क्या भाजपा जॉइन करेंगे हरियाणा के कांग्रेस नेता व पूर्व सांसद नवीन जिंदल?
जनज्वार डेस्क। हरियाणा के कुरुक्षेत्र से दो बार के सांसद रह चुके नवीन जिंदल क्या भाजपा ज्वाइन करेंगे। जिस तरह से इन दिनों भाजपा एक बार फिर से खुद को मजबूत करने की कोशिश में जुटी है। इससे यह संभावना बनती नजर भी आ रही है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि लंबे अर्से से नवीन जिंदल सियासी नेपथ्य में हैं। वह न तो कांग्रेस में ज्यादा सक्रिय है, न ही उनकी जनता के बीच ज्यादा उपस्थिति नजर आ रही है।
नवीन जिंदल दो बार कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से सांसद रह चुके हैं। यहां से उन्होंने 2004 और 2009 को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। दोनों बार नवीन जिंदल जीते। 2014 का चुनाव वह हार गए थे। वह 2019 का लोकसभा चुनाव कुरुक्षेत्र से लड़ना चाह रहे थे। उन्होंने अपना प्रचार भी शुरू कर दिया था। राहुल गांधी कुरुक्षेत्र में सभा को संबोधित करने आए थे, उनके साथ नवीन जिंदल ने मंच साझा किया था।
लेकिन ऐन मौके पर वह सियासी गतिविधियों से गायब से हो गए। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही है कि परिवार के लोग चाहते थे कि वह भाजपा से चुनाव लड़े। कांग्रेस भी उन पर दांव लगा रही थी। दोराहे पर खड़े नवीन जिंदल ने तब चुनाव नहीं लड़ा। तब से लेकर अब तक वह चुनावी गतिविधियां से दूर है।
बताया जाता है कि भाजपा नवीन जिंदल में खासी संभावनाएं देख रही है। क्योंकि उनकी छवि अच्छी है। हर व्यक्ति राष्ट्रीय ध्वज फहरा सकता है, नवीन जिंदल ने यह अधिकार दिलवाया था। भाजपा चाहती है कि इस तरह का नेता उनकी पार्टी में हो। इसके साथ ही नवीन जिंदल की उद्योगपतियों में अच्छी खासी पकड़ है।
बड़ा सवाल यह है कि क्या यह संभव है, मौजूदा हालात में जो हरियाणा के हैं, इसमें नवीन जिंदल के भाजपा में जाने के मायने क्या है? इस पर जवाब देते हुए हरियाणा की राजनीति की समझ रखने वाले जाने माने समीक्षक डॉक्टर रामजी लाल कहते हैं कि इसके ज्यादा मायने नहीं है। किसान आंदोलन की वजह से भाजपा इस वक्त प्रदेश के मतदाता पर अपनी पकड़ खो चुकी है।
यदि नवीन जिंदल आते हैं तो भाजपा उन्हें कुरुक्षेत्र से चुनाव लड़वा सकती है, लेकिन गुरनाम सिंह चढूनी भी कुरुक्षेत्र जिले से हैं, इस वजह से यहां के किसानों का बड़ा वर्ग भाजपा के खिलाफ है। नवीन जिंदल लंबे समय से राजनीति से दूर है। इस वजह से एक दम से सक्रिय होकर खिसक रहे भाजपा के वोट बैंक को रोक पाएंगे इसकी ज्यादा गुंजाइश नजर नहीं आ रही है।
डॉक्टर रामजी लाल कहते हैं कि यह सही है कि इस वक्त हरियाणा में कांग्रेस की भी पकड़ ज्यादा नहीं है। पार्टी गुटबाजी में बंटी हुई है। हुड्डा खेमा और शैलजा खेमे के साथ साथ कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी एक गुट है। गुटबाजी में नवीन जिंदल अपने आप को कहीं भी फिट नहीं पा रहे हैं। पर एक बात भी भूलनी नहीं चाहिए कि नवीन जिंदल की राहुल गांधी और सोनिया गांधी के साथ सीधी बातचीत है। इसलिए प्रदेश की गुटबाजी का उन पर ज्यादा असर नहीं होगा।
वरिष्ठ पत्रकार राजेश शर्मा कहते हैं कि नवीन के भाजपा में जाने की संभावना बन सकती है। क्योंकि नवीन जिंदल अपना पहला चुनाव भाजपा के टिकट पर कुरुक्षेत्र से लड़ना चाह रहे थे। उनके पिता ओम प्रकाश जिंदल ने तब उन्हें कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने के लिए मनाया। हो सकता है,उनका भाजपा के प्रति पुराना प्रेम जाग गया हो। फिर भी इससे कांग्रेस को ज्यादा असर पड़ने वाला नहीं है।
एक तो यह है कि नवीन जिंदल फुल टाइम पॉलिटिशियन नहीं है। वह पार्ट टाइम राजनीति करते हैं।कुरूक्षेत्र में उनके आवास पर उनके कार्यकर्ता ही राजनीति करते हैं। कार्यकर्ता ही मतदाता के संपर्क में रहते थे। यह सिलसिला भी काफी समय से बंद है। पहले नवीन जिंदल की कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर उनकी टीम काम करती थी। लंबे समय से यह टीम भी निष्क्रिय हो गई है।
इस तरह से देखा जाए तो वह कांग्रेस में भी वह पार्टी के लिए बहुत ज्यादा कारगर साबित नहीं हो रहे है। कुरुक्षेत्र सीट पर यदि भाजपा कोई प्रयोग करना चाहती है, जैसा कि दो बार से हो भी रहा है। पहले यहां से राजकुमार सैनी को चुनाव लड़ाया, वह जीत गए। फिर वह भाजपा के बागी हो गए। दूसरी बार नारायणगढ़ के विधायक और पूर्व राज्य मंत्री नायब सिंह सैनी को यहां से भाजपा ने लड़वाया। वह इस बार यहां से सांसद है।
इस जीत के पीछे हमें याद रखना होगा कि यह जीत न राजकुमार सैनी की थी, न नायब सिंह सैनी की। यह जीत मोदी की वजह से संभव हुई। नायब सिंह सैनी जीत के बाद कुरुक्षेत्र में पार्टी की पैठ बनाने में चूक गए। स्थिति यह है कि यहां के स्थानीय
किसानों में उनका विरोध हो रहा है। ऐसे में भाजपा इस बार यहां नवीन जिंदल पर दांव खेल सकती है। यह दांव कारगर साबित होगा, यह देखने वाली बात है। डॉक्टर रामजी लाल का कहना है कि भाजपा यदि ऐसा करती है तो उन्हें चर्चा तो खूब मिल सकती है। इसके बाद भी नवीन जिंदल भाजपा के लिए बहुत कुछ कर पाएंगे इसमें उन्हें संश्य है। क्योंकि वह कोई जमीन से जुड़े नेता तो है नहीं। जिनका मतदाता या लोगों के साथ सीधा संपर्क हो। यह जरूर हो सकता है कि वह नवीन जिंदल के जाने से कांग्रेस को इतना नुकसान जरूर हो सकता है कि उनका एक नेता भाजपा में चला गया। इससे ज्यादा कुछ नहीं हो सकता।
बहरहाल तमाम कयास अपनी जगह है। देखने वाली बात तो यह होगी कि क्या नवीन जिंदल भाजपा में जाएंगे। यदि जाएंगे तो वह कहां से चुनाव लड़ते हैं। हिसार जो कि उनका गृह जिला है, या फिर कुरुक्षेत्र से, जहां से दो बार सांसद रह चुके हैं। या किसी अन्य सीट पर वह दांव आजमाएंगे। फिलहाल तो ऐसी चर्चाएं है। इन पर नवीन जिंदल की ओर से कोई टिप्पणी भी नहीं हो रही है। फिर भी प्रदेश की राजनीति में इस तरह के कयास जरूर लगाए जा रहे हैं।