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राजनीति

हमारे देश में पारंपरिक तौर पर जघन्य अपराध से भी बड़ा अपराध बन गया है पीएम मोदी का विरोध करना

Janjwar Desk
25 March 2023 8:47 AM GMT
हमारे देश में पारंपरिक तौर पर जघन्य अपराध से भी बड़ा अपराध बन गया है पीएम मोदी का विरोध करना
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file photo

केवल पुलिस का ही नहीं, बल्कि इस सरकार ने यह भी दुनिया को दिखा दिया कि सभी संवैधानिक संस्थानों, जांच एजेंसियों और कम से कम स्थानीय न्यायालयों का आसानी से केन्द्रीयकरण किया जा सकता है, और अपने आदेशों पर नचाया जा सकता है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

WE, the Indians, are politically and socially dead people. हमें प्रधानमंत्री मोदी, भारतीय जनता पार्टी और उनके तमाम समर्थकों का धन्यवाद अदा करना चाहिए, क्योंकि इन लोगों ने बार बार हमें यह बताया है कि हम भारतवासी राजनैतिक और सामाजिक तौर पर एक ऐसी आबादी का देश है जो सांस तो लेती है पर मानसिक तौर पर मुर्दों का देश हैं। ऐसा शायद दुनिया के इतिहास में पहली बार किसी देश में हो रहा होगा कि जनता कुछ सोच ही नहीं रही है या जनता अपनी सभी तकलीफों को भूल चुकी है। जिस देश में लोग कभी खुद दुःख सहकर भी दूसरों की मदद के लिए आगे आते थे, उस देश में अपने घर के दूसरे सदस्यों पर सत्ता द्वारा अत्याचार के बाद भी शेष सदस्य विरोध करना तो दूर, अपनी आँखें भी नहीं खोलते हैं। प्रधानमंत्री मोदी यदि देश की सत्ता में नहीं आते तो कभी पता ही नहीं चलता कि भूखे, बेरोजगार, असमानता की मार झेलते लोग भी अंधभक्ति में लीन हो सकते हैं।

आज इस देश में पारंपरिक तौर पर जघन्य अपराध से भी अधिक बड़ा अपराध मोदी जी का विरोध हो गया है। पुलिस के लिए भी अब बस यही काम रह गया है कि बस केवल यही देखे कि मोदी जी के विरोध में कौन पोस्टर लगा रहा है, कौन उनके विरुद्ध ट्वीट कर रहा है, या फिर उनके विरुद्ध बात कर रहा है। पिछले वर्ष नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देश के सभी महानगरों में से दिल्ली महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित है। देश के 19 महानगरों में सम्मिलित तौर पर महिलाओं पर अत्याचार से सम्बंधित जितने वारदात रिकॉर्ड किये गए, उनमें से 32.20 प्रतिशत मामले अकेले दिल्ली के थे। दिल्ली और दूसरे महानगरों में कितना अंतर था, यह दूसरे स्थान पर रहे मुंबई के आंकड़ों से स्पष्ट है, जहां कुल 12.76 प्रतिशत वारदातें दर्ज की गईं – यानि दिल्ली की तुलना में आधे से भी कम।

इसके बाद भी आलम यह है कि एक जिन्दा लड़की को कार से घसीटा जाता है, वह मर जाती है फिर भी कई किलोमीटर उसे घसीटा जाता है, पर पुलिस को कुछ पता नहीं चलता। घटना की जानकारी देने पर भी पुलिस नहीं आती, पर राहुल गांधी के वक्तव्य पर सबूत माँगने पुलिस तुरंत पहुँच जाती है, “मोदी हटाओ, देश बचाओ” का पोस्टर लगते ही, बल्कि लगाने से पहले ही पुलिस धड-पकड़ शुरू कर देती है। जिस पुलिस पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि किसी वारदात के बाद पीड़ितों की ऍफ़आईआर दर्ज नहीं की जाती, वही पुलिस एक साधारण से पोस्टर के मामले में सौ से अधिक ऍफ़आईआर दर्ज कर साहब बहादुर को खुश करती है।

पुलिस के अनुसार पोस्टर मामले में जुर्म यह था कि पोस्टर पर प्रिंटिंग प्रेस का नाम नहीं था और यह अवैध जगह लगाए गए थे। पुलिस शायद सत्ता की चाटुकारिता में इतनी लीन है कि उसे दिल्ली में लगे पोस्टरों की खबर ही नहीं है। यहाँ तो प्रधानमंत्री मोदी के चित्र वाले पोस्टरों पर भी प्रेस का नाम नहीं होता और अवैध जगहों पर लगे होते हैं। भारतीय जनता पार्टी द्वारा लगाये गए पोस्टरों पर भी प्रेस का नाम नहीं होता। तमाम मेट्रो के खम्भे और एलेवेटेड रोड के खम्भे पोस्टरों से भरे रहते हैं, और शायद ही किसी में प्रेस का नाम रहता है।

केवल पुलिस का ही नहीं, बल्कि इस सरकार ने यह भी दुनिया को दिखा दिया कि सभी संवैधानिक संस्थानों, जांच एजेंसियों और कम से कम स्थानीय न्यायालयों का आसानी से केन्द्रीयकरण किया जा सकता है, और अपने आदेशों पर नचाया जा सकता है। बीजेपी भले ही दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी होने का दावा करे पर चेहरा-विहीन पार्टी है – यह पार्टी नहीं बल्कि एक व्यक्ति है जिसका चेहरा ग्राम पंचायत के चुनावों से लेकर लोक सभा के चुनावों तक नजर आता है। आत्म प्रशंसा में विभोर और आत्ममुग्ध चेहरा, और ऐसे चहरे हमेशा निरंकुश सत्ता का प्रतीक रहते हैं।

निरंकुश सत्ता भले ही तमाम सुरक्षा घेरे में चलती हो पर निश्चित तौर पर हमेशा डरी रहती है – कभी पोस्टर से डरती है, कभी पूंजीपतियों पर प्रश्न पूछे जाने से डरती है और कभी लोकतंत्र के नाम पर डरती है। आश्चर्य सत्ता या मीडिया पर नहीं होता, बल्कि जनता पर होता है जिसने सोचना-विचारना बिलकुल बंद कर दिया है। जनता की राजनैतिक सोच ख़त्म हो गयी है, साथ ही देश का सामाजिक ताना-बाना ख़त्म हो गया है। समाज विज्ञान से सम्बंधित सभी इंडेक्स में हम सबसे अंत में कहीं खड़े रहते हैं, पर ऐसा कोई इंडेक्स होता जो देशों का आकलन उसकी जनता की उदासीनता पर होता तो हम निश्चित तौर पर उसमें अव्वल रहते।

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