चर्चित अंकिता हत्याकांड में फैक्ट फाइंडिंग टीम का दखल, कई अनसुलझे सवालों को किया चिन्हित तो प्रशासन की भूमिका दिखी संदिग्ध
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देहरादून। देश भर को दहला देने वाले उत्तराखंड के अंकिता हत्याकांड में अब महिला एवं मानवाधिकार संगठनों की फैक्ट फाइंडिंग टीम का दखल हो गया है। टीम ने शामिल लोगों ने प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के साथ ही अंकिता के परिजनों व अन्य संबंधित लोगों से मुलाकात कर केस से जुड़े तथ्यों को जुटाकर उनकी छानबीन शुरू कर दी है। अंकिता हत्याकांड के आरोपियों को सख्त सजा दिलाए जाने के मकसद से जुटी इस टीम को अपनी शुरुआती जांच में ही कई ऐसे तथ्य हाथ लगे हैं, जो अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाने में सहायक भूमिका निभा सकते हैं। तीन दिन की जांच के बाद टीम ने अपने निष्कर्ष व अनुभव देहरादून के प्रेस क्लब में मीडिया से साझा किए।
इसलिए हुआ टीम का गठन
अंकिता भण्डारी की हत्या और प्रारम्भिक जांच में पाई गई प्रशासनिक लापरवाही तथा शासन के लोगों के लिप्त होने तथा आनन-फानन में सबूतों को नष्ट करने के प्रयासों को देखते हुए उत्तराखंड महिला मंच ने देशभर के जिम्मेदार महिला संगठनों के साथ मिलकर केस के फैक्ट फाइंडिंग के लिहाज से इस टीम का गठन किया था। 6 राज्यों की इस 20 सदस्यीय टीम ने अलग-अलग दलों में बंट कर 27 से लेकर 29 अक्टूबर तक पौड़ी, श्रीनगर, ऋषिकेश और देहरादून का दौरा किया है।
ऐसे जुटाए गए तथ्य
27 अक्टूबर को एक टीम ने श्रीकोट पौड़ी (अंकिता के माता-पिता के पास) जाकर अपने काम को शुरू किया था। इसी दिन शाम को श्रीनगर में विभिन्न स्थानीय व्यक्तियों पत्रकारों एवं जन संगठनों के साथ बैठक भी की गई थी। जबकि दूसरी टीम ने ऋषिकेश में वनन्तरा रिसोर्ट व चीला बैराज के आस-पास की जगहों का दौरा करते हुए अंकिता के हत्यारों को सख्त सजा दिलाए जाने की मांग को लेकर चल रहे धरना स्थल पर लोगों से बातचीत की। 28 और 29 अक्टूबर को इस टीम ने एसआईटी प्रभारी पी रेणुका देवी, राज्य महिला आयोग, डीजीपी उत्तराखंड, पर्यटन सचिव, मुख्य सचिव से बातचीत के दौरान केस से संबंधित अपने निष्कर्षों और मांगों को पेश किया।
पहली ही नजर में प्रशासन की लापरवाही हुई उजागर
फैक्ट फाइंडिंग के दौरान टीम में शामिल जांच दल ने पाया 19 वर्षीय अंकिता भण्डारी के गायब होने की सूचना मिलने पर उसके पिता वीरेंद्र सिंह के द्वारा लगातार पटवारी पुलिस चौकी, जिलाधिकारी राज्य महिला आयोग, विधान सभा अध्यक्ष से गुहार लगाने पर भी एफआईआर दर्ज होने में 72 घंटे लग गए, जबकि इस मामले की सूचना मिलते ही किसी भी चौकी/थाना में जीरो एफआईआर दर्ज हो जानी चाहिये थी। एफआईआर दर्ज नहीं करना और तत्काल जांच शुरू नहीं करना प्रशासन की एक बड़ी लापरवाही है।
प्रशासन की यह गैरजिम्मेदार और असंवेदनशील रवैया अंकिता की मौत का एक बड़ा कारण बना। इसके लिए जिम्मेदार पदाधिकारियों पर कार्यवाही होनी चाहिये और उन्हें दंडित किया जाना चाहिये। यह इसलिए भी हुआ क्योंकि आरोपी सत्तापक्ष से जुड़े हुए सम्पन्न लोग हैं और स्थानीय कर्मचारियों को प्रभावित कर रहे थे।
उत्तराखंड में जमीनों की लूट खसोट का प्रतीक था आरोपी का रिजॉर्ट
इस दल ने ऋषिकेश के वनंतरा रिज़ॉर्ट, चीला बैराज तथा अन्य स्थानों का दौरा करने पर पाया कि रिसॉर्ट न केवल अवैध जमीन पर बना हुआ था, बल्कि रिजॉर्ट की जमीन भी आयुर्वेदिक फैक्ट्री के नाम पर ली गई थी। यह पूरे उत्तराखंड में चल रहे ज़मीनों की खरीद फरोख्त से जुड़ा ऐसे मामला भी है, जिसका जनता लगातार विरोध कर रही है।
महिला सुरक्षा कानूनों की खुलेआम उड़ रही थी धज्जियां
मामले की पड़ताल में लगी टीम को यह भी जानकारी मिली कि वहाँ की कर्मचारियों के साथ पहले भी यौन उत्पीड़न हुआ था। रिजॉर्ट में महिला कर्मियों के कार्यरत होने के बाद भी वहाँ विशाखा गाइड लाइन या कार्यस्थल पर यौन हिंसा 2013 कानून के तहत कोई भी आंतरिक शिकायत समिति नहीं थी। जिला स्तरीय स्थानीय शिकायत समिति की कोई जानकारी नहीं था। इतना ही नहीं पर्यटन उद्योग के साथ-साथ क्षेत्र की निजी क्षेत्र की किसी भी इकाई में यह समितियाँ गठित नहीं हैं। इन समितियों का नहीं होना भी अंकिता की मौत का एक कारण है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने इन कानूनों का खुला उल्लंघन हो रहा है। टीम ने छोटे बड़े सभी निजी संस्थानों में यह समितियाँ बनाने की भी सिफारिश की है।
पुलिस की लापरवाही से साक्ष्य हुए नष्ट
तथ्यों की पड़ताल के दौरान टीम ने पुलिस और प्रशासन की लापरवाही से कई महत्वपूर्ण साक्ष्य नष्ट होने को भी रेखांकित किया है। रिसॉर्ट के सील नहीं होने से उसके एक हिस्से पर बुलडोजर चला दिया गया, जबकि यदि पुलिस ने चौकन्नापन दिखाते हुए उसे समय रहते सील कर दिया होता तो इस नौबत से बचा जा सकता था।
पीएम के दौरान महिला डॉक्टर्स का नदारद होना गंभीर चूक
टीम के सदस्यों ने अंकिता भंडारी के शव का पोस्टमार्टम करने वाली चिकित्सकों की टीम में किसी गायनोकोलॉजिस्ट के नहीं होने पर भी सवाल खड़े किए हैं। टीम का कहना है कि महिलाओं के ऐसे किसी भी मामले में गायनोकोलॉजिस्ट की उपस्थिति सुनिशचित हो ऐसी एड्वाइजरी जारी होनी चाहिये।
गवाहों की सुरक्षा अहम काम
टीम ने पाया कि अभी भी कई जरूरी साक्ष्य मौजूद हैं। साक्ष्यों को सुरक्षित रखना और गवाहों को लगातार पूर्ण सुरक्षा देना जरूरी है। टीम ने आरोपियों के प्रभावशाली होने के कारण इस बात की भी आशंका व्यक्त की है कि आरोपी, प्रशासन और सत्ता पक्ष का गठबंधन बचे हुए साक्ष्यों से छेड़छाड़ कर सकता है। गवाहों पर दबाव डालकर इस केस को न्यायालय में कमजोर कर आरोपियों को बचाने का प्रयास किया जा सकता है।
हाईकोर्ट पर भरोसा है टीम को
फैक्ट फाइंडिंग टीम ने इस मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा याचिका को एक्सेप्ट करने पर संतोष व्यक्त किया है। टीम को यह भी उम्मीद है कि उच्च न्यायालय की निगरानी में केस की पूरी प्रक्रिया चलेगी। हाई कोर्ट ने सत्ताधारी पक्ष की विधायक रेनू बिष्ट की साक्ष्य मिटाने में भूमिका का संज्ञान लेने पर संतोष व्यक्त करते हुए उम्मीद जताई है कि हाईकोर्ट के इस दखल से पुलिस विधायक रेनू बिष्ट को भी जांच के दायरे में लेते हुए उन पर सख्त कार्यवाही करेगी।
केस की चौतरफा निगरानी की जरूरत
अंकिता हत्याकांड में पुलिस की जांच पर कोर्ट की निगरानी के साथ ही कोर्ट में चल रही प्रक्रिया पर नागरिक संगठनों को नजर रखते हुए पूरी सतर्कता के साथ खड़े रहने की जरूरत महसूस करते हुए टीम का कहना है कि आरोपियों की गिरफ़्तारी के साथ यह लड़ाई खतम नहीं होती। इसलिए अंकिता के परिवार के साथ इस कठिन और जटिल संघर्ष में हम सबको मजबूती के साथ उनके साथ खड़ा रहना होगा।
राहत पुनर्वास के लिए बने ठोस नीति
टीम ने अपने भ्रमण के दौरान महसूस किया कि उत्तराखंड में जिस प्रकार नौकरियों का अभाव और धांधलियाँ हैं, ऐसे में बेहतर जीवन जीने का सपना देखने वाली अंकिता जैसी लड़कियों को इस असुरक्षित माहौल में विशेष सुरक्षा दिए जाने की जरूरत है। जिससे इस प्रकार की घटनाओं को समय रहते रोका जा सके। भविष्य में ऐसी किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना के मामलों में पीडिता और उसके परिवार के पुनर्वास और राहत के लिए किसी स्थाई नीति की मांग करते हुए टीम ने पटवारी व्यवस्था को खतम कर पुलिस व्यवस्था लागू करने की भी हिमायत की है।
यह रहे शामिल फैक्ट फाइंडिंग टीम में
अंकिता हत्याकांड की पड़ताल कर रही तथ्यान्वेशण दल (फैक्ट फाइंडिंग टीम) में उत्तराखंड महिला मंच, पीयूसीएल, जनवादी महिला समिति, जनांदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय, कर्नाटक विथ बिलकिस, महिला किसान अधिकार मंच, ऐपवा, भारतीय महिला फेडरेशन, आईसा, डीएसओ के सदस्य तथा पर्यटन विशेषज्ञ, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं।