उत्तराखंड के रामनगर में हजारों की संख्या में जुटे वनवासियों ने यूपी और उत्तराखंड के वन विभागों द्वारा किए जा रहे उत्पीड़न से तंग आकर संघर्ष का बिगुल फूंक दिया है...
रामनगर से सलीम मलिक की रिपोर्ट
प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम 2006 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये रविवार को वन क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों के आयोजित जनसुनवाई में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे हजारों ग्रामीणों ने वन-विभाग के उत्पीड़न के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।
जनसुनवाई के दौरान ज्यूरी में शामिल सदस्य उत्तराखण्ड वन-विभाग के अधिकारियों द्वारा वन-गांवो व खत्ते में रहने वाले निवासियों पर होने वाले जुल्म की असलीयत जानकर अचरज में पड़े रहे। वन-गुर्जरों की महिलाओं ने जब जनसुनवाई में अपने उत्पीड़न की दास्तान बताई गई तो ज्यूरी में शामिल महिला सदस्यों के चेहरे भी रुआंसे हुये बिन रह सके।
रामनगर जिले के पैंठपड़ाव के रामलीला मैदान में वन पंचायत संघर्ष मोर्चा व राष्ट्रीय वनजन श्रमजीवी यूनियन के तत्वावधान में जनसुनवाई का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का संचालन मोर्चा के संयोजक तरुण जोशी ने किया।
इस दौरान करीब तीन दर्जन खत्तों, वन गांवों आदि ने पहुंचे वन गुर्जरों व ग्रामीणों ने वनकर्मियों के उत्पीड़न की दास्तान ज्यूरी के सामने रखते हुये वन-विभाग की खौफनाक तस्वीर से उन्हें रुबरु कराया।
जनसुनवाई आरम्भ होने से पूर्व मौजूद ग्रामीणों को सम्बोधित करते हुये वक्ताओं ने बताया कि प्रदेश में वन पंचायत के नाम पर वनाधिकारी वन अधिकार अधिनियम को लागू करने में रोड़ा अटका रहें हैं, जबकि देश की कुल 33 हजार हैक्टेयर भूमि में से साढ़े सात हजार हैक्टेयर भूमि केवल वन-विभाग के कब्जे में है।
इस भूमि का यदि वनों में रहने वाली आबादी में समुचित वितरण किया जाये तो इन क्षेत्रों में रहने वाली आबादी के साथ ही पर्यावरण व वन्यजीवों को भी भला हो सकता है। लेकिन सरकारें जंगलों में लगने वाली प्राकृतिक आग तक को गुर्जरों के मत्थे मढ़कर सरकार न्याय पालिकाओं के माध्यम से वन गुर्जरों को वनों से हटाने का काम कर रहीं हैं, जबकि वन गुर्जर जाति वन आधारित जीवन का पारम्परिक निवासी है।
वन गांवों में आजादी से पूर्व रहने का प्रमाण मांगकर इस आबादी के साथ ऐतिहासिक अन्याय किया जा रहा है, जबकि देश का मौजूदा संविधान लागू होने से पूर्व का निवास प्रमाण-पत्र मांगना ही असंवैधानिक है।
आमडन्डा खत्ते के चिंताराम ने बताया कि सरकार ने उन्हें 1978 में भूमि दी है लेकिन उनके पटटे आज तक नहीं मिले। तुमड़िया खत्ते की जैनब ने वनाधिकारियों के उत्पीड़न की चर्चा करते हुये कहा कि बिना किसी महिलाकर्मी के यह लोग कभी भी उनके घरों में घुसकर मारपीट करते हुये घर का सारा सामान लूट लेकर चलें जाते हैं। विरोध करने पर यह लोग उनकी आबरु तक के लिये खतरा बन जाते हैं।
शफी अहमद ने आपबीती बताते हुये कहा कि वनकर्मियों को घी-दूध न देने पर यह लोग उन्हें उजाड़ने आ जाते हैं। पुलिस में उनकी कोई सुनवाई इसलिये नहीं होती कि वन-विभाग अपने यहां हमारे ऊपर मुकदमे दर्ज करके हमारी छवि खूंखार अपराधी की बनाकर रखता है। मानवाधिकार, महिला, अनुसूचित जाति-जनजाति आदि आयोग सभी उनकी ओर से आंखे मूंदे बैठे रहते हैं।
महेश जोशी ने वनाधिकारियों पर आरोप लगाया कि वह सांठ-गांठ करके उनके दावों को ही निरस्त करवा देते हैं। महिला आयोग की पूर्व उपाध्यक्ष अमिता लोहनी ने वन गांवों में खत्तो में महिलाओं की दुर्दशा का खाका खिंचते हुये बताया कि जोर-शोर से चलने वाले स्वच्छ भारत अभियान के बाद भी इन क्षेत्रों की महिलाओं के लिये शौचालय अभी तक सपना बना हुआ है।
हरिद्वार के राजाजी पार्क के भाटियानगर व ठाकुरनगर की व्यथा रखते हुये हरिद्वार प्रतिनिधि ने बताया कि उनका विस्थापन प्रशासन ने सहारनपुर उप्र में कर दिया है, उनके दावों के प्रपत्र सहारनपुर-हरिद्वार के बीच घुमते रहते हैं, लेकिन कोई समाधान नहीं होता है।
बिजनौर के अमानगढ़ क्षेत्र से आये मुमताज ने वनाधिकारियों पर उत्पीड़न का आरोप लगाते हुये कहा कि किसी भी वन्यजीव की मौत के बाद उनके गुस्से का शिकार सबसे पहले उन्हें ही होना पड़ता है। खत्ते में रहने वाले लोग वनाधिकारियों के रहमो करम पर जीने को मजबूर हैं।
जनसुनवाई में ज्वालावन खत्ता, चिड़खत्ता, अर्जुननाला खत्ता, बगुचाहोल सितारगंज, रेखाल खत्ता हल्द्वानी, ठंडा पानी खत्ता, पतलिया खत्ता कालाढूंगी, नत्थावाली खत्ता रामनगर, तुलीखाल खत्ता हल्द्वानी, पटलिया खत्ता गदरपुर, पटरिया खत्ता सितारगंज, नलवाड़ खत्ता, राई व बौर खत्ता कालाढंूगी, तुमड़िया खत्ता रामनगर, टांडा खत्ता रुद्रपुर, रेलाखत्ता चोरगलिया, तपसीनाला खत्ता चोरगलिया, हंसपुर खत्ता चोरगलिया, इमलीखत्ता सितारगंज, जौलसाल खत्ता चोरगलिया, मूडाखत्ता नैनीताल, ठेरी नरीगढ़ खत्ता बिजनौर, गलीकरानी खत्ता बाजपुर, नागलखत्ता बाजपुर, बललीखत्ता कालाढूंगी, नागलखत्ता बिजनौर, लूनियाखत्ता कालाढूंगी, मोर्चाखत्ता सितारगंज, कलाखत्ता हल्द्वानी सहित बड़ी संख्या में तराई, भावर व पर्वतीय क्षेत्रों के खत्तों-वन गांवो-टोंगिया गांवों में निवास कर रहे हजारो ग्रामीणों ने जनसुनवाई के दौरान अपनी बात ज्यूरी के सामने रखी।
इस मौके पर मुन्नालाल, अशोक चौधरी, रविन्द्र गड़िया, संजय पारिख, गीता गरोल, नीमा पाठक, राधा बहन, स्मिता गुप्ता, चन्द्र सिंह, दिलीप सिंह, पीसी तिवारी, प्रभात ध्यानी, मुनीष कुमार, किशोरीलाल, गोपाल लोधियाल, ललित कराकोटी, सरस्वती जोशी, ललिता रावत आदि मौजूद रहें।
मोर्चा के संयोजक तरुण जोशी ने बताया कि उनके पास अभी तक दस हजार व्यक्तिगत व साढ़े चार सौ सामूहिक दावे पहुंच चुके हैं।
सभी दावों को ज्यूरी के सामने रखकर उनका परीक्षण कराया जा रहा है, जिससे जल्द से जल्द इन दावों पर कार्यवाही की जा सके। जनसुनवाई के दौरान ज्यूरी में शामिल सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता रविन्द्र गड़िया ने ग्रामीणों को उनके दावों के कानूनी पहलुआंे की जानकारी देते हुये अपने प्रपत्र पूरे रखने की सलाह दी।