BJP मंत्री ने संसद में बताया 5 सालों में महिला उत्पीड़न के 1 करोड़ मामले हुए दर्ज तो मोदी महिला सशक्तीकरण का मसीहा कैसे!
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महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
The status of women in our country is historically low, yet the Prime Minister presents himself as the champion of women empowerment – surprisingly mainstream media propagates PMs narrative. हमारे देश में सत्ताधारी बीजेपी और विशेष तौर पर प्रधानमंत्री मोदी के लिए हरेक योजना बस राजनीतिक श्रेय लेने का एक साधन है। कुछ भी होता है, या नहीं भी होता है तब भी धन्यवाद मोदी जी के पोस्टर और प्रधानमंत्री के चित्रों से दिल्ली रंग जाती है, मेनस्ट्रीम मीडिया और बीजेपी के समर्थक इसका श्रेय अकेले मोदी जी को देने की होड़ करते हैं और फिर यह चुनावों का एक मुद्दा बन जाता है।
हाल में ही आनन-फानन में संसद का विशेष सत्र बुलाकर 2029 तक लागू किये जा सकने वाले संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत महिलाओं के आरक्षण का बिल पास कराया गया। यह संविधान का 128वां संशोधन बिल है। जिस देश में महिलाओं की संख्या 48 प्रतिशत से अधिक है, उस देश में संभवतः 2029 में लागू किये जा सकने वाले वाले 33 प्रतिशत आरक्षण पर देश की सत्ता और मीडिया गदगद है। अब हरेक भाषण में इसकी मिसाल दी जा रही है, इसे ऐतिहासिक बताया जा रहा है – हास्यास्पद तो यह है कि विपक्ष भी यही कह रहा है। मोदी जी के रोड शो में महिलाओं का जत्था उन्हें धन्यवाद देते हुए सबसे आगे चलने लगा है।
प्रधानमंत्री अपने आप को महिलाओं का सबसे बड़ा हिमायती बताने लगे हैं, पर कोई यह नहीं पूछ रहा है कि बीजेपी किसी भी चुनाव में महिलाओं को 33 प्रतिशत स्थानों पर नामित क्यों नहीं करती? यदि बीजेपी को महिलाओं की इतनी ही चिंता है तो फिर महिला सांसदों/विधायकों की संख्या बढाने के लिए किसी बिल या किसी क़ानून का आसरा लेने की क्या जरूरत है? प्रधानमंत्री जी कहते हैं यह ऐतिहासिक है और गर्व की बात है – पर 48 प्रतिशत से अधिक महिलाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण का बिल पास होना क्या वाकई ऐतिहासिक है और गर्व की बात है?
लोकसभा में बीजेपी के 303 सदस्यों में से महज 41 महिलायें हैं, यह संख्या लगभग 13 प्रतिशत है, जबकि पूरे संसद में महिलाओं की भागीदारी 15 प्रतिशत है। 17वीं लोकसभा में महिलाओं की संख्या 78 है, जिसमें से 6 कांग्रेस की हैं। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में कुल 8054 प्रत्याशियों में से महिलाओं की संख्या 726 थी। बीजेपी में महिला प्रत्याशियों की जीत का प्रतिशत लगभग 75 प्रतिशत है, फिर भी महिला प्रत्याशियों की संख्या नहीं बढ़ती है।
विधानसभाओं में सबसे अधिक महिलाओं की संख्या है, यहाँ कुल विधायकों में से 26 प्रतिशत से अधिक महिलायें हैं। बीजेपी शासित राज्यों में महिला विधायकों की संख्या गुजरात में 23 प्रतिशत, उत्तराखंड में 20 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 17 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 14 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 11 प्रतिशत और हरयाणा में 10 प्रतिशत है। जाहिर है प्रधानमंत्री को महिलाओं का मसीहा साबित करने में जुटी बीजेपी में ही महिलाओं को एक-तिहाई प्रतिनिधित्व नहीं मिलता। महिलाओं को जनसंख्या के अनुरूप प्रतिनिधित्व देने के लिए तो यदि राजनीतिक दल प्रतिबद्ध हैं, तो फिर संविधान संशोधन का दिखावा क्यों? बीजेपी के लिए हरेक कदम राजनीतिक होता है, वर्ष 2024 के चुनावों में बिल पास करना एक महान सफलता के तौर पर प्रस्तुत किया जाएगा, और अगले चुनावों तक यदि जरूरत पडी तो सम्बंधित क़ानून बनाकर फिर से चुनावी लाभ लिया जाएगा।
देश में महिलाओं की स्थिति का वास्तविक आकलन करने के लिए कुछ आंकड़ों पर ध्यान देने की जरूरत है। वैश्विक स्तर पर संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 24 प्रतिशत है, पर भारत में यह संख्या महज 15 प्रतिशत है। देश की विधानसभाओं में तो महिलाओं की औसत संख्या 10 प्रतिशत तक सिकुड़ी हुई है। वर्ल्ड इकनोमिक फोरम के जेंडर गैप इंडेक्स में कुल 146 देशों में भारत का स्थान 127वां है। संयुक्त राष्ट्र के जेंडर इनइक्वलिटी इंडेक्स में शामिल 190 देशों में भारत का स्थान 122वां है। इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाईजेशन की रिपोर्ट के अनुसार देश के कुल श्रमिक और कर्मचारियों में से महिलाओं की भागीदारी महज 19.2 प्रतिशत है। रोजगार योग्य जेंडर गैप देश में 51 प्रतिशत है।
प्रधानमंत्री के राज्य गुजरात में शिक्षा में बालिकाओं की भागीदारी लगातार कम होती जा रही है। हाल में ही पेट्रोलियम केन्द्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने एक टीवी चैनल पर प्रधानमंत्री की प्रशंसा के पुल बांधते हुए बताया था कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब हरेक गाँव जा-जाकर हरेक बालिका का विद्यालयों में दाखिला कराते थे, पर गुजरात सरकार के वर्ष 2022-2023 के सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण में बालिकाओं की शिक्षा से सम्बंधित बिलकुल विपरीत तथ्य प्रस्तुत किये गए हैं।
वर्ष 2018-2019 में प्राथमिक कक्षाओं में बालिकाओं की संख्या 41.21 लाख थी, पर वर्ष 2022-2023 तक यह संख्या महज 40 लाख ही रह गयी। इसी तरह डिप्लोमा कर रही बालिकाओं की संख्या लगभग आधी रह गयी – वर्ष 2019-20 में तह संख्या 26026 थी, जबकि वर्ष 2022-23 में यह संख्या 13847 ही रह गयी। गुजरात के देगे प्रोग्राम में भी बालिकाओं की स्थिति ऐसी ही है – वर्ष 2019-20 में इसमें बालिकाओं की संख्या 3.79 लाख थी पर वर्ष 2022-23 में यह संख्या 1.85 लाख ही रह गयी।
इसी वर्ष केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने संसद में बताया गया था कि नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो ने पिछले 5 वर्षों में महिलाओं पर अत्याचार के 1 करोड़ से अधिक मामले दर्ज किये हैं। यही नहीं देश में हरेक दिन औसतन 246 बालिकाएं और 1027 महिलायें गायब हो जाती हैं। वर्ष 2021 में देश में 90113 बालिकाएं और 375058 महिलायें गायब हुईं।
हमारे देश में सत्ता आत्ममुग्ध है और स्वयं ही अपनी प्रशंसा करती है, धन्यवाद मोदी जी के पोस्टरों से शहर भर देती है – पर दुखद यह है मीडिया भी महिलाओं की वास्तविक स्थिति नहीं दिखाती और दूसरी तरफ किसी भी विपक्षी दल ने कभी देश में महिलाओं की कमतर स्थिति पर आवाज नहीं बुलंद की।