Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

ममता बनर्जी और अखिलेश यादव का नया मोर्चा —मोदी सरकार के लिए चुनौती या फिर आशीर्वाद

Janjwar Desk
17 March 2023 3:02 PM GMT
ममता बनर्जी और अखिलेश यादव का नया मोर्चा —मोदी सरकार के लिए चुनौती या फिर आशीर्वाद
x
Lok Sabha Election 2024 : जो लोग भी कांग्रेस के नेताओं को जानते हैं, वह समझ सकते हैं कि कांग्रेस में कोई एक नेता नहीं है जिसको कि राहुल के अलावा सामूहिक रूप से नेतृत्व की क्षमता दी जाए...

अजय प्रकाश की टिप्पणी

Lok Sabha Election 2024 : कोलकाता की सर जमी पर आज अखिलेश यादव और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुलाकात हुई है और उसके बाद जो एक नए मोर्चे की घोषणा हुई है उससे विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों में ही सनसनी का माहौल है। ममता बनर्जी और अखिलेश यादव की ओर से की गई टिप्पणियों के आधार पर जो खबरें अब तक मीडिया में आई हैं उसमें बहुत साफ हो गया है कि अखिलेश यादव और ममता बनर्जी एक ऐसा मोर्चा बनाना चाहते हैं जिसमें कि कांग्रेस का नेतृत्व शामिल न हो।

आज 17 मार्च को उसी के मद्देनजर अखिलेश यादव जो कि उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं और ममता बनर्जी की मुलाकात कोलकाता में हुई है। दोनों नेताओं की कोलकाता में हुई इस मुलाकात को 2024 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर न सिर्फ महत्वपूर्ण माना जा रहा है, बल्कि विपक्षी एकता को लेकर भी उम्मीदें और चिंता एक साथ जाहिर की जा रही हैं।

एक तरफ जहां कांग्रेस समर्थित बुद्धिजीवी और पत्रकार इसे भाजपा की मजबूती के रूप में देख रहे हैं, वहीं कांग्रेस के बिना मोदी को हराने की रणनीति को चाहने वाले बुद्धिजीवियों और विश्लेषकों का मानना है कि यह शुरुआत एक सकारात्मक पहल है, जोकि 2024 के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के लिए एक बड़े मुकाबले के रूप में तैयार होगी।

ममता बनर्जी अपनी इस रणनीति के तहत अगले 21 मार्च से 23 मार्च के बीच उड़ीसा प्रवास पर हैं। उस दौरान वह उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक से मुलाकात करेंगी और उम्मीद है कि वह बीजू पटनायक को अपने इस नए मोर्चे में शामिल करने की भी पहल करें। माना यह भी जा रहा है कि आने वाले दिनों में ममता बनर्जी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन से एक राजनीतिक मुलाकात करेंगी और वह वहां भी इस बात का जिक्र करेंगे कि बिना कांग्रेस के वह विपक्षी मोर्चे में शामिल हों।

ऐसे में अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह मोर्चा सही मायने में भाजपा को हराने के मुकाबिल खड़ा होगा या फिर विपक्ष को कमजोर कमजोर करने की भाजपा की रणनीति का हिस्सा है। हालांकि यह बात पक्ष में कही जाए या विपक्ष में, दोनों ही विश्लेषण के तौर पर ही सही माने जा सकते हैं, क्योंकि किसी भी बात यानी बगैर कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष खड़ा करना भाजपाई एजेंडे का हिस्सा है, यह मानना भी एक कांग्रेसी पोलिटिकल थ्योरी का ही हिस्सा माना जाना चाहिए।

पिछले 2014 और 2019 के चुनाव को अगर देखा जाए तो दोनों ही लोकसभा चुनाव में इस बात पर काफी बल दिया जाता रहा कि बगैर कांग्रेस के अगर कोई राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष मोर्चा बनाता है तो भाजपा उससे मजबूत होगी। लेकिन दोनों ही चुनाव के अनुभव बहुत साफ करते हैं कि इन दोनों ही चुनाव में 2014 हो या फिर 2019 का लोकसभा चुनाव विपक्ष द्वारा कांग्रेस की नेतृत्वकारी भूमिका में ही लड़े गए, बावजूद उसके भाजपा लगातार मजबूत होती गई। संभवत यही राजनीतिक निराशा है, जिसके कारण अब आम आदमी पार्टी हो या फिर दक्षिण भारत के स्टालिन की पार्टी हो या फिर पूर्वोत्तर भारत के एक हिस्से से आने वाली ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस, यह सभी दल सोच रहे हैं कि कांग्रेस के बगैर अगर विपक्षी एकता होती है तो प्रधानमंत्री मोदी की छवि के मुकाबले खड़ा होना आसान है।

ममता बनर्जी हो या फिर अखिलेश यादव या फिर फिर आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल, इन सभी को लगता है कि अगर भारतीय लोकतंत्र में चुनाव मोदी बनाम राहुल गांधी के होते रहे तो राहुल गांधी की छवि उनकी कार्यनीति और रणनीतिक भाषा शैली की आक्रामकता और देशज पकड़ की जो धार है उसके मुकाबले राहुल गांधी कहीं खड़े नहीं दिखाई देते हैं। विपक्ष के अन्य दलों का बहुत साफ मानना है कि राहुल गांधी वर्सेस मोदी का जो चुनाव है, वह कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा नहीं है बल्कि यह भाजपा की रणनीति का हिस्सा है, जिसमें कि पिछले दो चुनावों से लगातार कांग्रेस लपेट ली जा रही है भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व रणनीतिकारों के द्वारा।

ऐसे में इन विश्लेषकों की बात पर ध्यान दिया जाए तो साफ है कि 2024 में यह येन केन प्रकारेण चाहे ममता बनर्जी की पार्टी हो या अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी या फिर आम आदमी पार्टी, कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष एक साथ चुनाव नहीं लड़ेगा। अब सवाल यह उठता है कि इसको विपक्षी नई एकता के रूप में देखा जाए या विपक्षी विघटन के रूप में। विपक्ष की एकता के सवाल पर भी विपक्ष मोटे तौर पर दो हिस्सों में बंटा हुआ है।

विपक्ष के एक बड़े हिस्से का मानना है कि अगर मोदी वर्सेस राहुल चुनाव लड़ा गया 2024 का तो मोदी की जीत होनी जो तय मानी जा रही है वह चुनौतीपूर्ण होगी। लेकिन अगर विपक्षी एकता पूरे राष्ट्रीय स्तर पर हुई और उसमें कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी का चेहरा नहीं सामने रखा गया तो हो सकता है कि मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती पेश आए, पर संकट यह है कि अगर कांग्रेस राहुल गांधी का चेहरा सामने नहीं करेगी तो उसके पास कोई राष्ट्रीय स्तर पर न तो चेहरा है, न तर्कशील आवाज ही है।

जो लोग भी कांग्रेस के नेताओं को जानते हैं, वह समझ सकते हैं कि कांग्रेस में कोई एक नेता नहीं है जिसको कि राहुल के अलावा सामूहिक रूप से नेतृत्व की क्षमता दी जाए। इस वक्त राहुल गांधी कांग्रेस में​ सिर्फ सांसद के सिवाय कुछ और नहीं हैं, बावजूद वह अघोषित अध्यक्ष हैं। शायद यही वजह है कि कांग्रेस के लिए बार बार भाजपा परिवारवाद कहती है और उसको प्रचारित करने में सफल भी होती है।

ऐसे में जाहिर तौर पर यह हो सकता है कि ममता बनर्जी और अखिलेश यादव की एकता से विपक्ष को नई ताकत मिले। हालांकि मैं पहले भी कह चुका हूं यह सिर्फ विश्लेषण है, क्योंकि विपक्ष की चाहे कांग्रेसमुक्त धारा हो या कांग्रेसयुक्त धारा,दोनों के पास कोई ऐसा उदाहरण 2014 से अब तक नहीं है जिसमें यह साफ तौर पर कहा जा सके कांग्रेस के साथ लड़ने पर विपक्ष का प्रदर्शन अच्छा रहेगा या कांग्रेस को छोड़कर बेहतर रहेगा।

Next Story

विविध