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संस्कृति

उत्तराखण्ड के हित में 'छोलियार' जैसे युद्ध की जरूरत लगी तो फिल्म बनाने की ठान ली : देवा धामी

Janjwar Team
21 Feb 2018 10:31 AM GMT
उत्तराखण्ड के हित में छोलियार जैसे युद्ध की जरूरत लगी तो फिल्म बनाने की ठान ली : देवा धामी
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उत्तराखण्ड की पहली हिन्दी फिल्म ‘छोलियार’ एक संदेशवाहक फिल्म है। अपनी संस्कृति पर मान और रिश्तों की संवेदनशीलता पर गढ़ी-बुनी गई यह फ़िल्म दर्शकों को सोचने पर विवश तो करती है और हर उस उत्तराखण्डी नौजवान को जो राज्य हितों के लिए प्रेरित करती है कि अपनी-अपनी प्रतिभाओं और शिक्षा की बदौलत राज्यहित के लिए हर क्षेत्र में बहुत काम किए जा सकते है। फिल्म की पटकथा लेखक और नायक ‘देवा धामी’ हैं।

देवा धामी से संजय रावत की बातचीत

सबसे पहले अपनी पृष्ठभूमि पर कुछ बताएं?
मेरी स्कूलिंग पठानकोट, पंजाब और अरुणाचल की है। उत्तराखण्डी हूं तो पहाड़ से बेहद लगाव रहा। ग्रेजुएशन के लिए यहीं लौट आया और अपने गृह जनपद पिथौरागढ़ से ही पढ़ाई की। फिर दिल्ली से मास कम्युनिकेशन किया और लेक्चरर भी बन गया। अच्छी नौकरी, अच्छा सेटअप था पर मन था कि पहाड़ के लिए कुछ करूं। वर्ना जीने का मतलब ही क्या है ये मान अलग-अलग तरह से सोचने लगा।

तो फिल्म बनाने का खयाल कैसे आया?
मैंने देखा कि देश ही क्या विदेशों में भी उत्तराखण्ड की प्रतिभाओं ने अपने झंडे गाड़े हुए हैं। ये सब राज्य के हितैषी तो हैं पर चाहते हुए भी राज्य के लिए कुछ कर नहीं पा रहे। फिर मैंने सोचा कि मैं क्या कर सकता हूं? मुझे अपना बचपन याद आया कि कैसे हम शादियों में छोलियारों के साथ नाचते थे। बुरे वाकये भी याद आये कि छोलियारों को छूत की नजर से देखा जाता था। उन्हें छूने और बातचीत करने पर बड़े बुजुर्ग ऐतराज करते थे। फिर ये सब खयाल आया कि अन्य राज्यों के लोकनृत्यों को सारे लोग कैसे मिल—जुलकर मनाते हैं और उन्होंने कैसे सम्मान के नजर से देखा जाता है। चाहे वो भांगड़ा हो, गरबा हो या और भी कुछ। तो सोचा छोलियारों की जिन्दगी पर ही फिल्म बनाई जाय।

उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति में तो करीब 25 नृत्य प्रमुख हैं तो फिर छोलियार नृत्य क्यों चुना?
छोलिया नृत्य हमारे उत्तराखण्ड में सबसे लोकप्रिय नृत्य है यह नृत्य युद्ध के प्रतीक के रूप में ही प्रयोग किया जाता है। जिसमें उत्तराखण्ड के लोकबाध्य मसक बीन, ढोल, दमाऊ, तुरछी, रणसिंह भी शुमार होते हैं। नृत्य व बाध्य यंत्रों की कदम ताल ऐसी होती है कि लोग हतप्रभ रह जाते हैं। यह नृत्य युद्धभूमि में लड़ रहे शूरवीरों की वीरता के मिले—जुले छल का नृत्य है। छल से दुश्मन को कैसे मात दी जाती है, यही इस नृत्य का मुख्य लक्ष्य है। आज उत्तराखण्ड के हित के लिए ऐसे ही युद्ध की जरूरत का ख्याल आया तो, फिल्म छोलियार को धरातल पर उतारने का मन बना लिया।

फिल्म निर्माण ही अपने आप में एक जटिल काम है और फिर एक खास संस्कृति के लिए फिल्म में अलग-अलग विधाओं के लिए महारथी जुटाना तो चुनौतीपूर्ण रहा होगा?
जी रहा तो चुनौतीपूर्ण पर, फिल्म की अलग-अलग विधा के अच्छे लोग मेरे संपर्क में पहले ही से थे। इसलिए हमने व्यस्थित प्लान बनाया जिसमें सबसे पहले रिसर्च वर्क किया और उसी के साथ अलग-अलग विधाओं के लोगों को शामिल कर जिम्मेदारियां देते चले गये। वर्ष 2014 से रिसर्च वर्क शुरू हुआ और वर्ष 2015 में पठकथा लिखी गयी। फिल्म के गीत हेमंत बिष्ट जी ने लिखे तो संगीत संजय कुमौला जी ने दिया, निर्देशन कमल मेहता जी का और फिल्म प्रोड्यूसर बने यासिका बिष्ट और जितेन्द्र भाटी जी। फिल्म हिल्स वन प्रोडेक्शन के बैनर तले तैयार हो गयी।

फिल्म का रिस्पांस कैसा है अब तक?
हमने एक साथ रिलीज नहीं की फिल्म। अभी रुद्रपुर में 25 और हल्द्वानी में 20 शो हुए हैं, सारे के सारे हाउसफुल रहे हैं। इसके बाद अल्मोड़ा, नैनरीताल, देहरादून और फिर दिल्ली, पंजाब और अन्य राज्यों में दिखाई जायेगी। उत्तराखण्ड में तो कई राजनीतिक हस्तियां फिल्म देखने आईं और रचनात्मक पहल के लिए बधाइयां भी प्रेषित कीं।

फिल्म में मुख्य किरदार आपका है जो छोलियार टीम का मुखिया है। नृत्य कौशल का कोई अनुभव पहले भी रहा है?
बचपन में छोलियारों के साथ शादी बारातों में खूब नाचता था, नाचता भी क्या रम जाता था उसी में। इतना की गांव वालों ने मेरा नाम ही 'ढोली' रख दिया था। फिर जिस राज्य में भी रहा उसके नृत्य में रम जाता था। लोकनृत्य तो जैसे मेरे गुणसूत्र में शामिल है।

फिल्म को मिली अब तक की सफलता पर कैसा महसूस करते हैं?
अभी तो सफर लंबा है, पर जो प्यार दर्शकों से मिला है वो मेरी जिन्दगी के सफर, वर्ष 2009 से अब तक की मेहनत का शानदार ईनाम है। उम्मीद है यह प्यार आगे भी मिलेगा और सफलताओं के नये पायदानों पर चढ़ने का मौका मिलेगा। ये कम बढ़ी सफलता है कि जो फिल्म देखकर निकलता है वो फिल्म का गीत ‘हां हां मैं हूं छोलियार’ गुनगुनाते हुए निकलता है।

यानि कि दर्शक फिल्म की थीम को एप्रीसिएट कर रहे हैं?
जी बिल्कुल। फिल्म के प्रोमो और समीक्षाओं के बाद ढेरो थियेटर खुद फिल्म की मांग करने लगे हैं, पर हम सारी जगह एक साथ रिलिज नही चाहते? हर शो में हर दर्शक की प्रतिक्रियाओं को महसूसना चाहते हैं, यही हमारी उपलब्धियों में शुमार होना चाहिए।

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