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राजनीति

UP elections 2022 : सपा-रालोद का पहली बार एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला किसी 'इम्तिहान' से कम नहीं

Janjwar Desk
30 Nov 2021 12:22 PM IST
UP elections 2022  : सपा-रालोद का पहली बार एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला किसी इम्तिहान से कम नहीं
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समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल पहली बार एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला ‘इम्तिहान’ जैसा। 

UP elections 2022 : समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल पहली बार एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला लगभग हो चुका है। यह दोनों के लिए वेस्ट यूपी में किसी इम्तिहान की तरह है। 2017 में सपा को कांग्रेस से दोस्ती का कोई लाभ नहीं मिला था।

UP elections 2022 : उत्तर प्रदेश में जारी सियासी धमासान के बीच समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल ने पहली बार एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला लिया है। इस बार दोनों दल कृशि बिल, किसान आंदोलन, जाट आरखण और अजित सिंह के निधन से उपजी सहानुभूति लहर का लाभ उठाना चाहते हैं। वेस्ट यूपी में जातीय वोटों के आधार किसान आंदोलन के कारण रालोद ने अधिक सीटें मांगी हैं। अखिलेश यादव ने इस पर सहमति जता दी है।

साल 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय लोकदल ने अकेले 357 सीटों पर लड़ा था और एक सीट छपरौली हासिल की थी। बाद में वह भी भाजपा के खाते में चली गई थी। अब किसान आंदोलन और अजित सिंह के निधन से रालोद को संजीवनी मिली है। इसका असर आगरा से लेकर सहारनपुर तक जाट प्रभावित 40 सीटों पर हो सकता है।

इन क्षेत्रों में रालोद का मजबूत दावा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ-सहारनपुर मंडल जाट और मुसलिम समीकरण के कारण अहम हैं। किसान आंदोलन का सर्वाधिक प्रभाव भी यहीं है। इन दोनों मंडलों में 52 सीटें हैं। पिछली बार भाजपा के खाते में 42 और सपा के खाते में 06 सीटें थीं। बसपा और रालोद के पास एक-एक सीट थी। कांग्रेस सपा से गठबंधन में दो सीटें ले गई थी। सपा-रालोद गठबंधन से चालीस सीटों पर भाजपा के सामने चुनौती देने की तैयारी है।

रालोद इन दोनों मंडलों में अपने प्रभाववाली 26 सीटों की मांग की है। खासकर मेरठ, बिजनौर, हापुड़, मुरादाबाद, बागपत मुजफ्फरनगर और शामली। समाजवादी पार्टी के खाते में 30 सीटें हो सकती हैं। इनमें से अधिकांश शहरी सीटें हैं। अदला-बदली में छह सीटें मानी जा रही हैं जिसमें तीन सीटें अकेले मुजफ्फरनगर की हैं। जाट-मुसलिम समीकरण पर निगाहें हैं लेकिन इसमें कैराना और मुजफ्फरनगर के मुद्दे प्रभावी हो सकते हैं। रालोद ने बागपत की सभी तीनों सीटें, बिजनौर, सहारनपुर और बुलंदशहर में चार, हापुड़ की तीन और मेरठ की भी तीन सीटें मांगी हैं। सपा की मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर सिटी की सीटों पर अपना दावा बरकरार है। कैराना की चर्चित सीट सपा अपने पास ही रखेगी।

मुरादाबाद मंडल में असर कम

मुरादाबाद जिले की छह में सिर्फ एक सीट कांठ पर रालोद ने दावा किया है। यहां जयंत चौधरी की जनसभा भी हो चुकी है। इसके अलावा ठाकुरद्वारा, बिलारी, कुंदरकी, मुरादाबाद देहात और शहर में रालोद का असर बहुत ही न के बराबर है। वर्तमान में छह में से दो सीटें भाजपा के पास और चार सीटें सपा की झोली में हैं। रामपुर जिले की बात करें तो यहां बिलासपुर में सपा-रालोद गठबंधन का मामूली असर हो सकता है। रामपुर सदर सीट, स्वार और चमरौवा में रालोद का असर नहीं है। अमरोहा जिला जरूर ऐसा माना जाता है जहां जाट बहुल क्षेत्र में दो विधानसभा सीटें आती हैंं इसमें धनौरा और नौगांवा सादात में असर दिखाई पड़ सकता है। यहां अमरोहा सदर के अलावा शेष तीन सीटें भाजपा के पास हैं। मंडल में अगर कहीं असर सबसे ज्यादा दिखेगा तो अमरोहा में दिख रहा है वह भी दो सीटों पर असर होगा। संभल जिले में चार सीटें हैं इनमें असमोली सीट पर ही रालोद सपा गठबंध का कुछ असर हो सकता है। गुन्नौर, चंदौसी और संभल सीटों पर किसी तरह का असर इस गठबंधन का नहीं होने वाला। गुन्नौर और चंदौसी भाजपा के पास हैं जबकि संभल सदर और असमोली पर सपा जीती थी।

बरेली मंडल की तीन सीटों पर दावा

बरेली मंडल में राष्ट्रीय लोकदल बरेली की कैंट, बहेड़ी और पीलीभीत की बरखेड़ा सीट पर अपनी दावेदारी कर सकता है। हालांकि, उसके परंपरागत जाट वोटों की संख्या इन सभी सीटों पर कम है। फिर भी इन सीटों पर कुछ जाट नेता सक्रिय हैं।

ब्रज में 11 सीटों पर दावा

ब्रज क्षेत्र में आगरा, मथुरा, अलीगढ़ और हाथरस जिले की 24 विधानसभा सीटों में से 11 पर रालोद का प्रभाव माना जाता है। 2017 में आगरा जिले की सभी नौ विधानसभा सीटों पर रालोद ने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन एक सीट पर ही उसके प्रत्याशी की जमानत बच सकी थी। सपा छह स्थानों पर लड़ी थी। इसमें पांच पर प्रत्याशी की जमानत बची थी। इस बार गठबंधन की स्थिति में आगरा की फतेहपुर सीकरी, खेरागढ़ और आगरा ग्रामीण विधानसभा सीटों पर रालोद की मजबूत दावेदारी है। यह तीनों सीटें जाट बहुल मानी जाती हैं। जिले की अन्य छह सीटों पर सपा अपने प्रत्याशी उतार सकती है।

मेरठ-मुजफ्फरनगर के बाद ब्रज में मथुरा को रालोद का मजबूत किला माना जाता है। सपा से समझौते पर यहां रालोद को फायदा होने का अनुमान है। मथुरा-वृंदावन विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर अन्य चारों सीटों मांट, बलदेव, छाता और गोवर्धन पर रालोद का अच्छा वोट बैंक है। इन चारों सीटों पर रालोद के कभी न कभी विधायक भी जीते हैं। यह बात अलग है कि इस समय रालोद का यहां से एक भी विधायक नहीं है। सपा से समझौते में मथुरा जनपद की पांच में से चार मांट, बलदेव, गोवर्धन और छाता सीटें रालोद को मिलने की चर्चाएं हैं। वहीं मथुरा-वृंदावन सीट से सपा का उम्मीदवार लड़ सकता है। किसान आंदोलन से भी यहां रालोद को मजबूती मिली है।

अलीगढ़-हाथरस

जहां तक अलीगढ़-हाथरस की बात है तो यहां विधानसभा सीटें रालोद को मिल सकती हैं। इस समय अलीगढ़ की जाट बाहुल्य सीट इगलास-खैर और बरौली पर भाजपा का कब्जा है। हाथरस की जाट बाहुल्य विधानसभा सीट सादाबाद पर रालोद तीन बार चुनाव जीत चुकी है। 2017 में इस सीट से बसपा के पूर्व मंत्री रामवीर उपाध्याय जीते थे।

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