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राजनीति

गुजरात चुनाव में भाजपा को मिली बड़ी जीत कांग्रेस का सत्ता को 'वाक-ओवर' या फिर मोदी मैजिक?

Janjwar Desk
16 Dec 2022 11:20 AM GMT
गुजरात चुनाव में भाजपा को मिली बड़ी जीत कांग्रेस का सत्ता को वाक-ओवर या फिर मोदी मैजिक?
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जानिये कांग्रेस की वो 13 बड़ी गलतियां कौन सी हैं, जिन्होंने दिलायी गुजरात में भाजपा को इतनी बड़ी जीत...

हरे राम मिश्र की टिप्पणी

Gujrat Election Result : हाल में ही संपन्न हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राज्य में अब तक का सबसे बेहतरीन चुनावी प्रदर्शन किया. इस चुनाव में बीजेपी ने राज्य में कुल पड़े वोट का लगभग 52 फीसद हासिल किया और कांग्रेस को 27 फीसद के आस-पास वोट मिले. आम आदमी पार्टी की गुजरात विधानसभा चुनाव में भले ही यह पहली एंट्री थी, लेकिन उसे लगभग 12 फीसद वोट हासिल हुए।

बेशक, इस चुनावी जीत को देश के मीडिया संस्थानों द्वारा जहाँ नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों पर गुजरात की जनता का 'जनादेश' कहा गया, वहीं दूसरी तरफ राहुल गाँधी की भारत जोड़ो यात्रा की प्रासंगिकता को सवालों के घेरे में ला दिया. कुछ मीडिया चैनलों ने इस जीत बहाने नरेंद्र मोदी और अमित शाह के चुनावी कौशल की कुछ ऐसी प्रायोजित गाथा टीवी स्क्रीन पर गायी, जिसे देखकर 'चारण' भक्ति के नए कीर्तिमान बनते दिखाई दिये.

हालाँकि यह बात अलग है कि इसी समय संपन्न हुए दिल्ली एमसीडी और हिमाचल विधानसभा चुनावों में बीजेपी को पराजय का मुंह देखना पड़ा और उस हार के कारणों की कोई निरपेक्ष पत्रकारिता मूल्यों वाली समीक्षा नहीं हुई. खैर! यह आलेख बीजेपी की गुजरात में बम्पर चुनावी जीत के कारणों का विवेचन न करके कांग्रेस पार्टी के इतनी बुरी तरह हार जाने के कुछ बुनियादी कारणों की पड़ताल करता है.

इस आलेख के लेखक ने स्वयं गुजरात विधान सभा चुनाव के दौरान लम्बा वक्त गुजरात में बिताया है और कांग्रेस के प्रत्येक क्रिया कलाप पर निगाह रखी है. लेखक का यह मानना है कि बीजेपी की इस जीत के पीछे कोई मोदी मैजिक या फिर चमत्कार नहीं बल्कि कांग्रेस की राज्य इकाई द्वारा ठीक से चुनाव ही नहीं लड़ा जाना है. ऐसा क्यों हुआ यह अलग विषय है, लेकिन गुजरात चुनाव एक तरह का सत्ता को कांग्रेस का 'वाकओवर' था.

ऐसा कहने का कारण निम्नलिखित है-

1. गुजरात राज्य कांग्रेस कमिटी पूरे विधानसभा चुनाव तक हिंदुत्व की पॉलिटिक्स को नकारने का साहस नहीं कर पाई, जबकि बीजेपी ने चुनाव की घोषणा के बहुत पहिले ही इस चुनाव को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के मुहाने पर लाने की कोशिशें शुरू कर दी थीं. बीजेपी ने अपने इस प्रयास में कभी कोई कोई प्रतिरोध महसूस ही नहीं किया.

2. गुजरात राज्य कांग्रेस कमिटी ने पूरे चुनाव को Constructive Politics का नाम देकर 'कांग्रेस का काम बोलता है' जैसा चुनावी कैपेन लांच किया था. इस कैपेन ने राज्य सरकार की ज्ञात नाकामियों पर हमलावर होने के बजाय आज से 25 साल पहिले कांग्रेस पार्टी के किये गए कामों के नाम पर आम जनता से वोट माँगा. पार्टी की यह रणनीति अपने आप में हास्यास्पद थी और इसने राज्य की बीजेपी सरकार की घोर असफलताओं या नाकामियों पर राजनैतिक विपक्ष के बतौर हमलावर होने के बजाय उसे एक सेफ रास्ता दिया. यह कैम्पेन एक भयानक रणनीतिक गलती थी. कांग्रेस के नेता यह भूल गए थे कि देश की जनता को भूलने की बीमारी है और राजनीति में वर्तमान सरकार की असफलता पर हमलावर होना एक विपक्ष के अस्तित्त्व के लिए कितनी जरूरी चीज है.

3. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि गुजरात की राज्य सरकार के ज्यादातर अफसर, बीजेपी नेता और स्थानीय भाजपा नेतृत्व जनता की निगाह में न केवल घोर भ्रष्ट बल्कि नकारे हैं. बीजेपी को पूरा वोट मोदी और उनकी गुजरात अस्मिता के प्रतिनिधि होने के नाम पर ही मिलता है. बहुत चालाकी से बीजेपी ने इस पूरे चुनाव को मोदी के चहरे और गुजरात की अस्मिता से जोड़ दिया और मोदी के चेहरे पर ही चुना लड़ा. इसका फायदा यह हुआ कि एक तरफ जहाँ गुजरात बीजेपी को अपनी असफलताओं पर जनता की आलोचनाओं से मुक्ति मिल गई, वहीं मोदी का चेहरा गुजरात की अस्मिता और उसके प्रतिनिधि के चेहरे के बतौर राज्य में स्थापित हो गया. राज्य कांग्रेस नेतृत्व ने बीजेपी के इस इवेंट के खिलाफ कोई सियासी प्रयास ही नहीं किया. इस छवि को ध्वस्त करना कोई मुश्किल काम नहीं था. गुजरात की बीजेपी सरकार की असफलता पर बात करके इसकी कोशिश की जा सकती थी, लेकिन राज्य कांग्रेस ने इसे जरूरी नहीं समझा.

4. गुजरात राज्य के बड़े कांग्रेस नेताओं द्वारा और राष्ट्रीय स्तर के कांग्रेस नेताओं द्वारा भी कोई बड़ी चुनावी रैली करके राज्य सरकार और उसकी हिंदुत्व राजनीति को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश नहीं की गई. इसका फायदा भाजपा को मिला. भाजपा जनता के बीच हिंदुत्व की पिच पर अकेले ही खेल रही थी. इससे हिंदुत्व की बुनियाद पर वोट ध्रुवीकृत हुए क्योंकि समाज में कोई बहु सांस्कृतिक पक्ष लेने वाली बहस पैदा नहीं हो पाई और ध्रुवीकरण पर कोई सवाल ही नहीं हुआ. इसका नुकसान कांग्रेस को हुआ.

5. गुजरात में प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्षों के कई सक्रिय गुट हैं और पूरे गुजरात में गुटबाजी साफ़ देखी गई. समय रहते केन्द्रीय नेतृत्व को इसे ख़त्म कराना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसका भी नुकसान हुआ.

6. राज्य की इकाई द्वारा चुनाव में घोर उत्साहहीनता का प्रदर्शन किया गया. बीजेपी जहाँ आक्रामक तौर पर चुनावी रैलियां कर रही थी वही कांग्रेस का राज्य नेतृत्व उत्साहहीन था. इसका सन्देश कार्यकर्ताओं में यह गया कि पार्टी ही चुनाव लड़ने को लेकर सीरियस नहीं है. इस स्थिति ने आम आदमी पार्टी के लिए ग्राउंड स्तर पर कांग्रेस से कार्यकर्त्ता अपने पक्ष में जुटाने में काफी मदद की. क्योंकि कांग्रेस कार्यकर्ताओं में भी इस उत्साहहीनता की छाया देखी जा रही थी.

7. गुजरात की राज्य सरकार की असफलताओं पर कोई बात नहीं की जा रही थी, जबकि एक विपक्ष के बतौर राज्य की बीजेपी सरकार की असफलताओं पर बात करना विपक्ष का बुनियादी कर्तव्य था. पेपर लीक, किसानो की सिचाई का सवाल, ख़राब शिक्षा व्यवस्था, बदहाल स्वास्थ्य पर विपक्ष ने कोई बहस ही जनता के बीच प्रभावी तौर पर लांच नहीं की. इसका नुकसान कांग्रेस के खाते में आया.

8. गुजरात में राज्य कांग्रेस इकाई द्वारा राज्य के दस फीसद मुसलमानों का विश्वास जीतने की कोई मजबूत कोशिश नहीं की गई. पार्टी को लगता था कि मुसलमान इमरान प्रतापगढ़ी के शेर-शायरी सुनकर ही कांग्रेस को वोट कर देंगे, जबकि पार्टी चाहती तो बिलकिस बानो को विधानसभा टिकट ऑफर करके अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने की कोशिश कर सकती थी और इसे हिंदुत्व के खिलाफ एक मजबूत कदम के बतौर जनता में प्रचारित कर सकती थी. लेकिन पार्टी ने राज्य की प्रो-हिंदुत्व लीडरशिप के दबाव में ऐसा कदम नहीं उठाया. लिहाजा मुसलमानों ने आप पार्टी को वोट किया.

9. गुजरात राज्य में लगभग 14 फीसद आदिवासी हैं और उनके लिए विधानसभा में 27 सीटे आरक्षित हैं. कांग्रेस अपने पूरे चुनाव प्रचार अवधि में आदिवासी समुदाय के बीच संगठित तरीके से यह बताने में फेल हो गई कि RSS द्वारा उन्हें वनवासी कहे जाने का नुकसान क्या है और कांग्रेस पार्टी ने इस समुदाय को कैसे अधिकार देकर उनके हिस्से की जल, जंगल और जमीन पर उनकी दावेदारी को मजबूत और सुरक्षित रखा है. इसका नुकसान यह हुआ कि राज्य में आदिवासी समुदाय के हिंदुत्व फोल्ड में बह जाने के खिलाफ कोई बहस ही पैदा नहीं हो पाई. बीजेपी ने आदिवासी बेल्ट में शानदार प्रदर्शन किया.

10. राज्य में स्थानीय पार्टी संगठन को सक्रियता और समर्पण के स्तर पर बार बार जांचा जाना चाहिए था. क्योंकि आम आदमी पार्टी ज्यादातर विधान सभा सीटों पर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से संपर्क में थी और उन्ही के सहारे बूथ स्तर तक अपना प्रसार देख पा रही थी. चुनाव के दौरान कांग्रेस का वोट आप पार्टी को ट्रान्सफर हुआ है. यह रोका जा सकता था.

11. गुजरात विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस पर अपनी पहली चुनावी रैली से ही आक्रामक रहे. हालाँकि इस आक्रामकता का सन्दर्भ ज्यादातर भ्रामक और उसके फैक्ट गलत थे. लेकिन कांग्रेस पार्टी ने इसका कहीं प्रभावी प्रतिकार नहीं किया. इससे आम जनता में कांग्रेस के खिलाफ गलत धारणाएं बनीं.

12. राज्य इकाई द्वारा विधानसभा में चुनाव लड़ रहे कई ताकतवर निर्दलियों को अपने साथ लेने में कोई इमानदार रूचि नहीं ली गई. इसका नुकसान भी पार्टी को कुछ सीटों पर उठाना पड़ा.

13. अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि राज्य नेतृत्व अपने कार्यविधि से ग्राउंड कार्यकर्ताओं को यह सन्देश देने में विफल रहा कि निर्णय चाहे जो हो- विधानसभा चुनाव डट कर लड़ना है. इसका नतीजा यह हुआ कि हताश कार्यकर्त्ता आप पार्टी द्वारा कई स्तर पर मैनेज कर लिए गए.

कुल मिलाकर, गुजरात में बीजेपी की बम्पर जीत का कारण नरेंद्र मोदी का चमत्कारिक नेतृत्व और उनकी चुनावी कुशलता कम- कांग्रेस की चुनाव लड़ने की अनिच्छा ज्यादा जिम्मेदार है. जिस तरह से कांग्रेस ने अब तक मॉस पॉलिटिक्स की है उसके दिन अब ख़त्म हो चुके हैं. मॉस पॉलिटिक्स अब कैडर पॉलिटिक्स को कभी पराजित नहीं कर सकती. आम आदमी पार्टी की गुजरात में एंट्री और वोट पाने का यह प्रतिशत यह बताता है कि अब मॉस पॉलिटिक्स के दिन ख़त्म हो गए हैं. हिंदुत्व के खिलाफ लम्बी रेस वही लड़ सकेगा जिसके पास 'आईडिया ऑफ़ इंडिया' की स्पष्ट समझ वाले कैडर होंगे.

गुजरात चुनाव का कांग्रेस के लिए एक स्पष्ट सन्देश यही है कि वह मास पॉलिटिक्स के अपने सांगठनिक राजनीतिक तंत्र पर पुनः विचार करे. अन्यथा उसकी जगह आप पार्टी लेने को तैयार है. आप पार्टी कांग्रेस के लिए एक नया संकट बन कर सामने आ चुकी है. कांग्रेस नेतृत्व को अब बीजेपी के साथ इससे भी निपटना होगा.

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