Prashant Kishor : नीतीश-तेजस्वी जनता के साथ सिर्फ धोखा कर रहे हैं, डिप्टी सीएम बड़े-बड़े दावे करते थे, अब सांप क्यों सूंघ गया
पटना न्यूज : बिहार के सीएम नीतीश कुमार और चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ( Prashant Kishor ) के बीच सियासी रिश्ता क्या है ये बात किसी से छुपी नहीं है। दोनों के बीच सियासी मुद्दों को लेकर इन दिनों तकरार भी चरम पर है। इसी का तकाजा है कि प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार पर एक बार फिर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ( Lalu Yadav ) के बिना तेजस्वी यादव कुछ भी नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जब से चाचा-भतीजा ( Nitish Kumar-Tejashwi Yadav) सत्ता में आए हैं तब से तीन उपचुनाव हुए हैं, जिसमे दो में इन्हें हार का सामना करना पड़ा है। प्रशांत किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव जनता के साथ सिर्फ धोखा कर रहे हैं।
चुनावी रणनीतिकार पीके का कहना है कि जब से ये सत्ता में आये हैं तब से तीन उपचुनाव हुए हैं, जिसमे दो में हार का सामना करना पड़ा है। एक चुनाव जीते, क्योंकि वो बाहुबली की सीट थी। उन्होंने कहा कि उप-चुनाव तो इनसे जीता नहीं जाता, ये मुझे चुनाव लड़ना क्या सिखाएंगे। 2015 में मैंने इनकी मदद नहीं की होती तो क्या महागठबंधन को जीत हासिल होती? उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि तेजस्वी यादव को राजनीति की कितनी समझ है? 2015 में विधायक बने इससे पहले इनको कौन जानता था?
चुनावी रणनीतिकार का कहना है कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के पहली कैबिनेट की बैठक में 10 लाख नौकरी दिए जाने के वादे को याद कराते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि वे कहते थे कि सत्ता में आये तो पहली कैबिनेट में 10 लाख लोगों को नौकरी देंगे। अब क्या उनकी पेन टूट गई है या स्याही सूख गई है? बिहार की अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर बात करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा कि सरकार की नाकामी के वजह से बिहार बर्बाद हो रहा है। आज बिहार के पैसों से गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में उद्योग लगाया जा रहा है। बिहार के लोग उन राज्यों में जाकर मजदूरी कर रहे हैं। राज्य में पूंजी उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी बैंकों की होती है। ये काम तेजस्वी यादव कब करेंगे।
पीके का दावा है कि देश के स्तर पर क्रेडिट डिपोजिट का आंकड़ा 70 प्रतिशत है और बिहार में यह आंकड़ा पिछले 10 सालों से 25 से 40 प्रतिशत रहा है। आरजेडी के कार्यकाल में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत से भी नीचे था। नीतीश कुमार के 17 साल के कार्यकाल में यह औसत 35 प्रतिशत है जो पिछले साल 40 प्रतिशत था। उन्होंने कहा कि इसका मतलब है कि बिहार में जो भी पैसा बैंकों में लोग जमा करा रहे हैं। उसका केवल 40 प्रतिशत ही ऋण के तौर पर लोगों के लिए उपलब्ध है। जबकि विकसित राज्यों में 80 से 90 प्रतिशत तक बैंकों में जमा राशि ऋण के लिए उपलब्ध है।