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राजनीति

UP Election 2022 : भाजपा में भगदड़ के बीच 3 दिन में बदल गया यूपी का सियासी मिजाज, बड़ा हो रहा है SP का कुनबा

Janjwar Desk
13 Jan 2022 2:59 AM GMT
UP Election 2022 : भाजपा में भगदड़ के बीच 3 दिन में बदल गया यूपी का सियासी मिजाज, बड़ा हो रहा है SP का कुनबा
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भाजपा की स्थिति यूपी में बिगड़ रही है। भाजपा का हिंदू-मुस्लिम डिवाइड कार्ड कमजोर पड़ने लगा है। मंडल और कमंडल का दौर फिर से यूपी में लौटने की आहट है। ऐसा होने पर यूपी में नॉन यादव ओबीसी वोट भाजपा के हाथ से छिटकने की आशंका प्रबल होती दिखाई दे रही है।

यूपी के बदले सियासी मिजाज पर धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण

UP Election 2022 : पिछले तीन दिनों में अचानक उत्तर प्रदेश का सियासी मिजाज बदल गया है। योगी सरकार ( Yogi Government ) में शामिल मंत्रियों और भाजपा विधायकों ( Ministers and BJP MLAs ) के इस्तीफों की वजह से सत्ताधारी पार्टी में भगदड़ की स्थिति है। स्वामी प्रयाद मौर्य ( Swami Prasad Maurya ) के समर्थन में पार्टी छोड़ने वाले मंत्रियों और विधायकों की ओर से इस्तीफा देने का सिलसिला जारी है। माना जा रहा है कि मौर्य समर्थक मंत्री और विधायक बहुत जल्द अपने दल बल के साथ समाजवादी पार्टी ( Samajwadi Paty ) में शामिल हो सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो अभी तक चुनावी रेस में कमबैक करने वाली सपा ( SP ) आगामी दिनों में सत्ताधारी पार्टी भाजपा ( BJP ) से आगे निकल जाएगी। खासबात यह है कि यह सब अचानक हो रहा है।

फिलहाल, स्वामी प्रसाद मौर्य ( Swami Prasad Maurya ) के इस्तीफे के बाद से दर्जनभर विधायकों के पार्टी छोड़ने की चर्चा हैं। इनमें कई मंत्री भी शामिल हैं। भाजपा छोड़ने वालों की सूची में मंत्री धर्म सिंह सैनी, नंद गोपाल नंदी, विधायक धर्मेंद्र शाक्य, ममता शाक्य का नाम भी सुर्खियों में है। हालांकि भाजपा विधायक धर्म सिंह सैनी, नंद गोपाल नन्दी और ममता शाक्य के भी भाजपा ( BJP ) छोड़ने की बात से इनकार किया है। मंगलवार यानि 11 जनवरी को इस बात की भनक लगते ही आनन-फानन में भाजपा नेतृत्व सक्रिय हुआ और डैमेज कंट्रोल की कवायद तेज हो गईं है। स्वामी प्रसाद मौर्य के मंत्री पद छोड़ने के एपिसोड के तत्काल बाद गृहमंत्री अमित शाह ( Amit Shah ), यूपी प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ( UP incharge Dharmendra Pradhan ) और उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या ( Keshav Prasad Maurya ) सक्रिय हो गए हैं। इनके द्वारा कई लोगों से फोन पर बात किए जाने की भी चर्चा है। लेकिन ये लोग स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ तीन विधायकों को जाने से नहीं रोक सके। दूसरी तरफ सपा मुखिया अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) ने एक ट्विट कर स्वामी प्रसाद के साथ तस्वीर साझा करते हुए उनका और समर्थकों का पार्टी में स्वागत भी कर दिया है। इसके बावजूद स्वामी प्रसाद और उनकी बेटी संघमित्रा ने अभी सपा में शामिल होने की बात को खारिज करते हुए दो दिन बाद फैसला लेने की बात कही।

स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसलिए किया BJP के खिलाफ झंडा बुलंद

मंगलवार को मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य भाजपा के खिलाफ खुलकर मैदान में आ गए हैं। उन्होंने योगी से भी ज्यादा आक्रामक हमला केशव प्रसाद मौर्य ( Keshav Prasad Maurya ) पर बोला है। उन्हें आएसएस ( RSS ) को तोता तक कह डाला है। मौर्य का आरोप है कि केपी मौर्य ओबीसी समुदाय से आते हैं, लेकिन डिप्टी सीएम होते हुए भी वो समाज के नहीं है। न तो वो दलितों और पिछड़ों के नेता न ही उनके हित में कोई काम करते हैं। वहीं उन्होंने भाजपा नेतृत्व को केवल दलितों का वोट लेने वाला करार दिया है। उन्होंने कहा है कि भाजपा को इसका खामियाजा आागामी चुनाव में भुगतना होगा।

उत्तर प्रदेश के पिछड़े नेताओं में प्रमुख चेहरा माने जाने वाले स्वामी प्रसाद का भाजपा में रहते हुए ही अलग पार्टी बनाने और सपा से गठजोड़ किए जाने की चर्चाएं पिछले कुछ दिनों से सियासी हवा में तैर रही थी। मौर्य खेमे ने इनका कोई खंडन भी नहीं किया था। वहीं ऐसी खबरों के चलते भाजपा उन्हें लेकर थोड़ी सचेत जरूर हो गई थी।

यूपी में कितने मंत्रियों और विधायकों ने भाजपा से दिया इस्तीफा

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव ( UP Election 2022 ) से पहले बीजेपी को झटका लगने का सिलसिल जारी है। अभी तक स्वामी प्रसाद मौर्य के समर्थन में मंत्री दारा सिंह चौहान समेत तीन विधायक भाजपा का दामन छोड़ चुके हैं। योगी सरकार से मंत्री पद से स्वामी प्रसाद मौर्या और दारा सिंह चौहान इस्तीाफ दे चुके हैं। दारा सिंह चौहान तो सपा ज्वाइन भी कर चुके हैं। इसके अलावा, शाहजहांपुर के तिलहर से विधायक रोशन लाल वर्मा, बांदा जिले की तिंदवारी से विधायक बृजेश प्रजापति और कानपुर के बिल्हौर से विधायक भगवती प्रसाद सागर भाजपा छोड़ने की घोषणा कर चुके हैं।

भाजपा को क्यों छोड़ रहें विधायक

दरअसल, भाजपा की स्थिति यूपी में बिगड़ रही है। भाजपा का हिंदू-मुस्लिम डिवाइड कार्ड कमजोर पड़ने लगा है। मंडल और कमंडल का दौर फिर से यूपी में लौटने की आहट है। ऐसा होने पर यूपी में नॉन यादव ओबीसी वोट ( Non Yadav OBD Vote ) भाजपा के हाथ से छिटक सकता है। भाजपा में ओबीसी के कई विधायक पार्टी के कामकाज से असंतुष्ट चल रहे हैं। इनमें से अधिकांश का कहना है कि पार्टी नेतृत्व दलितों को वोट लेना चाहती पर समुचित स्तर पर भागीदारी नहीं देना चाहती है। दलितों व पिछड़ों के विकास के लिए जो-जो वादे किए गए वो पूरे नहीं हुए।

MLAs रोशन लाल वर्मा ने भाजपा पर दलितों, पिछड़ों और वंचितों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए त्यागपत्र दिया है। वर्मा का कहना है कि मैंने भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। मैं, स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ रहूंगा। उन्होंने कहा, हम लोगों की शिकायतें उठाते थे तो उन्हें नहीं सुना जाता था। हमने मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह से शिकायत की लेकिन कुछ नहीं हुआ। मैं सपा में शामिल हो रहा हूं। वर्मा का आरोप है कि भाजपा नीत सरकार में दलित व पिछड़े अल्पसंख्यक कमजोर लोगों की लगातार उपेक्षा हो रही थी। बेरोजगारी बढ़ी है। भाजपा सरकार दिखा रही है कि रोजगार दिए गए हैं।

अपनी ही सरकार पर भ्रष्ट अफसर और सिंडीकेट के हावी होने का आरोप लगाया है। प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को भेजे त्यागपत्र में बृजेश भगवती प्रसाद सागर ने भी लगभग इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल किया है जो स्वामी प्रसाद मौर्य ने अपने इस्तीफे में लिखी है।

इस मामले में सपा ने भाजपा को पीछे छोड़ा

समाजवादी पार्टी ( Smajwadi Party ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) इस बार बड़े दलों के साथ गठबंधन के बदले छोटे दलों के साथ गठबंधन कर रहे हैं। इस काम में उन्होंने इस बार भाजपा को सियासी पटखनी दे दी है। सुभासपा, अपना दल कृष्णा पटेल गुट, महान दल, रालोद व अन्यों से चुनावी गठबंधन कर लिया। वहीं भाजपा इस बार केवल संजय निषाद की निषाद पार्टी और अपना दल सोनेलाल गुट के साथ गठबंधन में हैं।

वर्तमान यूपी विधानसभा की कुल 403 सीटों में से भाजपा के खाते में 312 विधायक हैं। समाजवादी पार्टी के खाते 47, बसपा 19, कांग्रेस 7 व शेष अन्य के खाते में विधायक हैं। यह तस्वीर 2017 विधानसभा चुनाव परिणाम की है। लेकिन यूपी भाजपा में जिस तरह से असंतोष का सियासी विस्फोट हुआ है वो भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। असंतोष जारी रहने पर भाजपा के चमत्कारिक उभार का पतन भी हो सकता है। वैसे भी यूपी में हर बार सत्ता परिवर्तन की परंपरा है।

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