केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहितों जनप्रतिनिधियों पर बरसायेंगे अंडे और टमाटर, अगर जल्दी नहीं सुलझाया देवस्थानम विवाद
देवस्थानम बोर्ड पर कोई निर्णय नहीं लेने से तीर्थ पुरोहितों में धामी सरकार के खिलाफ भारी नाराजगी
सलीम मलिक की रिपोर्ट
ऋषिकेश, जनज्वार। देवस्थानम बोर्ड के मुददे पर उत्तराखण्ड (Uttarakhand) की पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) सरकार के ढीले-ढाले रवैये को देख तीर्थ-पुरोहितों ने एक बार फिर आंदोलन (Protest) के तेवर अख्तियार कर लिए हैं। 30 अक्टूबर तक आंदोलन स्थगित किये जाने की अपनी ही घोषणा के विपरीत तीर्थ-पुरोहित (Tirth Purohit) यह कदम बोर्ड भंग करने की दिशा में सरकार की कोई पहलकदमी न होते देख उठा रहे हैं। गुरुवार 23 सितंबर को ऋषिकेश के एक आश्रम में चारथाम तीर्थ पुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत ने सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए आंदोलन के स्थगन की तिथि से पहले दोबारा आंदोलन करने का ऐलान किया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आश्वासन के बाद चारधाम तीर्थ पुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत (Haq Hakookdhari Mahapanchayat) ने दस दिन पूर्व 30 अक्टूबर तक आंदोलन स्थगित किया था। अब सरकार के ढुलमुल रवैया को देखते हुए समिति ने पुन: आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया है।
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हक-हकूकधारी महापंचायत के सचिव हरीश डिमरी (Harish Dimri) व कोषाध्यक्ष लक्ष्मीकांत जुगलान (Laxmikant Juglan) ने कहा कि महापंचायत शीघ्र ही चारों धामों में तीर्थ पुरोहितों तथा हक-हकूकधारियों के साथ बैठक कर आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेगी। सरकार के प्रतिनिधियों को हर जगह घेरा जाएगा। जरूरत पड़ी तो तीर्थ पुरोहित अपने आचरण के विरुद्ध उन पर टमाटर और अंडे बरसाएंगे।
गौरतलब है कि चारधामों में यात्रा व्यवस्था तथा प्रबंधन के लिए सरकार की ओर से गठित देवस्थानम बोर्ड का शुरुआत से ही चारधाम तीर्थ पुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत विरोध कर रही है। बोर्ड को भंग करने की मांग को लेकर महापंचायत ने लंबा आंदोलन भी किया था।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बीती 11 सितंबर को महापंचायत को इस मुद्दे पर बैठक के लिए आमंत्रित किया था। बैठक में समाधान के लिए दस बिंदु तय करते हुए मुख्यमंत्री के आश्वासन पर महापंचायत में 30 अक्टूबर तक के लिए अपना आंदोलन स्थगित करने का निर्णय लिया था।
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लेकिन अब महापंचायत का कहना है कि बैठक में तय किये गए बिंदुओं पर 10 दिन में कोई भी सकारात्मक निर्णय नहीं लिया गया है। राज्य में सत्तासीन धामी सरकार की मंशा है कि इस मामले को फिलहाल लटकाते हुए चुनाव की अधिसूचना जारी होने का इंतज़ार किया जाए, जिससे इस मुद्दे को अगली सरकार के लिए लटका दिया जाए। गुरुवार 23 सितंबर को चारधाम तीर्थ पुरोहित हक-हकूकधारी महापंचायत की ऋषिकेश में आपात बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि महापंचायत 30 अक्टूबर तक का इंतजार नहीं करेगी। जिस तरह सरकार ने वादाखिलाफी की है, उसका जवाब आंदोलन के रूप में दिया जाएगा।
बैठक के बाद जानकारी देते हुए महापंचायत के अध्यक्ष कृष्णकांत कोटियाल ने बताया कि बैठक के 10 दिन का समय बीत जाने के बाद भी अभी तक देवस्थानम बोर्ड को फ्रीज नहीं किया गया। देवस्थानम बोर्ड के नाम से धामों में लगातार रसीदें काटी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने जो हाईपावर कमेटी गठित की है, उसके लिए अभी तक कोई कार्यालय तक आवंटित नहीं किया गया है। महापंचायत के सदस्य हाईपावर कमेटी से वार्ता करने अथवा सुझाव देने जाते भी हैं तो इसके लिए कोई निश्चित स्थान तक नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार ने हाईपावर कमेटी में प्रत्येक धाम से दो-दो सदस्यों के नाम मांगे थे, जो बैठक के दिन ही उपलब्ध करा दिए गए थे। मगर, अभी तक उन नामों को कमेटी में शामिल नहीं किया गया है। कुल मिलाकर सरकार ने उनके साथ वादाखिलाफी की है।
महापंचायत ने न्यायालय के रोक हटने के बाद शुरू हुई चारधाम यात्रा के संचालन पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि आनलाइन पंजीकरण, ई-पास और तमाम अन्य अव्यावहारिक औपचारिकताएं सरकार की ओर से थोपी गई हैं, जिससे चारधाम यात्रा आ रहे श्रद्धालु धामों से बिना दर्शन किए वापस लौट रहे हैं। चारधाम यात्रा सिर्फ नाममात्र के लिए खोली गई है। यात्रा से जुड़े तमाम व्यवसायी तथा अन्य रोजगार से जुड़े लोग खाली बैठे हैं।
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उन्होंने कहा कि एक तरफ तो मुख्यमंत्री तीर्थ पुरोहितों से वार्ता करते हैं, लेकिन दूसरी तरफ सरकार के मंत्री इसके खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं। यह कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
इस दौरान भैरव सेना संगठन ने भी महापंचायत के आंदोलन को समर्थन दिया। बैठक में महापंचायत के ऋषिकेश नगर अध्यक्ष प्रशांत भट्ट, ओम प्रकाश ध्यानी, दुर्गेश भट्ट, पन्नालाल कोटियाल, बृज नारायण ध्यानी, मनोज भट्ट, भैरव सेना के अध्यक्ष संदीप खत्री, महासचिव आचार्य उमाकांत भट्ट, भूपेंद्र भट्ट, गिरीश डालाकोटी, अखिलेश कोटियाल, मनोज भट्ट आदि मौजूद रहे।
गौरतलब है कि वर्ष 2020 में सरकार ने देवस्थानम बोर्ड का गठन किया था। उस समय भी तीर्थ पुरोहित व हकहकूकधारियों ने सरकार के फैसले का कड़ा विरोध किया था। इसके बावजूद तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अपने फैसले से पीछे नहीं हटे। वहीं, गंगोत्री में पिछले साल भी निरंतर धरना होता रहा। केदारनाथ और बदरीनाध धाम में तो बोर्ड ने कार्यालय खोल दिए, लेकिन गंगोत्री में तीर्थ पुरोहितों के विरोध के चलते कार्यालय तक नहीं खोला जा सका।
उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन होने के बाद सत्ता संभालते ही पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने देवस्थानम बोर्ड के फैसले पर पुनर्विचार करने की बात कही थी। तीरथ सिंह रावत के बाद पुष्कर धामी सीएम बने और उन्होंने भी इस संबंध में अभी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया है। सिर्फ आश्वासन दिया है। जबकि उनके मंत्री सतपाल महाराज बोर्ड के पक्ष में न केवल जमकर बयानबाजी कर रहे हैं, बल्कि वह तीर्थ-पुरोहितों पर बोर्ड के 'लाभदायक' प्रावधानों को 'ठीक' से न समझने का इल्जाम भी लगा रहे हैं।