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राजनीति

UP Election 2022 : यूपी विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका निभाएंगे छोटे दल

Janjwar Desk
6 Nov 2021 11:05 AM GMT
UP Election 2022 : यूपी विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका निभाएंगे छोटे दल
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यूपी की राजनीति में जाति का बोलबाला किसी से छिपा नहीं है। नतीजतन जाति आधारित राजनीतिक दलों का यहां बोलबाला है।

यूपी विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) में छोटे दल (Chhotey Dal) बड़ी भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव (UP Election 2017) के आंकड़ों पर नजर डालें तो इस तथ्य की स्वयं ही पुष्टि हो जाती है। 2017 के चुनाव में बीजेपी (BJP) ने छोटे दलों की सहयोग से ही यूपी (Uttar Pradesh) की सत्ता हासिल की। जाति आधारित छोटे दल (Chhotey Dal) किसी भी बड़े दल का समीकरण बनाने और बिगाड़ने की हैसियत रखते हैं। इसी के चलते अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव (UP Election 2022)को लेकर राजनीतिक दलों की गठजोड़ की कवायद शुरू हो चुकी है। यूपी (Uttar Pradesh) में जहां बड़े और छोटे दल के गठबंधन ने इतिहास रचा है तो वहीं दो बड़े दलों की दोस्ती से नुकसान ही हुआ है।

वास्तव में छोटे दल (Chhotey Dal) अकेले दम पर बड़ा कमाल तो नहीं कर सकते हैं, लेकिन किसी भी दल के साथ गठबंधन होने पर उनकी ताकत में और ज्यादा निखार आ जाता है, जिसका फायदा बड़े दलों को मिलता है। यूपी की राजनीति (Uttar Pradesh Politics) में जाति (Caste Politics) का बोलबाला किसी से छिपा नहीं है। नतीजतन जाति आधारित राजनीतिक दलों का यहां बोलबाला है।

जानकारी के मुताबिक प्रदेश में 474 छोटे दल रजिस्टर्ड हैं, जिनमें से दो दर्जन दल काफी असरदार भी हैं। पिछड़ा वर्ग में गैर यादव में शामिल जाति आधारित इन छोटे दलों का बड़ा रसूख है। इन्हीं छोटे दलों ने पिछले चुनाव में सत्तासीन समजावादी पार्टी और बसपा को सत्ता से दूर करने में बड़ी भूमिका निभाई। लेकिन इस बार यह दोनों पार्टियां इन छोटे दलों के महत्व को बखूबी समझ चुकी हैं। अपना दल और सुहेलदेव पार्टी जैसे छोटे दलों की बदौलत ही आज बीजेपी प्रदेश की सत्ता का सुख भोग रही है।

अगर पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो छोटे दलों की ताकत को सीधे तौर पर बड़े से बड़ा दल नकार नहीं सकता है। 2007 के विधानसभा चुनाव में 91 विधानसभा क्षेत्र में जीत हार का अंतर 100 से 3000 मतो के बीच रहा। वहीं छोटे दलों की वजह से ही बड़े बड़ो को बहुत कम अंतरों से विधानसभा सीटों पर हार का सामना करना पड़ा।

बड़े दलों का गठबंधन मतलब नतीजा नेगेटिव

यूपी की राजनीति का इतिहास उठाकर देखिए, जब एक बड़े दल ने छोटे दल से हाथ मिलाया तो दोनों की किस्मत पलट गई। और जब-जब दो बड़े दलों ने दोस्ती गांठी तो दोनों का हार का मुंह देखना पड़ा। पिछले विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन किया, नतीजा सबके सामने है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी विरोधी दलों में भी राजनीतिक फायदे के लिए समझौता हुआ। सपा-बसपा के बीच राजनीतिक फायदे के लिए गठबंधन हुआ। भाजपा ने पिछड़े और दलित वोट बैंक में ऐसी सेंध लगाई, जिसके चलते यह गठबंधन बेअसर साबित हुआ और भाजपा को इस चुनाव में 80 में से 65 सीटों पर विजय हासिल हुई।

बीजेपी ने छोटे दलों से किया गठबंधन

यूपी विधानसभा चुनाव-2017 में बीजेपी ने पूर्वांचल में प्रभावी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल (सोनेलाल) के साथ गठबंधन कर 403 में से 324 सीटें हासिल की। इस चुनाव में अपना दल को 11 सीटें और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को 8 सीटें दी गईं, वहीं चुनाव में अपना दल को 9 सीटों पर जीत मिली तो ओमप्रकाश राजभर को 4 सीटों पर जीत मिली। 2019 के चुनाव में निषाद पार्टी से भी गठबंधन किया तो इसका बड़ा फायदा मिला। इस बार भी भारतीय जनता पार्टी छोटे दलों को पूरा सम्मान देने की तैयारी में है। अपना दल और निषाद पार्टी उसके साथ है। राजनीतिक विशलेषकों के अनुसार, ये छोटे दल ही बीजेपी की पूर्वांचल में ताकत हैं। कुर्मी जाति के साथ ही कोईरी, काछी, कुशवाहा जैसी जातियों पर भी अपना दल (सोनेलाल) का असर होता है। इन्हें आपस में जोड़ दें तो पूर्वांचल के बनारस, चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र, इलाहाबाद, कानपुर, कानपुर देहात की सीटों पर यह वोट बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं।

कांग्रेस ने इस बार बनाई गठबंधन से दूरी

पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सतारूढ़ समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था। यूपी के लड़के पंच लाइन के साथ अखिलेश और राहुल की जोड़ी जोर-शोर के साथ मैदान में उतरी, लेकिन कोई कमाल नहीं कर पाई। दोनो पार्टियों में समझौते के बाद कांग्रेस 105 सीटों पर और समाजवादी पार्टी 298 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। चुनाव नतीजों में सपा 232 सीट से घटकर 47 पर और कांग्रेस 7 सीटों पर सिमट गई थी। पिछले चुनाव के समय प्रियंका यूपी की राजनीति में ज्यादा सक्रिय नहीं थी। लेकिन इस बार तस्वीर बदली हुई है। प्रियंका यूपी में काफी एक्टिव है। हाथरस से लेकर लखीमपुर हिंसा मामले में वो योगी सरकार के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर चुकी हैं। इस बार कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं का हौंसला बुलंद है। सूत्रों के मुताबिक इस बार पार्टी किसी दल से गठबंधन की बजाय अकेले दम पर चुनाव में उतरेगी। पिछले दिनों एक न्यूज चैनल से बातचीत में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने साफ किया कि कांग्रेस यूपी चुनाव में किसी से गठबंधन नहीं करेगी। पार्टी सभी 403 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। सूत्रों की माने तो क्षेत्रीय आधार जाति समूहों वाली राजनीतिक दलों से प्रदेश कांग्रेश की बातचीत जारी है। अगर बात बनी तो वह उनके सिंबल पर चुनाव लड़ सकते हैं।

सपा का छोटे दलों से जारी है गठबंधन

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साफ कर दिया है कि बड़े दलों के साथ गठबंधन का अनुभव अच्छा नहीं रहा है। इसलिए अब वे छोटे दलों को साथ ले कर चलने की बात कह रहे हैं। इस बार समाजवादी पार्टी ने जनवादी और महान दल जैसी पार्टियों के साथ गठबंधन कर लिया है। महान दल की पश्चिम उत्तर प्रदेश में कुशवाहा, शाक्य, सैनी और मौर्या पर अच्छी पकड़ है। चौहान वोट बैंक की पार्टी जनवादी दल भी वोट बैंक के लिहाज से मजबूत पकड़ वाली पार्टी है। वहीं पिछली बार की तरह इस बार भी रालोद से समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो सकता है क्योंकि किसान आंदोलन के चलते पश्चिम उत्तर प्रदेश में इस गठबंधन से उनको काफी फायदा भी होगा। इस चुनाव में जाटलैण्ड में रालोद बड़ा कमाल कर सकता है।

बसपा नहीं करेगी गठबंधन

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने यह साफ कर दिया है कि वह 2022 के विधानसभा चुनाव में अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी। 403 विधानसभा सीटों पर वह किसी भी दल के साथ गठबंधन नहीं करेगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा से हाथ मिलाया था। इसका लाभ बसपा को मिला और उसने पांच सीटें जीती। लेकिन ​इस बार बसपा अपने दम पर ही चुनाव मैदान में उतरेगी।

पीस पार्टी 250 सीटों पर चुनाव लड़ेगी

प्रदेश में साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर पीस पार्टी ने बड़ा ऐलान किया है। पार्टी अकेले ही सूबे के 250 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पिछले दिनों पीस पार्टी के प्रवक्ता शादाब चौहान ने मीडिया को बताया था कि पीस पार्टी एआईएमआईएम के कैंडिडेट्स के खिलाफ अपने कैंडिडेट्स खड़ा करेगी। शादाब ने कहा कि एआईएमआईएम ने साल 2017 के विधानसभा चुनावों में उनके पार्टी के कैंडिडेट्स के खिलाफ उमीदवारों को उतारकर भारी गलती की थी। यूपी के सियासत पर बारीक नजर रखने वालों की मानें तो पीस पार्टी यूपी के पूर्वांचल के मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर सियासी समीकरण को प्रभावित करने की हैसियत रखती है। ऐसे में 100 सीटों पर विधानसभा चुनाव लड़ने का निर्णय कर चुकी एआईएमआईएम और पीस पार्टी दोनों ही वोटकटवा की भूमिका बखूबी अदा करेगी।


आठ छोटे दलों ने बनाया भागीदारी संकल्प मोर्चा

प्रदेश के आठ छोटे दलों ने मिलकर भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया है। इस मोर्चे में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। उनके अलावा इस मोर्चे में शिवपाल यादव की पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, भारतीय वंचित पार्टी, जनता क्रांति पार्टी, राष्ट्र उदय पार्टी और अपना दल (कमेरावादी) शामिल है। पिछले दिनों शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा की सपा में विलय की खबर आ रही है। अगर ऐसा हुआ तो इस मोर्चे का स्वरूप बदल सकता है। राजनीति के जानकारों के मुताबिक शिवपाल अगर सपा में शामिल हो गये तो इस मोर्चे के कई दल सपा के साथ आगामी चुनाव में गठबंधन कर सकते हैं।

जेडीयू की स्थिति साफ नहीं

जनता दल यूनाइटेड एनडीए का हिस्सा है। इसलिए अभी उसने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। जेडीयू के वरिष्ठ नेता केसी त्यागी ने एक चैनल के कार्यक्रम में यूपी में 200 उम्मीदवार उतारने की बात कही थी। वहीं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी ने चुनाव लड़ने की बात तो कही है। लेकिन उन्होंने ये साफ नहीं किया कि वो एनडीए गठबंधन के तहत चुनाव लड़ेंगे या अकेले अपने दम पर है। बता दें 2017 के चुनाव में जेडीयू ने चुनाव नहीं लड़ा था। इस बार जेडीयू चुनाव मैदान में उतरने को मन बना चुका है। जेडीयू गठबंधन कर चुनाव लड़ेगा या अपने दम पर ये बात अभी साफ नहीं है।

रिपब्लिकन पार्टी 25 सीटों पर कैंडिडेट उतारेगी

विधानसभा चुनाव को लेकर रिपब्लिकन पार्टी फिर से पहले की तरह सक्रिय हो रही है। यूपी में 25 विधानसभा सीटों के लिए कैंडिडेट उतारने की तैयारी चल रही है। पिछले दिनों आरपीआई के अध्यक्ष रामदास अठावले ने दो टूक शब्दों में कहा कि यूपी में सीटें बढ़ाने के लिए बीजेपी के साथ होंगे। ताकि बसपा को पछाड़ सकें। आरपीआई मुस्लिम व दलित बाहुल्य सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। वरिष्ठ पत्रकार श्रीनाथ सहाय के मुताबिक, छोटे दल जाति विशेष में अपनी मजबूत पकड़ के कारण चुनाव में असरदार साबित होते हैं। पिछले कई चुनावों छोटे दलों का असर साबित भी हो चुका है।

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