कोई औचित्य नहीं है। अगर इस फैसले को लागू करना है तो 11 जजों की संविधान पीठ से निर्णय पारित कराना होगा।

डवोकेट रामराज अशोक ने कहा कि ईवीएम के माध्यम से सरकार 85 प्रतिशत लोगों के प्रतिनिधित्व को खत्म करने की साजिश रच रही है और सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ईवीएम के माध्यम से स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव नहीं हो सकते। विश्व के तमाम विकसित देशों में यह मानते हुए कि ईवीएम के माध्यम से चुनाव में धाँधली की जा सकती है, इसलिए इसकी जगह पर मतपत्र के माध्यम से चुनाव कराना शुरू कर दिया है। लेकिन यह तानाशाही सरकार लोकतंत्र व संविधान का गला घोंटकर मनुस्मृति के माध्यम से देश चलाना चाहती है, जिसे हम लोग स्वीकार नहीं करेंगे।

स मौके पर अधिवक्ता रामदुलार ने कहा कि सीएए, एनपीआर और एनआरसी के माध्यम से सरकार 85 प्रतिशत लोगों की नागरिकता को खतरे में डालकर उन्हें मताधिकार और अन्य अधिकारों से वंचित करना चाहती है।

ने कहा कि जब देश में विपक्ष-विहीन माहौल है, विपक्षी पार्टियाँ परिवार और पूँजी को बचाने में ईडी और सीबीआई के डर से सरकार के संविधान विरोधी नीतियों के खिलाफ मौन हैं। ऐसे में आम जनता जब सड़क पर अपने हक और संविधान की रक्षा के लिए सड़क पर उतरती है तो उसे फर्जी मुकदमे में फँसाकर जेलों में ठूँसा जा रहा है और बेरहमी से पिटाई की जा रही है। जिससे लोगों में दहशत और भय का माहौल है।

न्होंने कहा कि जब-जब देश में आम जन के हक और सम्मान पर आँच आई तब-तब संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए अधिवक्ताओं ने नेतृत्व किया और बदलाव के वाहक बने। ऐसे में हम सभी अधिवक्ता सर्व-सम्मति से यह निर्णय लेते हैं कि इस ब्राह्मणवादी व्यवस्थापिका, न्यायपालिका, कार्पोरेट जगत व भाँड़ मीडिया के गँठजोड़ को नाकाम कर संविधान व लोकतंत्र की रक्षा करेंगे और विपक्ष की भूमिका निभाकर इस तानाशाह सरकार को आइना दिखाएंगे व आमजन के अधिकार व सम्मान की रक्षा करेंगे।

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स मौके पर अधिवक्तागण सुरेंद्र चरण, नागेंद्र कुमार यादव, कैलाश सिंह, सुरेंद्र कुमार, राजेश गुप्ता, कन्हैया लाल पटेल, शिवपूजन यादव, चंदनराज, राजीव कुमार, राजनाथ, धम्मपाल कौशांबी, वीरबलि सिंह यादव, अशोक कुमार ने भी अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में चंद्रदेव प्रसाद, राजेश कुमार, संजय वर्मा, विनोद कुमार शर्मा, जितेंद्र गौतम, सूर्य प्रकाश भारती, अनूप कुमार गौतम, परमहंस शास्त्री, दिनेश कुमार, राजकुमार, त्रिभुवन प्रसाद, हीरालाल यादव, मनोज कुमार कनौजिया, लाल बहादुर लाल, त्रिभुवन नाथ, रमाशंकर राम (पूर्व डीजीसी), गुलाब प्रसाद, मणिकांत लाल, रामप्रसाद, मनोज कुमार, ओमप्रकाश जैसल व दूसरे तमाम अधिवक्ता मौजूद थे।

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