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जनज्वार विशेष

वन विकास निगम की दीमकें

Janjwar Team
13 Oct 2017 10:32 AM GMT
वन विकास निगम की दीमकें
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पिछली रिपोर्टों 'उत्तराखंड वन निगम को लूट रहीं एक ही ग्रुप की तीन कंपनियां'और 'वन निगम एक ही शर्त, ठेका उसी कंपनी को जो अधिकारी के मन को भाए' में हमने खुलासा किया था कि किस तरह एक ही समूह की फर्मों को एक आईएफएस अधिकारी द्वारा आरएफआईडी चिप, टैलिकाॅम टाॅवर और सीसीटीवी कैमरों का काम सौंप करोड़ों रुपये का काम दिया जा रहा है। इस रिपोर्ट में हम खुलासा करेंगे कि उक्त कार्यों की तरह 'इलैक्ट्रॉनिक मापतोल कांटों' के जरिए कैसे वारे—न्यारे किये जाते हैं—

पढ़िए संजय रावत की इन्हीं रिपोर्टों की अगली कड़ी

पिछली रिपोर्टों से
पिछली दो कड़ियों में हम बता चुके हैं कि एक ही समूह की कई फर्मों (हल्द्वानी लालकुआं धर्मकांटा ओनर्स वेलफेयर सोसायटी, नन्धौर हल्द्वानी उज्जवल धर्मकांटा, आंचल धर्मकांटा समिति एवं ओम गुरू ट्रेडर्स) को सीधा लाभ देने के लिए जब्बर सिंह सुहाग (IFS) द्वारा किस तरह चक्रव्यूह रचे जाते हैं। इन सभी ठेको से आने वाली बड़ी रकम मजदूरो के कल्याण के बजाय ठेकेदारों और विभागीय अधिकारियो के कल्याण में ही स्वाह हो जाती है।

मापतोल कांटों का गणित
पहले यह साफ कर दें कि गौला और नंधौर नदी में उक्त समूहों को ही ठेके दिये गये हैं, फर्क यही है कि गौला नदी में लगे धर्मकांटे ठेकेदारों के हैं और नंधौर नदी में लगे मापतोल कांटे खुद वन निगम के हैं। धर्मकांटो में गोलमाल का गणित इस कदर दिलचस्प है कि साफ नजर आता है, इस तरह के किसी भी ठेके आमंत्रित करने का कोई औचित्य नहीं है। चूंकि जिन उद्देश्यों को लेकर ये ठेके आमंत्रित किये जाते है उनसे किसी उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती।

गौला नदी के 11 गेटों पर कुल 26 धर्मकांटे स्थापित किये गये हैं जिनमें 7,544 वाहनों को नियमानुसार गुजरना होता है। मापतोल की कीमत रखी गयी 50 रुपए प्रतिवाहन, जिनमें से 35 रुपए प्रति वाहन वन विकास निगम और 15 रुपए प्रति वाहन ठेकेदार की फर्म को जाते हैं।

निगम को जाने वाले 35 रुपए मेें से ही गौला नदी में गाड़ियों में उपखनिज भरने वाले मजदूरो के कल्याणकारी हितो को साधने का प्रावधान है। मान लिया जाए कि 7,544 वाहनों में से 6 हजार वाहन ही गौला में आवाजाही करे तो 6 हजार वाहनोें से लिये गये 35 रुपए प्रतिवाहन के हिसाब से रकम हुई 2 लाख 10 हजार रुपए प्रतिदिन, अब ये वाहन माह भर में 26 दिन ही चले तो रकम हुयी 21 लाख गुणा 26, यानी 54 लाख 60 हजार रुपए प्रतिमाह। यदि नदी से 8 माह खनन सत्र के बजाय 7 माह ही खनन हुआ तो ये रकम बनी 3 करोड़ 82 लाख 20 हजार रुपए प्रतिवर्ष।

अब नंधौर नदी का रूख करे तो वहां वाहन नापतोल की कीमत निर्धारित है 25 रुपए प्रति वाहन। जिसमें से 15 रुपए 40 पैसे निगम को और 9 रुपए 60 पैसे प्रति वाहन ठेकेदार की फर्म को अदा होते है। नंधौर मेें करीब 3500 वाहन पंजीकृत है। यदि 2500 वाहनों के हिसाब से गणना करे तो 2500 गुणा 15.40 यानी 38 हजार 5 सौ रुपए प्रतिदिन। यदि माह में 26 दिन वाहन उपखनिज ढोते है तो ये रकम बनी 38,500 गुणा 26 यानी 10 लाख एक हजार रुपए प्रतिमाह। खनन सत्र 8 माह की जगह 7 माह भी चला तो ये रकम बनी 70 लाख 7 हजार रुपए प्रतिवर्ष।

गौला और नंधौर नदी में खनन के लिये इन तमाम उपकरणों (इलैक्ट्रानिक मापतौल कांटे, टेलीकाॅम टावर, आर.एफ.आई.डी. चिप और सी.सी.टी.वी. कैमरे) का चलन वर्ष 2006 से शुरू हुआ तो समझा जा सकता है कि कितनी बड़ी रकम मजदूर कल्याणकारी योजनाओं के लिये एकत्र होती है, पर धरातल पर कुछ भी मजदूरों के हाथ नही आता।

इन उपकरणों का क्या लाभ
इन तमाम उपकरणों का इस्तेमाल आखिर किसके हित में हो रहा है। इस बात को ऐसे समझा जा सकता है कि इनकी मुस्तैदी के बाद वन विभाग द्वारा एक ही पंजीकृत नंबर (परिवहन विभाग)के दो-दो वाहनों को नदी के अंदर ही दबोचा गया। और ऐसा एक मामला नहीं बल्कि 50 मामले है जो 'वन विभाग' ने 'वन निगम' की मौजूदगी में पकड़े है। यानी आर.एफ.आई.डी.चिप, टेलीकाॅम टावर, सी.सी.टी.वी. कैमरे और इलैक्ट्रानिक कांटो ने भी अवैध वाहनों की आवाजाही से आंखें फेर ली थी।

'वन विभाग' ने 'वन निगम' की मौजूदगी में 674 ऐसे वाहन भी पकड़े जो टनों अतिरिक्त खनिज चोरी कर ले जा रहे थे।

सारे उपकरणों के बाद भी निकासी गेटोें से खनिज चोरी हो जाती है और इस पर कोई जांच न होकर यथावत सबकुछ कैसे चलता है ये अलग पड़ताल का मामला है।

इन अनियमिताओं और पड़ताल पर जब संबंधित अधिकारियों से बात करनी चाही तो किसी का फोन नही उठा तो किसी ने मीटिंग में हैं फिर बात करते हैं, कहकर टाल दिया।

शेष पड़ताल आगामी कड़ियों में...

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