तीरथ सिंह रावत के इस्तीफे से सबसे ज्यादा दुखी क्यों है उत्तराखण्ड का स्वास्थ्य महकमा
उत्तराखण्ड में मौसम से भी तेज गति से बदलते मुख्यमंत्रियों पर राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता इंद्रेश मैखुरी की तल्ख टिप्पणी
चौंक गए, जी हाँ, ये बात सच है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने इस्तीफा दे दिया तो इससे सबसे ज्यादा दुखी स्वास्थ्य विभाग वाले हैं। यूं तो स्वास्थ्य का महकमा मुख्यमंत्री के पास ही था, पर स्वास्थ्य विभाग वाले इसलिए दुखी नहीं कि उनका विभाग एक कुशल मंत्री से महरूम हो गया।
स्वास्थ्य विभाग वालों का दुख बड़ा गहरा है, जिसका संबंध मुख्यमंत्री की तस्वीर से है। दरअसल कोरोना काल में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को घर-घर जाकर होम आइसोलेशन किट और आयुष किट बांटनी पड़ रही है। तीन महीने पहले जब मुख्यमंत्री बदले तो इस किट को बांटने का काम रोकना पड़ा। वजह किट पर पुराने मुख्यमंत्री की फोटो थी। किट के भीतर का मैटीरियल कई जगह कम पाया गया। इससे किसी को कोई परेशानी नहीं हुई, परंतु मुख्यमंत्री नया और किट पर फोटो पुराने मुख्यमंत्री की, इसे अत्यधिक गंभीर संकट माना गया। देहरादून में तो बाकायदा एएनएम को किट पर से पुराने मुख्यमंत्री की फोटो फाड़ने और नए की चिपकाने के काम पर लगाया गया!
स्वास्थ्य के सरकारी अध्येताओं में से किसी ने यह पाया होगा कि किट के भीतर की दवाइयां, ताजा मुख्यमंत्री के फोटो के साथ ज्यादा असरदार होती हैं, इसलिए जब कुछ जगहों पर नए मुख्यमंत्री की फोटो आने में देर होने पर, कुछ उत्साही स्वास्थ्यकर्मी फोटो रहित किट बांट आए तो उनसे बाकायदा फोटो विहीन किट वापस मंगवाई गयी और नए मुख्यमंत्री की फोटो चिपका कर उनको दोबारा बांटा गया! आमजन के स्वास्थ्य के साथ भले खिलवाड़ हो जाये पर बड़ी मुश्किल से मुख्यमंत्री बने खास जन के प्रचार में कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए! उस समय कोताही बरत ली गयी होती तो अब थोड़े कोई तीरथ भाई के फोटो लगे किट बांटता!
इसलिए मुख्यमंत्री के इस्तीफे के साथ स्वास्थ्य विभाग वाले पुनः सांसत में हैं! उन पर भी यह रात भारी है! वितरण किए जाने वाले सारे किटों पर से पुराने मुख्यमंत्री का फोटो फाड़ना है, नया जो बनेगा, उसका फोटो चिपकाना है! सरकारी किट तभी असरकारी होगा!
बताते हैं कि किसी ने सुझाव दिया कि इन किटों पर सिर्फ "रावत" लिख दिया जाये, पर विद्वत जनों ने इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया। अव्वल तो कोई और मुख्यमंत्री बन गया तो फाड़ने का काम डबल हो जाएगा, दूसरा सिर्फ नाम ही नहीं मुख्यमंत्री का फोटो भी किट की दवाओं को असरकारी बनाने के लिए बहुत जरूरी है!
पहले ऐसा होता था कि सूचना विभाग की वेबसाइट पर सूचना निदर्शिनी का पीडीएफ़ मौजूद रहता था। लंबे अरसे से उस जगह पर सूचना चस्पा है कि नई निदर्शिनी अद्यतन की प्रक्रिया में है।
महीनों तक उस नोटिस को देख कर काफी कोफ़्त होती रही, पर सूचना विभाग वालों की पीड़ा आज समझ में आई। आदमी क्षणभर पहले मुख्यमंत्री था, फिर अचानक वह पैदल हो गया! दूसरा सांसद था,अचानक मुख्यमंत्री हो गया, जब तक उसके नाम की डायरी छापते तब तक अभूतपूर्व तरीके से वह भूतपूर्व हो गया!
तो सबसे पहले मुख्यमंत्री की तस्वीरें और फ़्लेक्स छापने वालों की चांदी होने वाली है! बाकी कुछ काम हो न हो, लेकिन पूरे प्रदेश में नए मुख्यमंत्री के बड़े-बड़े फ़्लेक्स और होर्डिंग तो रातोंरात टंग जाने चाहिए. वही होर्डिंग तो बताते हैं कि जो बनाए गए हैं वे बेहद यशस्वी हैं, अत्यंत लोकप्रिय हैं! कार्यकर्ताओं को उनके अब तक न बनाए जाने का भले ही कोई अफसोस न रहा हो, पर चुनाव पूर्व की चलाचली की बेला में उनके मुख्यमंत्री पद पर बैठने से कार्यकर्ताओं में हर्ष की लहर कोरोना की लहर से तेज चल रही है! साथ ही लोगों को भी पता चलना चाहिए कि मुख्यमंत्री की फसल इस बार तीन महीने में ही तैयार हो गयी है। बस बाकी फसल और इस फसल में यह अंतर है कि बाकी फसलें किसान काटता है और यह फसल राज्य को काटती है!
(इंद्रेश मैखुरी का यह लेख पहले nukta-e-najar पर प्रकाशित)