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राजनीति

कौन हैं मंत्री रहे जयनारायण व्यास जिन्होंने इस्तीफा देकर गुजरात में बढ़ा दी भाजपा की मुश्किलें?

Janjwar Desk
5 Nov 2022 10:06 AM IST
कौन हैं मंत्री रहे जयनारायण व्यास जिन्होंने इस्तीफा देकर गुजरात में बढ़ा दी भाजपा की मुश्किलें?
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कौन हैं मंत्री रहे जयनारायण व्यास जिन्होंने इस्तीफा देकर गुजरात में बढ़ा दी भाजपा की मुश्किलें?

Gujrat Chunav 2022 : हाल ही में मोरबी ब्रिज हादसे को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में जयनारायण व्यास ने कहा था कि अगर इसे पर्यटकों के लिए चालू करने के पहले टेस्ट कर लिया गया होता तो हादसा नहीं होता।

Gujrat Chunav 2022 : गुजरात में विधानसभा चुनाव 2022 से ठीक पहले भाजपा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री और पीएम मोदी ( PM Modi ) के करीबी रह चुके जयनारायण व्यास ( BJP Leader Jaynarayan Vyas resigned ) ने पार्टी से इस्तीफा देकर वहां की सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है। उनके इस्तीफे को गुजरात ( Gujrat ) में भाजपा ( BJP ) के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। वह किसके पाले में जाएंगे इसका अभी ऐलान उन्होंने नहीं किया है। बताया जा रहा है कि वो कांग्रेस ( Congress ) या आप ( AAP ) में शामिल होकर चुनावी मैदान में उतर सकते हैं।

इस बार आम आदमी पार्टी की गुजरात मे दमदार एंट्री से वहां का मुकाबला दिलचस्प हो गया है। आप की मजबूत सक्रियता की वजह से गुजरात चुनाव त्रिकोणीय होने की उम्मीद जताई जा है। इसलिए ज्यादा उम्मीद है कि वो आप में शामिल हो जाएं।

मोदी ने फोनकर बताया आपको चुनाव लड़ना है तो चौंक गए थे व्यास

जयनारायण व्यास ( Jaynarayan Vyas ) का भाजपा ( BJP ) से 32 साल पुराना नाता है। उनके सियासी सफर की शुरुआत 1990 से होती है। उस दौर में गुजरात बीजेपी (BJP) ने खुद को मजबूत करने के लिए पढ़े-लिखे लोगों को पार्टी से जोड़ने का सिलसिला शुरू किया था। उसी दौरान दिलीप पारिख और कई प्रमुख प्रबुद्ध लोगों के साथ जयनारायण व्यास (Jay Narayan Vyas) बीजेपी से जुड़ गए। पार्टी की रणनीति ऐसे लोगों को चुनाव में उतारने की थी, जिससे कांग्रेस को मजबूत चुनौती दी जा सके। उस वक्त नरेंद्र मोदी संगठन मंत्री थे। एक दिन व्यास को खानपुर भाजपा कार्यालय से फोन आया। नरेंद्र मोदी ने उन्हें कहा कि आने वाले चुनाव में आपको सिद्धपुर से लड़ना है। व्यास सकपका गए, क्योंकि उस वक्त के मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी (Madhav Singh Solanki) और उद्योग मंत्री से उनके अच्छे रिश्ते थे। व्यास ने कहा कि मुझे समय दीजिए, अगर नाम घोषित हो गया तो सरकार सेवानिवृत्ति नहीं देगी। व्यास ने इसके बाद अपनी नौकरी से इस्तीफा दिया और फिर चुनाव लड़े। वे चुनाव जीतकर विधायक बन गए।

मोदी ने 2007 में बनाया था मंत्री

1990 के चुनाव में बीजेपी को 67 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 33 और जनता दल को 70 सीटें मिलीं। चिमनभाई पटेल (Chimanbhai Patel) मुख्यमंत्री बन गए और जयनारायण व्यास (Jay Narayan Vyas) सिद्धपुर से जीतकर विधायक बन गए। उसके बाद वो पार्टी नेता के तौर पर काम करते रहे। इसके बाद 1995 और 1998 के चुनावों में व्यास जीते और विधानसभा पहुंचे। 2002 के चुनाव में वह चुनाव हार गए। जब गुजरात की राजनीति में नरेंद्र मोदी की वापसी हुई और वे मुख्यमंत्री बने तो जयनारायण व्यास का फिर से संपर्क बढ़ा। इसकी प्रमुख वजह थी कि अतीत में वह एक ब्यूरोक्रेट रह चुके थे। गुजरात के मुद्दे की उन्हें नीतिगत समझ थी। व्यास 2007 में फिर सिद्धपुर से लड़े और जीत कर राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बन गए।

गुजरात दंगे और एनकाउंटर के दौर में Modi का करते रहे बचाव

गुजरात दंगे हों या फिर फर्जी मुठभेड़ के मामले जयनारायण व्यास सरकार के अधिकृत प्रवक्ता के तौर पर टीवी चैनलों में दिखने लगे। 2007 से लेकर 2012 तक वे मंत्री रहे और साथ ही साथ ये काम भी करते रहे। 75 साल के जयनारायण व्यास की पहचान ऐसी है कि लोग कभी उन्हें सरकार के फैसलों के पक्ष में दलील रखते हुए देखते थे। आज वे विश्लेषक हैं। काफी पढ़े-लिखे जयनारायण व्यास के बारे में कहा जाता है कि वे गुजरात सरकार के मुश्किल मौकों पर इकलौते ऐसे नेता थे जो आसानी से अंग्रेजी में बात करते थे। कठिन हालात में बातों को बेहतर तरीके से रखकर बचाव करते थे। भाजपा सरकार में उनकी अहमियत इतनी अधिक हो गई कि अगर कोई विदेशी डेलीगेशन आता तो जयनारायण व्यास से जरूर मिलता था। व्यास अपनी दलीलों से सरकार के फैसलों का पक्ष रखते और उसके फायदे गिनाते। इसके लिए वे अपना पुराना अनुभव भी इस्तेमाल में लाते थे।

2012 और 2017 में मिली हार ने घटाया सियासी कद

सरकार के प्रमुख चेहरों में शामिल जयनारायण व्यास (Jay Narayan Vyas) के लिए 2012 ठीक नहीं रहा। विधानसभा चुनाव में वह सिद्धपुर से हार गए। बलवंत सिंह राजपूत ने उन्हें हरा दिया। हार की वजह से वे मंत्री नहीं बन पाए। पार्टी में सक्रिय रहे। पार्टी ने उन्हें 2017 में भी मैदान में उतारा, लेकिन वे नहीं जीत पाए। राजनीतिक हलकों में चर्चा रही है कि सिद्धपुर की एपीएमसी में उन्होंने अपने बेटे को स्थापित करने की जो कोशिश की, उससे गलत संदेश गया। इसके बाद वे अपने गढ़ में कमजोर हो गए लगातार दो बार चुनाव हार गए।

समर्थक से बन गए आलोचक

साल 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद जयनारायण व्यास (Jay Narayan Vyas) का सियासी वजूद कमजोर हुआ तो हाशिए पर आ गए। रही-सही कसर उनकी साफगोई ने पूरी कर दी। उसके बाद से वो सरकार के फैसलों की आलोचना करते आ रहे हैं। इसका नतीजा यह निकला कि वो सरकार और नेतृत्व से दूर होते चले गए। उनके और तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय रुपाणी (Vijay Rupani) के बीच के संबंध इतने खराब हो गए कि उनकी नाराजगी सोशल मीडिया के जरिए जाहिर होने लगी।

औद्योगिक विकास के विजन को दिया मूर्तरूप

साल 1975 से लेकर 1990 तक एक ब्यूरोक्रेट के तौर पर काम करने वाले जयनारायण व्यास की पहचान एक नीति निर्माता और प्रशासक की ज्यादा है। उन्होंने गुजरात के औद्योगिक विकास में अपना योगदान दिया। वे भारत के सबसे बड़े बहुउद्देशीय सिंचाई प्रोजेक्ट सरदार सरोवर के चेयरमैन भी रहे। बाद में कुछ समय के लिए मंत्री भी रहे। उनके काम को इंटरनेशनल कमीशन ऑन लार्ज डैम्स ने भी नोटिस किया। व्यास को जानने वाले लोग उन्हें गुजरात के गांवों तक नर्मदा के पानी को ले जाने वाले रणनीतिकार के तौर पर देखते हैं, वे कहते हैं कि उन्होंने तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के विजन को बखूबी जमीन पर उतारा।

मोरबी मामले में भी सरकार के खिलाफ की थी टिप्पणी

Gujrat Chunav 2022 : गुजरात के मोरबी में हुए हादसे को लेकर सवाल पूछे जाने पर भाजपा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके जयनारायण व्यास ने कहा था कि ओरेवा कंपनी को टेंडर क्यों दिया गया। 1963 में भी इसी तरह का हादसा हुआ था। उसमें भी लगभग इतने ही लोग मारे गए थे। उन्होंने कहा कि पुराने पुल का जब इस्तेमाल होता है तो उनके रखरखाव पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। पुरानी चीजें जहां से टूटती हैं, वहां तो उसका मरम्मत कर दिया जाता है लेकिन जहां नहीं टूटा है, वहां भी ध्यान देने की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि अगर इसे पर्यटकों के लिए चालू करने के पहले टेस्ट कर लिया गया होता तो हादसा नहीं होता।

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