Mamata Banerjee : क्या पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 2024 में मोदी का बन सकती हैं विकल्प ?
गणतंत्र दिवस परेड से पश्चिम बंगाल की प्रस्तावित झांकी रिजेक्ट
वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण
Mamata Banerjee जनज्वार। पूर्व प्रधानमंत्री वी पी सिंह अक्सर कहते थे, 'साहस से ही करिश्मा पैदा होता है।' चूंकि ममता बनर्जी नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को सीधे चुनौती देती हैं, बंगाल से बाहर के ऐसे लोग उनकी ओर आकर्षित हो सकते हैं, जिनका भाजपा (BJP) से मोहभंग हो रहा है। ममता (Mamata Banerjee) की कहानी बंगाल के तट से कितना आगे तक जाएगी, अभी यह तय नहीं किया जा सकता।
तृणमूल पश्चिम बंगाल (TMC) में अपनी पकड़ और मजबूत कर रही है। मई में हुए चुनाव में उसे मिली शानदार जीत के बाद उससे छिटकर भाजपा (BJP) में गए विधायकों की 'घर वापसी' का सिलसिला चल पड़ा है। चार विधायक वापस आ चुके हैं और बताया जाता है कि 24 कतार में हैं। आत्मविश्वास से भरी ममता आज भाजपा पर यह कहकर चुटकी ले सकती हैं कि उसे उनकी पारंपरिक सीट भवानीपुर से लड़ कर अपना पैसा बर्बाद करने की जरूरत नहीं है, जहां से वह फिर से चुनाव लड़ने जा रही हैं और जहां गुरुवार को मतदान हो रहा है।
सात सालों के मोदी राज में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 'हर चुनाव हर हाल में जीतने' और ऐसा न कर पाने पर हारी हुई बाजी को पलटने में साम-दाम, दंड और भेद की जो बुरी आदत पड़ गई है, उसके मद्देनज़र शायद ही किसी को विश्वास रहा हो कि वह पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव (West Bengal Assembly Election) में वहां सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) के हाथों श्यामा प्रसाद मुखर्जी की धरती पर पहली बार कमल खिलाने के अपने मंसूबे को लगे आघात को आसानी से सह लेगी।
मतदाताओं के फैसले को सदाशयता व विनम्रतापूर्वक स्वीकार कर लेने का उसे अभ्यास ही नहीं है। ऐसे में उससे यह अपेक्षा तो बेकार ही थी कि वह मान लेगी कि मतदाताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रचार-अभियान में ममता राज पर लगाई गई हिंसा (Violence) और भ्रष्टाचार (Corruption) की सारी तोहमतों को खारिज कर दिया है। भाजपा ने मई में चुनावी नतीजे से हताश होकर लगातार ममता को परेशान करने की कोशिश की है और ममता हर बार 'बंगाल की शेरनी' बनकर उभरती रही हैं।
बंगाल विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत हासिल करके लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री बनीं ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की नजरें अब दिल्ली पर हैं। तृणमूल कांग्रेस (TMC) देशभर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में जुट गई है। पिछले दिनों ममता बनर्जी के पोस्टर पीएम मोदी के गृहराज्य गुजरात के अहमदाबाद में भी नजर आए थे।
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ममता बनर्जी को रोकने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन ममता ने ना सिर्फ बीजेपी की उम्मीदों पर पानी फेर दिया बल्कि पहले से अधिक सीटें लेकर सत्ता में वापसी करने में सफल रहीं। बंगाल के नतीजों के बाद से उनके हौसले बुलंद हैं और टीएमसी के नेताओं का मानना है कि 'दीदी' मोदी के खिलाफ विकल्प बन सकती हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, 2024 लोकसभा चुनाव से पहले टीएमसी इस दिशा में कुछ बड़े ऐलान कर सकती है।
बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के चुनावों में पूरी ताकत झोंक दी थी, वैसा ही जैसे वो हर चुनाव में करती है, चाहे चुनाव राज्यों का हो, स्थानीय निकायों का हो या फिर लोकसभा (Loksabha) का। दावे जाहिर है जीत के किए जा रहे थे, लेकिन अंदर से बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को भी पता था कि ऐसा करना आसान नहीं होगा। एक तो पश्चिम बंगाल में पार्टी का ढांचा अब भी पूरी तरह तैयार नहीं है, धरातल पर हर जगह उसके लोग नहीं हैं। दूसरा ये कि पश्चिम बंगाल में मुस्लिम वोट बहुत बड़ी तादाद में है और सैकड़ों सीटों पर निर्णायक भूमिका में। मुस्लिम वोटर की प्राथमिकता बहुत स्पष्ट है। जो भी पार्टी बीजेपी को हराने में सक्षम है, उसके साथ वो जाता है।
पश्चिम बंगाल में भी यही हुआ कभी लेफ्ट फ्रंट (Left Front) के साथ जुड़े रहने वाले मुस्लिम मतदाता ममता बनर्जी के साथ पिछले एक दशक में जुड़े और बाकी बचे-खुचे भी इस बार पूरी तरह ममता के साथ लग गए। यही हाल कांग्रेस को वोट करते आए मुस्लिम मतदाताओं का भी रहा। कांग्रेस और लेफ्ट तो ठीक, उस फुरफुरा शरीफ के लिए भी उन्होंने अपना वोट बर्बाद नहीं किया, जिसके बारे में कहा जाता है कि पश्चिम बंगाल के बड़े हिस्से में उसका प्रभाव है। मुस्लिम मतदाता पूरी ताकत से टीएमसी के साथ लग गए, क्योंकि उन्हें लगा कि यही पार्टी बीजेपी को राज्य में सत्ता की बागडोर थामने से रोक सकती है।
तृणमूल की नजर अन्य राज्यों पर भी है। ममता पूर्वोत्तर भारत में अपना आधार बढ़ाना चाहेंगी, जहां बंगालियों की ठीक-ठाक आबादी है। इन सारे राज्यों में लोकसभा की 25 सीटें हैं, जो कि किसी भी मध्यम आकार के राज्य के बराबर है। वह पहले ही त्रिपुरा में काम शुरू कर चुकी हैं, जहां 2023 में चुनाव होने हैं। ममता बनर्जी ने सुष्मिता देव (Sushmita Dev) को तृणमूल में शामिल कर एक मजबूत संदेश दिया है। सुष्मिता त्रिपुरा (Tripura) में तृणमूल के लिए मददगार हो सकती हैं, जहां से उनके पिता संतोष मोहन देव ने दो बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था। वैसे उनका परिवार असम के कछार जिले से आता है। सुष्मिता देव कभी राहुल गांधी की कोर टीम का हिस्सा थीं, लेकिन कांग्रेस के भीतर के कुछ अन्य नेताओं की तरह असम विधानसभा चुनाव के समय दरकिनार किए जाने के बाद उनका मोहभंग हो गया।
कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओं को सुष्मिता ने राह दिखाई है कि यदि वे भाजपा (BJP) में नहीं जाना चाहते, तो वे दीदी का हाथ थाम सकते हैं। यह भी गौर करें कि पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं।
विपक्षी एकजुटता कैसा रूप लेती है, यह इस पर निर्भर है कि आने वाले महीनों में क्या कुछ घटता है। अबसे लेकर 2024 के बीच एक दर्जन राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। तस्वीर 2023 के अंत या 2024 की शुरुआत में ही साफ होगी। लेकिन विपक्षी दलों को अपना आख्यान बनाने, सड़क पर उतरने, जमीनी स्तर पर काम करने, अपने वोट आधार को मजबूत करने और गठबंधन बनाकर राज्यों में भाजपा का विकल्प बनाने से कोई चीज रोक नहीं रही है।
बंगाल की बेटी अब भारत की बेटी बनने की राह पर है। पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने नारा दिया था बंगाल को चाहिए बंगाल की बेटी और इस नारे ने मोदी, शाह, नड्डा और योगी के तूफानी हमलों के खिलाफ ममता बनर्जी को न सिर्फ रक्षा कवच दिया बल्कि उन्हें विजय की माला भी पहनाई। अब इसी नारे को विस्तार देकर बंगाल की बेटी ममता बनर्जी भारत की बेटी बनकर 2024 में नरेंद्र मोदी की अगुआई वाले भाजपा गठबंधन को टक्कर देने की व्यूह रचना में जुट गई हैं। अपनी रणनीति के पहले चरण में ममता ने पश्चिम बंगाल के बाहर अपनी राजनीतिक स्वीकार्यता बनाने की कवायद शुरु कर दी है।