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राजनीति

अस्तित्व के समय से है PFI का विवादों से नाता, फुलवारीशरीफ साजिश ने साफ कर दिया BAN का रास्ता

Janjwar Desk
28 Sept 2022 5:09 PM IST
PFI Ban : पीएफआई को केंद्र का फैसला स्वीकार, संगठन भंग करने का किया ऐलान
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PFI Ban : पीएफआई को केंद्र का फैसला स्वीकार, संगठन भंग करने का किया ऐलान

Ban on PFI : बिहार की राजधानी पटना के फुलवारीशरीफ घटना से इस बात का खुलासा होना कि 2047 तक भारत मुस्लिम राष्ट्र बन जाएगा, पीएफआई ( PFI ) के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह साबित हुआ।

PFI के सरोकार Vs बैन पर धीरेंद्र मिश्र की रिपोर्ट

Ban on PFI : पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ( PFI ) का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। सिर्फ 15 साल के इतिहास में अपनी सक्रियता और प्रभाव क्षमता के दम पर यह संगठन अन्य सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व धार्मिक संगठनों के लिए चुनौती बन गया। यहां तक तो सबकुछ ठीक रहा लेकिन जन्म के समय से इसका उन संगठनों से नाम जुड़ता गया जो पहले से ही विवादित थे। बाद के वर्षों में संगठन ने अति उत्साह में कई ऐसे कदम उठाए जो उसके खुद के खिलाफ गए। केरल सरकार ने भी कानून विरोधी संगठन मान लिया था। कांग्रेस की सरकारों ने भी इसके खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। बाकी का काम सीएए-एनआरसी आंदोलन के दौरान हिंसक प्रदर्शन, सांप्रदायिक दंगों, सियासी हत्याओं और कई गंभीर मामलों की जांच के दौरान मिले सबूतों ने पूरे कर दिए, जो पीएफआई पर बैन ( Ban on PFI ) का सबब साबित हुआ। आइए, हम आपको बतातें हैं शुरू से लेकर अब तक कैसे पीएफआई विवादों ( PFI dispute ) में रहा और बैन के बाद भी वो सिलसिला जारी रहा।

1. SIMI का क्लोन होने की बात भी पीएफआई के खिलाफ रहा

1977 से देश में सक्रिय सिमी ( SIMI ) पर 2006 में प्रतिबंध लगा गया था। सिमी पर प्रतिबंध लगने के चंद महीनों बाद ही पीएफआई अस्तित्व में आया। कहा जाता है कि इस संगठन की कार्यप्रणाली भी सिमी जैसी ही है। यही वजह है कि इसे सिमी का क्लोन मान लिया गया है, जो संगठन के खिलाफ गया।

2. संविधान के प्रति असम्मान

क्रिमिनल और टेरर केसेस से जाहिर है कि इस संगठन ( PFI ) ने देश की संवैधानिक शक्ति के प्रति असम्मान दिखाया है। बाहर से मिल रही फंडिंग और वैचारिक समर्थन की वजह से इसे देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा माना गया। संगठन को लेकर धारणा यह बनी कि समाज के खास वर्ग को कट्टरपंथी बनाने के अपने सीक्रेट एजेंडा पर काम कर रहा है। ये देश के लोकतंत्र को दरकिनार कर रहा है। कई मौके पर संगठन के कार्यकर्ता संविधानिक मूल्यों का अपमान करते नजर आये। पीएफआई के वर्कर्स ने समय-समय पर पाकिस्तान जिंदाबार के नारे भी लागए।

3. फंड का गलत इस्तेमाल

संगठन विस्तार के पीछे इसका मकसद फंड जुटाने की क्षमता और अपने प्रभाव को बढ़ाना था। फंड जुटाने की क्षमता का इस्तेमाल पीएफआई ( PFI ) ने अपनी गैरकानूनी गतिविधियां बढ़ाने में किया। यही सहयोगी संगठन और फ्रंट्स की जड़ों को मजबूत करते रहे। बैंकिंग चैनल्स, हवाला और डोनेशन आदि के जरिए इसके लोगों ने भारत और विदेशों से करोड़ों रुपए इकट्ठा किया। जांच के दौरान पता चला कि इसका इस्तेमाल आपराधिक, गैरकानूनी और आतंकवादी गतिविधियों में किया गया।

4. इंटरनेशनल कनेक्शन

पीएफआई के 15 साल के इतिहास में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिनमें संगठन के मेंबर्स के संबंध ग्लोबल टेररिस्ट ग्रुप्स से मिले हैं। संगठन के मेंबर्स ने ईराक, सीरिया और अफगानिस्तान में आईएस को ज्वाइन किया। कई मुठभेड़ों में मारे गए। कई मेंबर्स की गिरफ्तारी हुई। देश में भी राज्यों की पुलिस और केंद्रीय एजेंसियों ने मेंबर्स को अरेस्ट किया। इसके संबंध जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश से थे जो प्रतिबंधित संगठन हैं।

5. RSS-CPM कार्यकर्ताओं की हत्या से PFI का कनेक्शन

2012 में केरल सरकार ने हाईकोर्ट में बताया था कि हत्या के 27 मामलों से पीएफआई ( PFI ) का सीधा कनेक्शन था। इनमें से ज्यादातर मामले आरआरएस ( RSS ) और सीपीएम ( CPM ) के कार्यकर्ताओं की हत्या से जुड़े थे। अप्रैल 2013 में केरल पुलिस ने कुन्नूर के नराथ में छापा मारा और पीएफआई से जुड़े 21 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। छापेमारी में पुलिस ने दो देसी बम, एक तलवार, बम बनाने का कच्चा सामान और कुछ पर्चे बरामद किए थे। पीएफआई ने दावा किया था कि ये केस संगठन की छवि खराब करने के लिए बनाया गया था। बाद में इस केस की जांच एनआईए को को सौंप दी गई। संजीत 2012 केरल, वी रामलिंगम 2019 तमिलनाडु, नंदू 2021 केरल, अभिमन्यु 2018 केरल, बिबिन 2017 केरल, शरथ 2017 कर्नाटक, आर रुद्रेश 2016 कर्नाटक, प्रवीण पुयारी 2016 कर्नाटक, शशि कुमार 2016 तमिलनाडु, और प्रवीण नेट्टारू 2022 कर्नाटक व अन्य मर्डर केस में सीधे पीएफआई का लिंक सामने आया।

6. 2017 में NIA ने बैन लगाने की मांग की थी

2017 में एनआईए ( NIA ) ने गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी। एनआईए की जांच में पीएफआई के कथित रूप से हिंसक और आतंकी गतिविधियों में लिप्त होने की बातें सामने आई थी। एनआईए ने अपने डोजियर में पीएफआई को राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया था। यह संगठन मुस्लिमों पर धार्मिक कट्टरता थोपने और जबरन धर्मांतरण कराने का काम करता है। इस पर हथियार चलाने के लिए ट्रेनिंग कैंप चलाने का आरोप है। साथ ही यह संगठन युवाओं को कट्टर बनाकर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने के लिए भी उकसाता है। इनकी गतिविधियां भी देश की शांति और धार्मिक सद्भाव के लिए खतरा बन सकती हैं। ये संगठन चुपके-चुपके देश के एक तबके में यह भावना जगा रहा था कि देश में असुरक्षा है और इसके जरिए वो कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रहा था।

7. हर जगह पीएफआई का नाम आया सामने

देश के उत्तरी हिस्से से लेकर दक्षिण भारत तक जब भी कोई बड़ा कांड होता तो पीएफआई को जिम्मेदार ठहराया जाता। सीएए प्रोटेस्ट के दौरान शाहीनबाग हिंसा, जहांगीरपुरी हिंसा दिल्ली, यूपी में कानपुर हिंसा, राजस्थान के करौली में हिंसा, मध्य प्रदेश के खरगौन में हिंसा, कर्नाटक में भाजपा नेता की हत्या, कर्नाटक में हिजाब विवाद में भी इस संगठन का नाम आ चुका है ।

8. पीएम मोदी भी थे टारगेट पर

प्रवर्तन निदेशालय ( ED ) ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ( PFI ) को लेकर एक दावा किया था कि जुलाई 2022 में बिहार की राजधानी पटना में पीएफआई ने पीएम मोदी ( PM Modi ) पर हमले करने की खतरनाक योजना बनाई थी। इसके लिए संगठन ने पटना में ट्रैनिंग कैंप भी लगाया था और कई सदस्यों को ट्रेनिंग देने का काम किया। पीएम मोदी के हर गतिविधियों पर नजर रखी जा रही थी। मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक केवल पीएम मोदी पर ही हमले नहीं बल्कि पीएफआई अन्य हमलों के लिए भी टेरर मॉड्यूल तैयार कर रहा था। पटना के फुलवारीशरीफ में साजिश में ये बातें भी सामने आई कि पीएफआई 2047 तक भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाना चाहता है। ये आरोप पीएफआई पर बैन का सबसे ब़ड़ा कारण साबित हुआ।

9. पीएफआई आई का इतिहास

Ban on PFI : पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी पीएफआई ( PFI ) का गठन 17 फरवरी 2007 को हुआ था। ये संगठन दक्षिण भारत के तीन मुस्लिम संगठनों का विलय करके बना था। इनमें केरल का नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट, कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथा नीति पसराई शामिल थे। वर्तमान में देश के 23 राज्यों में यह संगठन सक्रिय है। देश में स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट यानी सिमी पर बैन लगने के बाद पीएफआई का विस्तार तेजी से हुआ है। कर्नाटक, केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में इस संगठन की काफी पकड़ बताई जाती है। संगठन के गठन के बाद से ही पीएफआई पर समाज विरोधी और देश विरोधी गतिविधियां करने के आरोप लगते रहते हैं। कई विवादों में नाम आने के बाद आज पीएफआई पर केंद्र सरकार ने प्रतिबंध भी लगा दिया।

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