तमिलनाडु में मतदाताओं को निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण का लॉलीपॉप थमाती पॉलिटिकल पार्टियां
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हरिप्रिया सुरेश की रिपोर्ट
तमिलनाडु। विधानसभा चुनावों से ठीक पहले डीएमके ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा है कि सत्ता में आने पर वो एक क़ानून लाएगी, जिसके तहत राज्य में चल रही कंपनियों में 75 फीसदी नौकरियाँ तमिलों के लिए आरक्षित होंगी। यह प्रावधान निजी और सरकारी दोनों तरह की कंपनियों पर लागू होगा। उधर दिनाकरन की पार्टी एएमएमके ने भी अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा है कि वो कार्य-स्थलों पर तमिलनाडु के बाशिंदों को प्राथमिकता देगी और इसके लिए महाराष्ट्र और गुजरात की तर्ज़ पर एक क़ानून लाएगी, जिसके तहत तमिल लोगों को सरकारी नौकरियों में 85 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा।
नौकरियों में आरक्षण देने का मुद्दा राज्य में लम्बे समय से गरमाया हुआ है। कुछ समय पहले डीएमके ने मांग उठाई थी कि तमिलनाडु में केंद्रीय सरकार की नौकरियों में तमिलभाषी लोगों को 90 फीसदी आरक्षण मिले। 2019 में रामदौस की पार्टी पीएमके ने भी निजी क्षेत्र की नौकरियों में तमिल लोगों के लिए 80 फीसदी आरक्षण का मुद्दा उठाया था। अब चुनाव के ऐन पहले इसने कहा है कि राज्य सरकार की नौकरियाँ केवल तमिल लोगों को ही मिलेगी और क़ानून लाकर निजी क्षेत्र की नौकरियों में भी तमिल लोगों के लिए 80 फीसदी आरक्षण किया जाएगा। (रिपोर्ट लिखने तक एआईएडीएमके ने अपना चुनावी घोषणापत्र जारी नहीं किया था।)
दरअसल यह मांग इन विवादों के चलते उठी कि राज्य में कुछ क्षेत्रों में केंद्र सरकार के ज़्यादातर पदों पर उत्तर भारत के लोगों को नियुक्त किया जा रहा है। मई 2019 में All India Railway Act Apprentice Association ने आरोप लगाया था कि दक्षिणी रेलवे में खाली पदों पर और प्रशिक्षुता प्रशिक्षण में उत्तरी भारत के लोगों को प्राथमिकता दी जाती है। असोसिएशन ने इसकी जांच की भी मांग की थी। संगठन ने यह भी कहा था कि त्रिची में एक प्रशिक्षुता प्रशिक्षण कार्य शाला में शामिल होने के लिए 1765 अभ्यार्थियों को कहा गया था लेकिन इनमें से केवल 165 तमिलनाडु से थे और बाकी सभी उत्तर भारत से थे।
पिछले महीने राज्य के विपक्षी दलों ने Neyveli Lignite Corporation द्वारा अपनायी गई भर्ती करने की नीति पर सवाल उठाए थे। साक्षात्कार के लिए चुने गए प्रत्याशियों की सूची के आधार पर डीएमके,सीपीएम और वीसीके के नेताओं का कहना था कि इम्तिहान पास करने वाले कुल 1582 प्रत्याशियों में केवल 11 तमिलनाडु से थे।
नौकरियों में तमिल लोगों को आरक्षण देने के मुद्दे पर द न्यूज़ मिनट से बातचीत करते हुए विलुपुरम से वीसीके के सांसद डी रविकुमार ने कहा, "देश में बेरोज़गारी की दर बढ़ रही है और जो रोज़गार उपलब्ध है वो भी उत्तर भारत के राज्यों के लोगों को जा रहा है। एआईडीएमके सरकार के चलते राज्य सरकार की बहुत सी नौकरियां उत्तर भारत के लोगों को मिल गईं। जब बेरोज़गारी की दर बढ़ रही हो तो यह कतई सही नहीं है।"
उन्होंने आगे कहा कि तमिलनाडु में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सकल नामांकन अनुपात देश में सबसे ज़्यादा रहा है। "लाज़मी है कि औरों की तुलना में स्नातकों के लिए रोज़गार अवसर हमें ज़्यादा चाहिए। इसलिए अगर आरक्षण लागू कर दिया जाता है तो अधिक तमिल लोगों को नौकरियां मिलेंगी।" 2018-19 के अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण के हिसाब से 2018 में तमिलनाडु सकल नामांकन अनुपात में 49.2% के स्तर पर पहुँच गया।
हाल ही में हरियाणा सरकार द्वारा आरक्षण लागू करने का हवाला देते हुए रवि कुमार ने कहा,"यह मांग अनेक राज्यों में उठ रही है, इसलिए इसे लागू करना मुश्किल नहीं होगा। हम भी हरियाणा की तरह विधान सभा में पास करवा कर क़ानून बना सकते हैं।"
ध्यान में रखने वाला एक अन्य मुद्दा ये है कि क्या राज्य के बाशिंदों में उपयुक्त योग्यता है कि नहीं और यह भी कि क्या वे दफ्तरों में बाबुओं वाला रोज़गार चाहते हैं या फिर औद्योगिक इकाइयों में मज़दूरों वाला रोज़गार। कारखानों में मज़दूरी वाले रोज़गार पर 2020 की एक रिपोर्ट कहती है कि तमिल नाडु में 15 फीसदी मज़दूर प्रवासी हैं और प्रवासियों के पसंदीदा शहरों में चेन्नई का स्थान तीसरे नंबर पर है। यह शहर रिवर्स माइग्रेशन के मामले में भी अग्रणी शहरों में एक है।
वर्तमान में तमिलनाडु में सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में 69 फीसदी आरक्षण का प्रावधान है। अनुसूचित जाति 15%,पिछड़ी जाति 26.5%,अति पिछड़ी जाति 20% और मुस्लिम पिछड़ी जाति 3.5%।
ऐसा करने वाला पहला राज्य नहीं
पिछले साल हरियाणा विधान सभा में Haryana State Employment of Local Candidates Act,2020 पारित किया गया जिसके तहत हर महीने 50,000 रुपये से कम तनख्वाह देने वाली निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए कोटे का प्रावधान किया गया। राज्यपाल की संस्तुति के बाद इस महीने के आरम्भ में इसे लागू भी कर दिया गया। यह क़ानून आदेश देता है कि 10 या 10 से ज़्यादा लोगों को नौकरी पर रखने वाली हर इकाई को 75 फीसदी स्थानीय लोगों को नौकरी देनी ही होगी फिर ऐसी इकाई चाहे सोसायटी हो, ट्रस्ट हो, सीमित उत्तरदायित्व वाली भागीदारी फर्म हों या फिर भागीदारी कम्पनियाँ हों।
इस तरह के क़ानून पास करने वाला अगला राज्य झारखण्ड हो सकता है। यहाँ से आ रही अनेक रिपोर्टें बता रही हैं कि राज्य में इस बात पर विचार चल रहा है कि स्थानीय लोगों को उन नौकरियों में 75 फीसदी आरक्षण दिया जाये, जिनमें 30,000 तक की तनख्वाह का प्रावधान है।
यह कदम दक्षिण भारत के राज्यों में भी उठाया गया है। 2019 में आंध्र में सत्ता में आने के बाद मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने Andhra Pradesh Employment Of Local Candidates in the Industries/Factories Act 2019 नामक क़ानून बनाया। इस क़ानून के तहत सभी औद्योगिक इकाइयों में 75 फीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित कर दी गयीं। इनमें पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत राज्य में लगाई गयीं इकाइयां,फैक्ट्रियां,संयुक्त उद्यम और परियोजना भी शामिल हैं। क़ानून पहले से चल रही औद्योगिक इकाइयों को क़ानून लागू होने की तिथि से तीन साल के भीतर 75 फीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों को देने की बात भी कहता है।
इस क़ानून को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने कहा कि इस तरह का कदम असंवैधानिक हो सकता है क्योंकि संविधान निवास स्थान के आधार पर नौकरी देने में भेदभाव करने की मनाही करता है। कोर्ट में चुनौती मिलने के कारण क़ानून को अभी लागू नहीं किया जा सका है।
कर्नाटक में भी इस तरह के क़ानून बनाने की मांग की जा रही है। वहां कन्नड़ समर्थित समूह कन्नड़ भाषियों को नौकरियों में आरक्षण देने की बात कर रहे हैं। गौरतलब है कि कर्नाटक आईटी क्षेत्र का गढ़ है। यहां 75 फीसदी आरक्षण देने पर विचार तो किया गया था, पर अभी इसे टाल दिया गया है।
1995 में गुजरात में भी नौकरियों में स्थानीय लोगों (15 सालों से ज़्यादा समय से राज्य में रहने वाले) को 75 फीसदी आरक्षण देने संबंधी एक सरकारी प्रस्ताव पास किया गया था, लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया। चूँकि यह एक सरकारी प्रस्ताव था इसलिए इसमें नियम लागू न करने वाली कंपनियों पर सरकारी कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं था। सरकार ने भी कहा है कि वो इन कंपनियों के खिलाफ़ कार्रवाई नहीं कर सकती है।
महाराष्ट्र ने भी इसी तरह के सरकारी प्रस्ताव पास किये हैं जिन्हें लागू नहीं किया गया। पिछले साल महामारी के चलते देश में लॉकडाउन घोषित किये जाने के कुछ समय पहले राज्य सरकार ने कहा था कि वो 80 फीसदी नौकरियां 15 सालों से ज़्यादा समय से राज्य में रहने वाले लोगों के लिए आरक्षित करने पर विचार कर रही है।
इसी तरह का एक कदम तेलंगाना की टीआरएस सरकार ने भी उठाया है। अगस्त 2020 में टीआरएस सरकार ने स्थानीय लोगों को नौकरी देने वाली कंपनियों को अतिरिक्त लाभ पहुँचाने की नीति की घोषणा की। राज्य सरकार ने इन कंपनियों को आश्वस्त किया कि उन्हें जीएसटी में प्रोत्साहन राशि और बिजली बिल में छूट दी जाएगी।
अब तक की प्रतिक्रियाएं
हरियाणा द्वारा उठाया गया कदम उद्योग जगत को पसंद नहीं आया। बहुतों का कहना था कि यह कदम राज्य में निजी पूंजी निवेश को नुकसान पहुंचाएगा और औद्योगिक विकास को प्रभावित करेगा।
एक वक्तव्य जारी कर NASSCOM ने कहा कि यह कदम हरियाणा सरक़ार की व्यापार समर्थक छवि को नुक्सान पहुंचाएगा और IT-BPM हब के रूप में गुरुग्राम के विकास पथ को बाधित करेगा। और इस प्रकार रोज़गार निर्माण के अपने घोषित उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पायेगा। इसने कहा था,"IT-BPM उद्योग की प्रगति मांग करने पर कुशल प्रतिभाओ की उपलब्धता के साथ जुडी है और इस तरह के नियंत्रण उद्योग-धंधों को सीमित कर देंगे।"
जे सागर असोसिएट्स नामक लॉ फर्म में पार्टनर अनुपम वर्मा का कहना है कि यह कदम कर्मचारियों की नियुक्ति को लेकर नियुक्ति दाताओं पर बहुत बड़ी शर्त थोप देता है। उन्होंने कहा,"निजी नौकरीदाता के कर्मचारियों के कौशल, योग्यता इत्यादि को तय करने का अधिकार राज्य सरकार को देना केंद्र सरकार द्वारा Ease of doing business के लिए की गई पहल का विरोध करना होगा" और यह कि ऐसा करना कोई भी व्यवसाय करने की आज़ादी पर अंकुश लगाना होगा।
(हरिप्रिया सुरेश की यह रिपोर्ट मूल रूप से पहले अंग्रेजी में द न्यूज़ मिनट में प्रकाशित)