नेहा सिंह राठौर ने अपने पति हिमांशु सिंह के लिए लिया दृष्टि आईएएस के फाउंडर डॉक्टर विकास दिव्यकीर्ति से मोर्चा
Neha Singh Rathore v/s Vikas Divyakirti : कानपुर में प्रशासनिक लापरवाही और अवैध कहकर जिस दीक्षित परिवार की मां बेटी को जिंदा जला दिया गया था उस पर भोजपुरी गायिका नेहा सिंह राठौर ने यूपी में का बा 2 गाया था, जिसके लिए उन्हें कानपुर पुलिस ने नाटकीय ढंग से नोटिस थमाया था। फिर दृष्टि आईएएस में नौकरी करने वाले उनके पति हिमांशु कुमार की नौकरी चली गयी थी, जिस पर कहा जा रहा था कि दबाव के कारण उनके पति से इस्तीफा लिया गया, मगर दृष्टि आईएएस ने इसे गलत बताया था। मीडिया को दृष्टि आईएएस के फाउंडर विकास दिव्यकीर्ति ने कहा है, 'दृष्टि आईएएस में अपने कर्मचारी हिमांशु को यूपी सरकार के दबाव में नौकरी से निकाला है। इस तरह के दावे पूरी तरह से मनगढ़ंत है और इनके जरिए हमारी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया गया है।’
दृष्टि आईएएस की मानें तो नेहा के पति हिमांशु सिंह को हटाए जाने का फैसला इसलिए किया गया, क्योंकि वो बिना मंजूरी के लगातार छुट्टियां ले रहे थे और अपनी जिम्मेदारियों के प्रति लापरवाह थे। ये सिर्फ ये केवल एक संयोग ही था कि उन्हें हटाए जाने के फैसले के एक दिन बाद उनकी पत्नी नेहा सिंह राठौर को यूपी सरकार की तरफ से कानूनी नोटिस दिया गया।
मगर अब दृष्टि आईएएस के खिलाफ मोर्चा लेने के लिए नेहा सिंह राठौर खुलकर सामने आ गयी हैं। उन्होंने दृष्टि आईएएस के विकास दिव्यकीर्ति का खुलासा करने वाली एक पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर की है, पढ़िये नेहा सिंह राठौर की पोस्ट
लगभग हफ्ते भर से हिमांशु को फोन पर "नहीं सर मेरी गलती थी, उनका दोष नहीं है" बोलते सुन रही हूं. मीडिया के लोग हिमांशु से उनके इस्तीफे के बारे में पूछ रहे हैं, और वो खुद को दोषी बता रहे हैं.
ये हिमांशु की विनम्रता और उदारता है कि नौकरी छीने जाने के बाद भी वो दृष्टि संस्थान और डॉक्टर विकास की छवि को लेकर सजग हैं. पर अब जिस तरह से दृष्टि संस्थान मीडिया का उपयोग करके युद्धस्तर पर हिमांशु को एक लापरवाह व्यक्ति साबित करने में जुट गया है, मुझे उससे आपत्ति है.
हिमांशु जिस तरह नौकरी से निकाले जाने के बाद भी दृष्टि संस्थान की छवि को लेकर सतर्क रहे हैं, वो उन्हें लापरवाह नहीं बल्कि एक संवेदनशील और समर्पित कर्मचारी साबित करता है, वरना नौकरी से निकाले जाने के बाद मैंने लोगों को नियोक्ता के खिलाफ सिर्फ जहर उगलते देखा है.
कहना ये भी चाहती हूं कि बीते दिनों जब कुछ लोगों ने भगवान राम और सीताजी के मुद्दे पर दृष्टि संस्थान और डॉक्टर विकास के विरुद्ध घेराबंदी की थी, तब हिमांशु ने खुद आगे बढ़कर मुझे संस्थान का पक्ष लेने के लिए कहा था और मुझसे दृष्टि संस्थान और विकास जी के पक्ष में ट्वीट करने को कहा था... पर जैसे ही मेरे विरुद्ध घेराबंदी की गई, दृष्टि संस्थान ने हमारा साथ देने की बजाय हिमांशु से इस्तीफा मांग लिया.
ये बात बेहद दुखी करने वाली थी, और हिमांशु आज भी इस बात से आहत हैं.. रही-सही कसर दृष्टि संस्थान की तरफ से आ रहे बयानों ने पूरी कर दी है.
बतौर कर्मचारी दृष्टि संस्थान से 2015 में जुड़े हिमांशु को उनके सबसे बुरे वक्त में नौकरी से निकाल दिया गया... जिससे हिमांशु को हो या न हो, मुझे आपत्ति है. क्या इस बेहद जरूरी 'फायरिंग' प्रक्रिया को कुछ हफ्तों के लिए टाला नहीं जा सकता था?
मैं क्यों न मानूं कि हिमांशु की नौकरी सरकारी दबाव में छीनी गई? दृष्टि संस्थान का ये दावा पूरी तरह गलत है कि मुझे नोटिस मिलने से पहले ही हिमांशु को संस्थान से निकाल दिया गया था.
कानपुर देहात पुलिस ने 19 फरवरी का हस्ताक्षरित नोटिस मेरे ससुर जी को 20 फरवरी की दोपहर और मुझे 21 फरवरी की शाम को रिसीव करवाया जबकि हिमांशु ने अपना इस्तीफा 24 फरवरी को दिया.
ये सब कुछ कहना इसलिए भी जरूरी था, ताकि एक संवेदनशील और शुभचिंतक कर्मचारी के रूप में हिमांशु मूर्ख साबित न होने पाएं. दृष्टि संस्थान को हिमांशु की उदारता का सम्मान करना चाहिए था, पर उन्होंने हिमांशु की इस उदारता का उन्हीं के विरुद्ध उपयोग किया.