योगी तो मनुवादी हैं लेकिन पुलिस संविधानवादी क्यों नहीं?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की शिक्षा-दीक्षा मनुस्मृति पर आधारित है| लिहाजा, मनु के विधान के अनुसार, उनका दलितों और स्त्रियों के प्रति अपमानजनक रवैया समझ में आता है| सवाल है राज्य पुलिस को क्या हो गया है?
वीएन राय, पूर्व आईपीएस
योगी द्वारा राज्य के दलितों को सफाई के नाम पर साबुन बांटना ठीक था, लेकिन जब गुजरात का एक दलित जत्था स्वयं उन्हें साबुन भेंट करने चला तो उसे झांसी से जबरदस्ती, पुलिस की मार्फ़त वापस भेज दिया गया| भाजपाई राज्य सरकारों पर अघोषित आपातकाल वाले इस तरह के कारनामों के आरोप लगना नयी बात नहीं रह गयी है|
योगी की पुलिस ने लखनऊ प्रेस क्लब से प्रोफ़ेसर दीक्षित और डीजीपी दारापुरी समेत आठ दलित अधिकार एक्टिविस्ट को गिरफ्तार कर देश के संविधान की धज्जियाँ उड़ा दीं| न धारा 144, जिसके तहत उनकी गिरफ्तारी की गयी, किसी प्राइवेट क्लब में लागू होती है और न ही उनके गुजरात जत्थे के समर्थन में प्रेस कांफ्रेंस करने से शांति भंग होने की रत्ती भर भी आशंका थी|
मान लिया, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की शिक्षा-दीक्षा मनुस्मृति पर आधारित है| लिहाजा, मनु के विधान के अनुसार, उनका दलितों और स्त्रियों के प्रति अपमानजनक रवैया समझ में आता है| कभी वे एंटी रोमियो अवतार में दिखते हैं और कभी दलित मुसहरों से उनकी बस्ती में मिलने जाने से पहले वहां सरकारी अमले से साबुन और शैम्पू बंटवा रहे होते हैं| सवाल है राज्य पुलिस को क्या हो गया है?
योगी के शब्दकोष में तो स्त्री और दलित सामान रूप से ‘गंदे’ समूह हुए| दोनों की ‘शुचिता’ की आवश्यकता वे पूरी करेंगे ही| पहले वे और उनकी हिन्दू वाहिनी इस मनु-कर्म में अपने तरह से डंडों के जोर से लगे होते थे, अब शासन की बागडोर मिलने पर स्वाभाविक है कि प्रशासनिक अमला भी उनके इस कार्यक्रम को चरितार्थ करने में जुट जाये| लेकिन जिस तरह उत्तर प्रदेश की पुलिस इस काम को अंजाम दे रही है, लगता है वह भी मनुवादी मूल्यों की ही एजेंट बन कर रह गयी है|
पुलिस की सिखलाई भारतीय संविधान में निहित समानता के मूल्यों एवं प्रावधानों की रक्षा की होती है| इनके अनुसार शासन-प्रशासन में लिंग, जाति या धर्म के नाम पर भेदभाव की कोई गुंजाइश नहीं हो सकती | पर योगी के एंटी रोमियो अभियान में लड़कियों की यौन स्वतंत्रता का जम कर दमन किया गया और अब स्वच्छता अभियान के नाम पर दलितों में साबुन-शैम्पू बांटकर उनकी भावनाओं का मजाक बनाया गया| साथ ही गौ गुंडों का आतंक है जो सर्वव्यापी ही कहा जाएगा|
क्या यौन स्वतंत्रता का दमन, यौन उत्पीड़न का ही एक घिनौना रूप नहीं? इस हिसाब से एंटी रोमियो अभियान में शामिल सभी यौन उत्पीड़न के दोषी हुए| इसी तरह, दलित समुदाय के जाति आधारित अपमान के लिए तो देश की संसद का बनाया दलित अत्याचार निवारण कानून है जिसके तहत योगी और उनके उस अमले को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए जो मुसहर बस्ती में योगी आगमन से पहले साबुन-शैम्पू बांटने के अपमान के पीछे है|
कहा जा रहा है कि पिछले दिनों योगी को लखनऊ विश्वविद्यालय में काले झंडे दिखाए जाने के बाद राज्य पुलिस जरूरत से अधिक सतर्क हो गयी है| झांसी से दलित जत्थे को जबरदस्ती गुजरात लौटाना और प्रेस क्लब से एक्टिविस्ट समूह की गिरफ्तारियां उसी का नतीजा हैं| यानी इन प्रकरणों में योगी का दोष नहीं है और यह सब पुलिस का अति-उत्साह मात्र है| प्रदेश के कर्मठ छवि के डीजीपी सुलखन सिंह से सवाल है कि उत्तर प्रदेश पुलिस की सतर्कता संविधान के पक्ष में क्यों नहीं काम कर सकती? धारा 144 तब क्यों नहीं इस्तेमाल की जाती जब हिन्दू वाहिनी के गुंडे गौ आतंक या लव जिहाद आतंक मचाते घूमते हैं|
आपातकाल में क्या यही नहीं हुआ था? अधिकारियों को झुकने को कहा गया था, वे रेंगने लगे थे| तभी अतियां हुईं और जनता को बेहिसाब भुगतना पड़ा| इसी से जुड़ा सवाल बनेगा कि क्या उच्च न्यायपालिका को ऐसे मामलों में तुरंत हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? विचारों की स्वतंत्रता की अवधारणा और समानता का सिद्धांत, जो संविधान के मूल तत्व हैं, और कब तक किसी मनुवादी योगी की व्यक्तिगत पसंद या नापसंद के मोहताज बने रहेंगे?