'GDP में भारी गिरावट के बीच सार्वजनिक उद्यमों को बेचना मानसिक दिवालियापन के संकेत,' भाजपा सांसद सुब्रमण्यन स्वामी ने साधा निशाना
जनज्वार। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद सुब्रमण्यन स्वामी अक्सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अपनी ही पार्टी की सरकार की नीतियों की आलोचना कर चर्चाओं में में रहते हैं। सार्वजनिक उद्यमों को बेचे जाने को लेकर उन्होंने रविवार को एक ट्वीट के जरिेए निशाना साधते हुए कहा कि ऐसे समय में जब अर्थव्यवस्था लगातार गिर रही है, सार्वजनिक उद्यम बेचना मानसिक दिवालियापन है।
सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने ट्वीट में लिखा, "जब देश की अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट हो रही है, ऐसे समय में सार्वजनिक उद्यम को बेचना मानसिक दिवालियापन और हताशा का संकेत है। यह एक अच्छी सोच नहीं है। मोदी सरकार इस बात से इनकार नहीं कर सकती है कि सीएसओ के आंकड़े बताते हैं कि 2016 के बाद से जीडीपी की ग्रोथ माही तिमाही, साल दर साल गिरती रही है।"
To sell public enterprises when economy in a deep decline is a sign of mental bankruptcy and desperation. It cannot be a healthy ideological imperative. Modi government cannot deny that CSO data shows that GDP growth declined quarter by quarter, year by year from 2016 onwards.
— Subramanian Swamy (@Swamy39) August 28, 2021
वहीं स्वामी के ट्वीट पर यूजर्स अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। एस के जैन लिखते हैं- "सर, इतने सारे मुफ्त के लिए और पैसा कहां से आएगा... या तो टैक्स बढ़ाओ या विमुद्रीकरण करो.. मुश्किल समय में, किसी को जीवित रहने के लिए परिवार के गहने किराए पर देने या बेचने पड़ते हैं।"
sir, where else money will come from for so many freebies.... either raise taxes or demonetise.. In difficult time, one has to rent out or sell family jewels for survival
— Er SK Jain retired (@skjainiit) August 29, 2021
हैरी नाम के एक यूजर लिखते हैं- "देश में बहुसंख्य आबादी के लिए सभी प्रमुख सार्वजनिक उद्यम रोजगार के बड़े स्रोत हैं। इसे निजी कंपनियों को बेचने या उधार देने से उन्हें अधिक लाभदायक या टिकाऊ बनाने के बहाने बड़े पैमाने पर नौकरी में कटौती हो सकती है... परिवारों के लिए यह कठिन स्थिति हो सकती है।"
All major public enterprises are huge sources of employment for Marjority population in the country. Selling or loaning it to private players can lead to massive job cuts in the pretext of making them more profitable or sustainable... This can be difficult situation for families.
— Harry (@cricfreac) August 29, 2021
आशुतोष लिखते हैं- "भारत सरकार यह नहीं कह सकती कि उसके बिजनेस क लिए कोई बिजनेस नहीं है। एक तरफ यह सबकुछ मुफ्त (वैक्सीन, घर, गैस) दे रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सार्वजनिक उपक्रमों को बेच रहे हैं। दोनों साथ नहीं चल सकते।"
The GoI can't say that it has no business to be in business. On one hand it is giving everything for free (vaccine, homes, gas) and is selling the PSUs to generate investment. Both can't go together.
— Ashutosh Uma Balakrishnan (@ashu221997) August 29, 2021
बता दें कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में छह लाख करोड़ रुपये की नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन की घोषणा की थी जिसके तहत वित्तीय वर्ष 2022-25 तक छह लाख करोड़ रुपये की संपत्ति निजी क्षेत्र को लीज पर दिए जा सकते हैं। इनमें रेलवे, बिजली से लेकर सड़क जैसे अलग-अलग बुनियादी ढांचा क्षेत्रों की संपत्ति शामिल हैं।
वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा था कि सरकार केवल अंडर यूटिलाइज्ड एसेट्स को ही निजी क्षेत्र को देगी। संपत्ति का स्वामित्व सरकार के पास ही रहेगा और प्राइवेट सेक्टर के पार्टनर को तय समय के बाद अनिवार्य रूप से इनका नियंत्रण वापस करना होगा।