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'पीहू' के बाद विनोद कापड़ी फिर लेकर आये एक रियल सिनेमा, कई मायनों में शानदार है '1232 KMS'

Janjwar Desk
24 March 2021 1:50 PM IST
पीहू के बाद विनोद कापड़ी फिर लेकर आये एक रियल सिनेमा, कई मायनों में शानदार है 1232 KMS
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पीहू के बाद विनोद कापड़ी ने एक बार फिर बेहद शानदार फिल्म बनाई है। फिल्म में कहीं कहीं उनका मजदूरों से बात करना भावनात्मक करता है, एक सीन जिसमें कापड़ी साइकिल से चल रहे मजदूर से पूछते हैं 'ऐसी कौन सी बात है जो तुम्हें चला रही है?' साइकिल चलाते हुए मजदूर कहता है, 'माँ की याद'...

जनज्वार ब्यूरो। वरिष्ठ पत्रकार व फिल्मकार विनोद कापड़ी की प्रवासी मजदूरों पर बनाई गई फिल्म 1232 किलोमीटर हॉटस्टार ओरिजिनल पर लांच हो गई। इस फिल्म जो एक डाक्यूमेंट्री है, सबसे पहले मौजूदा सरकार को देखने लायक है। वो सरकार जिसके पास इन मजदूरों और उनके द्वारा किए गए पलायन के बारे में कोई रिकार्ड नहीं होने का हवाला दिया गया था। पूरी की पूरी फिल्म मायूसी, दर्द, अपनो के पास पहुँचने की ललक का कथानक समेटे है।

विनोद कापड़ी की डाक्यूमेंट्री 1232 KMS आज 24 मार्च 2021, यानी लॉकडाउन लगने के साल भर बाद रिलीज हुई है। इस फिल्म में निर्देशक विनोद कापड़ी का कुछ मजदूरों के साथ हजारों किलोमीटर का सफर तय कर कैद किये गए बेहद मार्मिक दर्श्यों को दिखाया गया है। लॉकडाउन के बाद दिल्ली, नोएडा, गाज़ियाबाद, रोहतक, नासिक इत्यादि में रहकर मजदूरी करने वाले लोगों ने दिन रात घर के अपनो के बीच पहुँचने के लिए सफर किया था। कापड़ी की फिल्म फिलहाल 7 दिहाड़ी मजदूरों जो साईकल से अपने गांव बिहार के सहरसा जाने का फैसला करते हैं।

गाज़ियाबाद से सहरसा की दूरी 1232 किलोमीटर है, जिसके चलते इस डॉक्यूमेंट्री का नाम 1232 KMS रखा गया। तकरीबन डेढ़ घण्टे की इस डॉक्यूमेंट्री में आपको वो सब दिखेगा, महसूस होगा जो शायद लॉकडाउन लगने के दौरान आप अपने अपनो के बीच सफर कर रहे इन मजदूरों का दर्द ना देख समझ सके हों। पीहू के बाद विनोद कापड़ी ने एक बार फिर बेहद शानदार फिल्म बनाई है। फिल्म में कहीं कहीं उनका मजदूरों से बात करना भावनात्मक करता है। एक सीन जिसमें कापड़ी साइकिल से चल रहे मजदूर से पूछते हैं 'ऐसी कौन सी बात है जो तुम्हें चला रही है?' साइकिल चलाते हुए मजदूर कहता है, 'माँ की याद।'


इस डाक्यूमेंट्री में कई एक ऐसे भी पहलू मौजूद हैं जो यकीनन आपकी आँखों की कोरें भीगा देने का माद्दा रखते हैं। ये सीन आपको सोंचने, समाज और सरकार के प्रति टीस से भर देते हैं। लॉकडाउन के दौरान रिपोर्टिंग करते हुए कई दफा प्रवासी मजदूरों के हालात पर खुद मेरे जज्बात बेकाबू होते जैसे लगे थे। बच्चे, औरतें, लड़के सब मारे मारे बिना रूके चले जा रहे थे। आपको इस फिल्म में वह सब मिलेगा जो बड़े फिल्मकार और नामी गिरामी अभिनेता उस संकट काल में भी नहीं महसूस पाए होंगे। जिनमें ना ऐसी फिल्म में एक्टिंग का माद्दा होगा और ना ही निर्माताओं के लिए कटेंट।

रियल लाईफ कहानी पर आधारित इस डाक्यूमेंट्री के कई संवाद फिल्म देखते समय आपको झकझोरते हैं। जैसे एक मजदूर का कापड़ी के सवाल पर कहना कि 'जो मदद करता है वो ही भगवान होता है।' इस फिल्म की ना तो कोई स्क्रिप्ट लिखी गई है और ना ही संवाद। जो है जैसा है उसे यूँ का यूँ सामने रखा गया है। विनोद कापड़ी ने बेहद संजीदगी से हर किरदार हर एक सीन को जीवंत कर दिया है। सफर के दौरान मजदूरों का एक दूसरे से लगाव भी आत्मीयता पैदा कVinरता है।

फिल्म का गीत 'ओ रे बिदेसिया' बेहद मार्मिक बन पड़ा है। विनोद कापड़ी की यह डॉक्यूमेंट्री लॉकडाउन जैसी किसी याद को संजोने के लिए धरोहर की तरह है, और सालों साल याद रखने काबिल भी। नई और आने वाली कई जेनरेशंस के लिए देखने दिखाने लायक शानदार सिनेमा। यह उनके देखने लायक भी है जो अपने अंदर मानवता, इंसानियत और संवेदनशीलता का भाव रखते हैं।

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