बहराइच सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों से कब मिलेंगे योगी, क्या किसी के घर पर भारी भीड़ के साथ जबरन चढ़कर नारेबाजी-तोड़फोड़ अपराध नहीं !
लखनऊ। रिहाई मंच ने बहराइच हिंसा में मारे गए रामगोपाल मिश्रा के परिजनों को सरकार द्वारा आर्थिक सहायता, नौकरी और अन्य योजनाओं के लाभ देने पर सवाल उठाते हुए कहा कि बडे़ पैमाने पर आगजनी और लूटपाट के शिकार लोग क्या सरकार को नहीं दिख रहे हैं। सांप्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों से मुख्यमंत्री कब मिलेंगे। जिस तरह रामगोपाल की हत्या करने वाले अपराधी हैं, ठीक उसी तरह दूसरे के घर पर तोड़फोड़, धार्मिक आधार पर भड़काने वाले भी अपराधी हैं। अपराध करने वालों को अगर सरकारी मदद दी जाएगी तो अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा। योगी आदित्यनाथ जिस पद पर बैठे हैं उसके संवैधानिक मूल्य हैं और हमारा संविधान सांप्रदायिक आधार पर भेदभाव की इजाज़त नहीं देता है। घटना के तीन दिन बाद भी आगलगी की सूचनाएं और मुस्लिम समाज के लोगों के घर छोड़ने की खबरें साफ करती हैं कि सरकार सुरक्षा देने में नाकाम है।
रिहाई मंच अध्यक्ष मोहम्मद शोएब ने कहा कि किसी व्यक्ति को गोली मारना यदि अपराध है तो किसी व्यक्ति द्वारा भीड़ लेकर उत्तेजक नारे लगाते हुए दूसरे के घर पर जबरन चढ़कर तोड़फोड़ करना, उसकी धार्मिक पहचान वाले झंडे को हटाकर अपने धार्मिक पहचान वाला झंडा लहराना भी अपराध है। उन्होंने कहा कि रामगोपाल मिश्रा की हत्या किन परिस्थितियों में हुई, उन तथ्यों को छुपाया जा रहा है। कहा जा रहा है कि मृतक को घर में घसीट कर गोली मारी गई। विसर्जन यात्रा में इतनी बड़ी भीड़ से किसी एक व्यक्ति को घसीटकर घर में ले जाकर मारना तथ्यों से परे है। रामगोपाल मिश्रा पर गोली चलते किसी ने देखा नहीं इसलिए बिना जांच या विवेचना के इस निष्कर्ष पर पहुंचना की गोली किसने चलाई निरर्थक है। यह सवाल उठता है कि जिस समय भीड़ हमीद के घर के बाहर नारे लगा रही थी तब हिंसक भीड़ के डर से क्या हमीद के घर का कोई व्यक्ति घर से बाहर निकलने या छत पर जाने की हिम्मत कर सकता था। छत पर खून के निशान भी सवाल करते हैं कि क्या जब वह छत पर था तभी किसी ने गोली मारी। क्योंकि जब रामगोपाल छत पर भगवा फहरा रहे थे तो उस वीडियो में एक व्यक्ति और दिख रहा था यानी और लोग भी आसपास की छतों पर थे। इसलिए आवश्यक है कि पूरी घटना की जांच या विवेचना माननीय उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में कराई जाए ताकि घटना के सही तथ्य सामने आ सकें।
मंच अध्यक्ष ने कहा कि डीजे को लेकर विवाद, उसके बाद पथराव, उसके बाद लाठी चार्ज से भगदड़, तनाव और उसके बाद रामगोपाल छत पर चढ़ा, इस बयान पर सवाल उठता है। भगदड़ की स्थिति में क्या रामगोपाल छत पर चढ़ पाते और भीड़ उनके समर्थन में नारे लगा पाती। ऐसा नहीं हो सकता। क्योंकि भगदड़ की स्थिति में इतने लोग इकट्ठा नहीं हो सकते थे। यह बात भीड़ में शामिल लोगों ने भी मीडिया से कहा कि रामगोपाल पर हमले के बाद लाठी चार्ज हुआ। परिस्थितियां भी दर्शाती हैं कि रामगोपाल के छत पर चढ़ने के बाद विवाद शुरू हुआ होगा न कि डीजे बंद करने को लेकर हुए विवाद के बाद रामगोपाल छत पर चढ़े होंगे। वायरल वीडियो इसको पुष्ट करता है।
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि रामगोपाल मिश्रा की मौत के बाद बहराइच और आस-पास रात में धरने प्रदर्शन होते रहे। दूसरे दिन पुलिस के साथ हजारों की भीड़ का लाठी-डंडों के साथ शव यात्रा निकला जाना क्या यही सरकार का जीरो टॉलरेंस है। जो सरकार हाथरस में बेटी के बलात्कार के बाद रात के अंधेरे में जबरन लाश जलवा देती है क्या उसने इसलिए शवयात्रा निकालने की छूट दी, ताकि दंगाई हमला कर सकें।
विवादित बयानों के खिलाफ जब भी मुस्लिम समाज के लोगों ने विरोध किया तो उसे अराजकता कहकर पुलिस कार्रवाई की गई और इलाहाबाद में तो जावेद मुहम्मद के घर को बुलडोजर से ढहा दिया गया। रामगोपाल की जगह कोई मुस्लिम व्यक्ति रहा होता तो भी क्या सरकार मदद करती। सांप्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों ने मीडिया में बोला है कि विधायक के बेटे गोलू के साथ दंगाइयों ने हमला किया। बहराइच के छावनी इलाके की दुकान में आगजनी-तोड़फोड़ की सूचना आई है। महराजगंज समेत कबड़ियापुरवा, रेहुआ मंसूर, गौरिया इलाकों में भी बड़े पैमाने पर आगजनी-लूटपाट हुई। पुलिस छापेमारी कर मुस्लिम पुरुषों की गिरफ्तारी कर रही है, घरों के दरवाज़े तक को तोड़ दे रही है और अघोषित कर्फ्यू की स्थिति में पहचान के आधार पर हमले किए गए हैं।
मंच महासचिव ने कहा कि एसपी वृंदा शुक्ला जब मीडिया से बात करते हुए स्थिति सामान्य होने की बात कह रहीं थीं तो आसपास में लग रहे नारों से स्पष्ट हो रहा था कि स्थिति कितनी सामान्य है। पत्रकारों तक ने लिखा है कि जब वे वहां गए तो स्थानीय लोगों ने उनके आधार कार्ड चेक किए और कहा कि वीडियो मत बनाना। मीडिया के अनुसार बहराइच के एडिशनल एसपी मौके पर पहुंचने के बजाय एक कंपनी पीएसी लेकर दो किमी दूर खड़े थे। एडीजी ने पिस्टल निकालकर उपद्रवियों को खदेड़ने के बाद एडिशनल एसपी को फटकार लगाई। इससे स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
भाजपा विधायक शलभमणि त्रिपाठी द्वारा मुस्लिम पत्रकारों की सूची जारी कर उनकी जान-माल को खतरा पैदा कर दिया गया। इंटरनेट बंद होने से अफवाह पर अंकुश लगा गांवों में हुई हिंसा की तस्वीरें गायब हो गई हैं। वीडियो से चिन्हित कर कार्रवाई करने वाला प्रशासन बताए कि उसने कितने ऐसे लोगों के खिलाफ एफआईआर की, जिन्होंने दुकानों-मकानों को आग के हवाले किया। क्या रामगोपाल के साथ जिस भीड़ ने अब्दुल हमीद के घर के सामने हिंसा को भड़काया उनके खिलाफ कोई एफआईआर की गयी है। इस आयोजन को करने वाले संगठन जिनकी जिम्मेदारी थी कि शांति के साथ आयोजन करें, उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है। इन सवालों का जवाब ज़रूरी है, ताकि सच सामने आए।