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राजनीति

UP Election 2022 : अरविंद केजरीवाल और संजय सिंह ब्रिगेड यूपी में अभी तक क्यों नहीं पकड़ पाई रफ्तार?

Janjwar Desk
2 Jan 2022 7:22 AM GMT
Gujarat Election : गुजरात चुनाव को लेकर अरविंद केजरीवाल ने साधा भाजपा पर निशाना, कहा - चुनावों को लेकर डरी हुई है बीजेपी
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Gujarat Election : गुजरात चुनाव को लेकर अरविंद केजरीवाल ने साधा भाजपा पर निशाना, कहा - चुनावों को लेकर डरी हुई है बीजेपी

UP Election 2022 : अहम सवाल यह है कि आम आदमी पार्टी अब तक यूपी कोई बड़ा आंदोलन नहीं चला सकी है। इन सबके साथ जातिगत समीकरणों के आधार पर भी बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के पास एक तरह से फिक्स वोट बैंक है। ऐसे किसी वोट बैंक का नहीं होना अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की सबसे बड़ी कमजोरी है।

यूपी चुनाव और केजरीवाल की रफ्तार पर धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण


लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 ( UP Election 2022 ) को सियासी दलों की गतिविधियां रंगत में आई गई हैं, लेकिन आम आदमी पार्टी ( Aam Admi Party ) का चुनाव प्रचार अभी मंद है। जबकि अरविंद केजरीवाल ( CM Arvind Kejriwal ) की आम आदमी पार्टी 2015 से ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यूपी में पैर जमाने को लेकर सक्रिय है। सितंबर 2021 में पार्टी ने घोषणा की थी वो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सभी 403 सीटों पर अपना प्रत्याशी उतारेगी, लेकिन अभी तक पार्टी की स्थिति चुनाव को लेकर पूरी तरह से साफ नहीं हो पाई है।

इतना तय है कि पार्टी चुनाव में शिरकत करेगी और उसका अपने स्तर पर अपने तरीके से चुनावी तैयारी भी जारी है। लेकिन पार्टी जिस धमाकेदार एंट्री के लिए जानी जाती है वो अभी तक यूपी में दिखाई नहीं दी है। इसके पीछे वजह चाहे कुछ भी हों, पर उसका असर मतदाताओं के मन मस्तिष्क पर अभी से दिखाई देने लगी है। रुझान यह है पार्टी के प्रति लोगों में संतोषजनक रुझान नहीं है। यानि यूपी में दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल, डिप्टी सीएम मनीषण और राज्यसभा सांसद संजय सिंह की ब्रिगेड अपनी रणनीति के तहत प्रदर्शन करने के लिहाज से बेदम साबित हुई है।

अहम सवाल




आप ने सितंबर 2021 में ही चुनाव की तैयारियों को लेकर तिरंगा संकल्प यात्रा की शुरुआत कर दी थी। आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ( Manish Sisodia )और सांसद संजय सिंह ( Sanjay Singh ) नोएडा और आगरा में 'तिरंगा संकल्प यात्रा' में न केवल शामिल हुए बल्कि नोएडा में मनीष सिसोदिया ने यूपी की सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान भी किया था। इससे पहले लखनऊ में पार्टी 'तिरंगा संकल्प यात्रा' निकाल चुकी है और आगामी 14 सितंबर को अयोध्या में भी निकाली गई थी।

23 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में पार्टी ने एक महीने में एक करोड़ कार्यकर्ताओं की औपचारिक भर्ती का अपना लक्ष्य बनाया था। एक करोड़ सदस्यों के लक्ष्य वाले अभियान का पहला पड़ाव लखनऊ में घनी मुसलमान आबादी वाला अमीनाबाद से प्रारंभ हुआ था, लेकिन इसमें पार्टी कितना सफल हुई इसको लेकर कोई चर्चा अभी तक नहीं हुई है। सबसे अहम सवाल यही है कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचंड बहुमत वाली भारतीय जनता पार्टी के अलावा राज्य में तीन बड़ी पार्टियां (समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस) पहले से ही मौजूद हैं। इसके अलावा राज्य के अलग-अलग हिस्सों में तमाम छोटी पार्टियां भी हैं। ऐसे में आप के लिए जगह की गुंजाइश बहुत कम है।

क्या यूपी का मुसलमान केजरीवाल पर भरोसा करेगा

यूपी में मुसलमान वोट को साधने की राणनीति भाजपा को छोड़ कर सारी विपक्षी पार्टियां खुलेआम करती हैं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही बनता है कि कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने पर केंद्र का समर्थन करने के फैसले के बाद, एनआरसी और सीएए जैसे मुद्दों पर परहेज करने वाली और 2020 के दिल्ली दंगों में हुई हिंसा के बाद क्या उत्तर प्रदेश का मुसलमान केजरीवाल पर भरोसा करेगा?

यूपी पंचायत चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन कितनी बड़ी उपलब्धि!

उत्तर प्रदेश में छह माह पूर्व संपन्न जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 3,000 से ज्यादा उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया था। पार्टी ने बाकायदा उम्मीदवारों की सूची जारी की। बाद में पार्टी नेतृत्व ने दावा किया कि 85 उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल हुए है।। पार्टी के नाम पर कुल 40 लाख वोट मिले हैं। उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े जिले लखीमपुर खीरी से पार्टी समर्थित छह प्रत्याशी जरूर विजयी हुए। लेकिन 403 विधानसभा और 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश के विशाल राजनीतिक कैनवस में कुछ 'समर्थित' ज़िला पंचायत सदस्यों की जीत का दावा और गिने चुने ग्राम प्रधानों की जीत को कितनी बड़ी राजनीतिक उपलब्धि माना जा सकता है और इसके आधार पर कितनी उम्मीद की जा सकती है?

मुद्दों पर राजनीति और अयोध्या में AAP

आम आदमी पार्टी ने जून महीने में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण से जुड़ी जमीन खरीद में मंदिर ट्रस्ट के घोटाले की बात उठाकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में दस्तक दी थी। उसके बाद शिक्षा और स्वासथ्य के मुद्दे पर योगी सरकार को बहस की चुनौती दी। पार्टी ने राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय और सदस्य अनिल मिश्रा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए तहरीर भी दी। इतना ही नहीं मॉनसून सत्र में इसको लेकर राज्यसभा में हंगामा भी मचाया। ऐसा लगने लगा कि राम मंदिर के निर्माण में भ्रष्टाचार आम आदमी पार्टी के लिए आस्था से जुड़े आंदोलन का रूप लेगा, लेकिन यह आंदोलन सड़कों पर नहीं उतरा और सिर्फ मीडिया और सोशल मीडिया पर दिखा।

SP से गठबंधन का प्रयास कितना जायज?






तीन जुलाई, 2021 सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सांसद संजय सिंह ने के साथ 'शिष्टाचार भेंट' की थी। तब अटकलें लगने लगीं कि सपा-आप का गठबंधन होने जा रहा है। संजय सिंह मुलायम सिंह से भी मिले। इसका नतीजा यह निकला कि ठीक दो दिन बाद सीबीआई ने प्रदेश के 13 जिलों में 40 ठिकानों पर व्यापक छापेमारी की। 1,600 करोड़ के गोमती रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट में अखिलेश यादव के कार्यकाल के दौरान धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप हैंं। उस वक्त सवाल उठा कि क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से खड़ी हुई आम आदमी पार्टी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सपा के साथ गठबंधन करेगी? अगर ऐसा है तो मनीष सिसोदिया ने क्यों कहा कि उनकी पार्टी राज्य की सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।

ब्रांड केजरीवाल का यूपी में इस्तेमाल कम क्यों?

2022 में उत्तर प्रदेश के साथ-साथ पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में भी विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। उत्तराखंड और पंजाब में अरविंद केजरीवाल खुद सामने आ रहे हैं। कद्दावर नेताओं को वो खुद पार्टी में शामिल कर रहे हैं। मुफ्त 300 यूनिट बिजली जैसे वादे कर रहे हैं। पंजाब, उत्तराखंड और गोवा जैसे छोटे राज्यों में पार्टी को अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है तो केजरीवाल उन राज्यों के चुनावी दौरे पर ज्यादा कर रहे हैं। जबकि सियासी नजरिए से यूपी अहम राज्य है। लेकिन यहां केजरीवाल खानापूर्ति के लिए केवल आ रहेर हैं। खास बात यह है कि केजरीवाल पार्टी का 'तुरुप का पत्ता' हैं तो हो सकता है कि उत्तर प्रदेश में पार्टी उनका नपे-तुले तरीके से इस्तेमाल करे ताकि अगर पार्टी का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक़ न हुआ तो असर केजरीवाल की लोकप्रियता पर न पड़े। यहां पर आपको बतादें कि 2014 में केजरीवाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बनारस से चुनाव लड़ 3.7 लाख वोटों से हार चुके हैं, लेकिन हार के बावजूद उन्हें दो लाख वोट मिले थे। यह भी सही है कि पार्टी केजरीवाल को सामने रख कर ही उत्तर प्रदेश में क़दम बढ़ा रही है. पार्टी अपने अभियान में बार-बार केजरीवाल की दिल्ली सरकार को मॉडल सरकार के तौर पर पेश कर रही है। इसके बावजूद केजरीवाल की सक्रियता पंजाब, उत्तराखंड और गोवा में ज्यादा होना यूपी के मतदाताओं के समझ से परे है।

पार्टी के दावों पर कई सवाल

पार्टी के यूपी प्रभारी राजेंद्र पाल गौतम को भरोसा है कि कार्यकर्ता चुनाव होते-होते संगठन बना लेंगे। लेकिन केजरीवाल से लोगों को कितना भरोसा मिल पाएगा, इसको लेकर कोई पक्का दावा नहीं किया जा सकता, क्योंकि अभी कहीं भी पार्टी का जनाधार नहीं दिखता है। न ही पार्टी अब तक यहां कोई बड़ा आंदोलन चला सकी है। इन सबके साथ जातिगत समीकरणों के आधार पर भी बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के पास एक तरह से फिक्स वोट बैंक है। ऐसे किसी वोट बैंक का नहीं होना अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए सबसे बड़ी कमजोरी है। यूपी बहुत बड़ा राज्य है। उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी के पास दिल्ली के स्तर का कोई संगठन और मिशन नहीं है। काम करने का तरीका का बहुत शहरी है। उत्तर प्रदेश एक बड़ा ग्रामीण राज्य है। आम आदमी पार्टी जो भी करती है उसे एक इवेंट बना कर पेश किया जा रहा है। दलित समाज बसपा के साथ रहा है और चाहे कोई भी पार्टी उसे लुभाने की कोशिश करे, वह बहनजी के पीछे चट्टान की तरह खड़ा है।

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