मेनका गाँधी के लेटर बम से भाजपा में तूफान, उत्तराखण्ड की तीरथ सरकार को घेरकर कहा माफिया से मिले हैं अधिकारी
केंद्रीय मंत्री व सांसद मेनका गांधी ने लेटर बम फोड़ते हुए तीरथ सरकार के लिए पैदा कर दी हैं मुश्किलें
सलीम मलिक की रिपोर्ट
रामनगर, जनज्वार। त्रिवेंद्र रावत की भाजपा सरकार के दौरान वन विभाग के एक अधिकारी पर खनन कारोबार को बढ़ावा दिए जाने के कथित आरोप की चिट्ठी से प्रदेशभर की राजनीति में हंगामा बरपाने वाली पूर्व केंद्रीय मंत्री व सांसद मेनका गांधी ने मौजूद तीरथ सिंह रावत की सरकार में एक बार फिर लेटर बम फोड़ते हुए राज्य सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है।
खनन माफियाओं को बढ़ावा दिए का आरोप लगाते हुए श्रीमती गाँधी ने अपनी इस चिट्ठी के माध्यम से न केवल सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है, बल्कि विधानसभा चुनाव से कुछ समय पूर्व ही विपक्ष को बैठे-बिठाये एक बड़ा मुददा थमा दिया है। सरकार को सांसत में डालने वाली मेनका गाँधी की यह चिट्ठी इसलिए भी भाजपा की गले की हड्डी साबित होने वाली है कि यह विधानसभा चुनाव फतह पर चिंतन-मनन करने के लिए पार्टी द्वारा प्रस्तावित तीन दिवसीय चिंतन शिविर से चंद दिन पहले ही सार्वजनिक हुई है।
अपनी चिट्ठी में मेनका गांधी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के दौरान लिए गए उस फैसले पर सवाल खड़े किए हैं जिसको अब तीरथ सरकार अमलीजामा पहनाने की कोशिश कर रही है। घटनाक्रम नैनीताल जिले के बैलपड़ाव और उधमसिंह नगर के बाजपुर में माइग्रेटरी बर्ड कम्युनिटी रिजर्व बनाने से जुड़ा हुआ है। त्रिवेंद्र सरकार में लिए इस निर्णय के तहत सरकार की मंशा थी कि इस स्थान पर प्रवासी पक्षियों के लिए कृतिम झील का निर्माण किया जाए। जहां प्रवासी पक्षी आ सकें तथा इस झील को भविष्य में पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए।
लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री व सांसद मेनका गांधी ने सरकार के इस प्रोजेक्ट पर सवाल खड़े करते हुए खनन माफियाओं को बढ़ावा देने वाला कदम बता डाला। मेनका गांधी ने कहा है सरकार जिस तरह से इस प्रोजेक्ट के बारे में सोच रही है, उसका होना संभव नहीं है। माइग्रेटरी बर्ड ऐसे नहीं आती है और यह सारा खेल खनन माफियाओं को फायदा पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। ऐसा करने से आसपास के क्षेत्रों में वन्य जंतुओं का जीवन प्रभावित होगा।
कुल मिलाकर यह पूरा मामला नेता, अफसर और खनन माफियाओं का गठजोड़ प्रतीत हो रहा है। बैलपड़ाव और बाजपुर में माइग्रेटरी बर्ड कम्युनिटी रिजर्व के निर्माण का शासनादेश गुजरे साल सात अगस्त को जारी किया गया। जिस पर सांसद श्रीमती गांधी ने दो महीने बाद ही 26 अक्टूबर को तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को पत्र लिखकर सवाल खड़ा किया था कि क्या इन दोनों स्थानों पर माइग्रेटेड पक्षियों का आना जाना है?
यदि पक्षी आते हैं तो कौन-कौन से माइग्रेटड पक्षी यहां आते हैं? श्रीमती गाँधी के अनुसार कृत्रिम जल निकाय बनाकर उसका पारिस्थितिकी तंत्र तैयार होने में सालों लग जाते हैं। जिन स्थानों पर माइग्रेटरी बर्ड कम्युनिटी रिजर्व बनाने का फैसला लिया गया है वो खनन माफियाओं द्वारा तैयार कराया गया है। राज्य सरकार की ओर से श्रीमती गाँधी के इस पत्र को एक तरह से नज़रअंदाज करते इसका न तो कोई संतोषजनक जवाब दिया गया और न ही अभी तक शासनादेश वापस नहीं हुआ। अपने पत्र को राज्य सरकार नज़रअंदाज़ किये जाने से आहत श्रीमती गाँधी ने फिर एक बार प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को चिट्ठी लिख डाली, जिसने प्रदेश की राजनीति में न केवल एकाएक गर्मी पैदा कर दी बल्कि नौकरशाही में भी हंगामा मचा दिया है।
मेनका गांधी ने ताज़ा चिट्ठी में राज्य सरकार के अधिकारियों पर खनन माफियाओं से मिले होने का सनसनीखेज आरोप लगाते हुए कहा कि इस प्रकार के तालाब खोदने से माइग्रेट बर्ड नहीं आया करती। उन्होंने प्रोजेक्ट तैयार करने वाले अधिकारियों की ही मंशा पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या इस प्रोजेक्ट के लिए किसी प्रकार का कोई सर्वे किया गया? उत्तराखण्ड में कितने प्रकार की और कहां-कहां माइग्रेट बर्ड आती हैं? अपनी चिट्ठी में मेनका गाँधी ने सारी जानकारी मांगते हुए राज्य सरकार से प्रोजेक्ट के शासनादेश को वापस लेने की मांग की है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनावी बेला में प्रदेश के राजनीतिक प्याले में तूफान खड़ा करने वाली मेनका गाँधी की इस चिट्ठी के बाद राज्य सरकार इस प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डालेगी या इस चिट्ठी को हथियार बनाकर सरकार को घेरने की विपक्ष को खुलकर राजनीति करने का मौका देगी?