खुलासा : POCSO के 25 % मामले रोमांस का नतीजा, यूनिसेफ की स्टडी में सात हजार केसों का किया गया था अध्ययन
25% of POCSO cases are romantic relations : बच्चों को यौन उत्पीड़न से सुरक्षित करने के लिए अस्तित्व में आए पॉक्सो एक्ट के सात हजार से अधिक मामलों के अध्ययन में एक चौथाई मामलों में आरोपी और पीड़ित के बीच रोमांटिक रिश्ते होने का खुलासा हुआ है। यूनिसेफ इंडिया की इस स्टडी में यह चौंकाने वाला दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल, असम और महाराष्ट्र में पॉक्सो एक्ट का हर चार में से एक मामला रोमांटिक केस या प्रेम संबंध से संबंधित पाया गया है।
इसके साथ ही इस रिपोर्ट में एक चौंकाने वाला खुलासा यह भी किया गया है कि इन रोमांटिक केस से संबंधित मामलों में से आधों में पीड़िता की उम्र 16 से 18 साल के बीच होती है। एनफोल्ड प्रो एक्टिव हेल्थ ट्रस्ट एंड यूनिसेफ इंडिया ने प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसेज एक्ट यानी पॉक्सो एक्ट के मामलों को लेकर लेकर चौंकाने वाली यह रिपोर्ट पेश की है, जिसमें दावा किया गया है कि पश्चिम बंगाल, असम और महाराष्ट्र में पॉक्सो एक्ट का हर चार में से एक मामला रोमांटिक केस या प्रेम संबंध से संबंधित होता है। जिसमें पीड़ित का आरोपी के साथ सहमति से संबंध होता है। जिसे बाद में किसी विवाद की वजह से दूसरा रूप दे दिया जाता है।
1715 मामलों में बने थे सहमति से संबंध
एनफोल्ड प्रो एक्टिव हेल्थ ट्रस्ट एंड यूनिसेफ इंडिया के स्वागत राहा और श्रुति रामाकृष्णन ने साल 2016 से 2020 के बीच में असम, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में दर्ज पॉक्सो एक्ट के 7064 फैसलों की जांच की। करीब 1715 मामलों में दाखिल किए गए कोर्ट के दस्तावेजों के अध्ययन से यह पता चला कि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच में सहमति से बने संबंध थे। इस अध्ययन में यह बात भी पता चली है कि 1508 मामलों में पीड़ित लड़की ने मामले की जांच के दौरान या फिर सबूत जुटाने के दौरान या दोनों में ही कबूल किया था कि आरोपी के साथ उसके प्रेम संबंध थे। इस रिपोर्ट में ऐसे कई खुलासे किए गए हैं।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने भी की चिंता जाहिर
भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पॉक्सो एक्ट के तहत 'सहमति की उम्र सीमा' पर पुनर्विचार करने की बात कही है। सीजेआई ने सहमति से बने रोमंटिक रिलेशनशिप के मामलों को पॉक्सो एक्ट के दायरे में शामिल करने पर चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा कि विधायिका को साल 2012 में अमल में आए अधिनियम के तहत तय सहमति की उम्र पर विचार करना चाहिए।
बड़े अध्ययन से बढ़ सकती है इन केसों की संख्या
वैसे इस मामले में रिसर्चर्स का कहना है कि अगर और अधिक कोर्ट केस को इस अध्ययन के दायरे में शामिल किया जाए तो ऐसे मामलों की संख्या और बढ़ सकती है। रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि कुछ ही मामलों में सजा सुनाई गई है। जबकि अधिकांश मामलों में रोमांटिक केस मानकर आरोपी को छोड़ दिया गया। इस अध्ययन में यह बात भी निकलकर आई है कि एक ओर जहां देश में 18 साल से कम उम्र के लड़के-लड़कियों को सहमति से भी संबंध बनाने पर पाबंदी है तो वहीं दूसरी ओर कोर्ट ऐसे मामलों में नरम रुख अपनाते हैं।