दो-दो क़ानून बनने के बावजूद देश में मैला ढोने की अमानवीय और घिनौनी प्रथा जारी, दलितों और आदिवासियों के लिए बजट में नहीं 'अमृत काल'?
दो-दो क़ानून बनने के बावजूद देश में मैला ढोने की अमानवीय और घिनौनी प्रथा जारी, दलितों और आदिवासियों के लिए बजट में नहीं ‘अमृत काल’?
राज वाल्मीकि की टिप्पणी
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण जी ने जिस अंदाज में बजट पेश किया उससे तो ऐसा लगा कि वाकई सब के लिए ये अमृत काल का बजट है। बजट को काफी लोक लुभावन बनाने की कोशिश की गई। इस साल होने वाले नौ राज्यों के चुनाव और अगले साल लोकसभा चुनाव के मद्दे नजर यह स्वाभाविक ही है, पर इसमें दलितों और आदिवासियों की समस्याओं और चुनौतियों की अनदेखी की गई है।
शर्मनाक है कि दो-दो क़ानून बन जाने के बावजूद देश में मैला ढोने की अमानवीय और घिनौनी प्रथा अभी भी जारी है। पहला कानून आज से तीस साल पहले बना था जिसका नाम था – मैला ढोने का रोजगार और शुष्क शौचालय का निर्माण (निषेध) अधिनियम 1993। और दूसरा क़ानून है – मैला ढोने वाले कर्मियों के रोजगार के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देशभर में 58,089 मैन्युअल स्केवेजर्स को चिन्हित किया गया है। नए क़ानून को बने हुए भी दस साल हो गए लेकिन ये सरकार की जातिवादी मानसिकता और राजनैतिक इच्छा शक्ति की कमी ही है कि ये प्रथा आज भी जारी है। सरकार की मानसिकता का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकार ने 'मैला ढोने वालो के पुर्नवास के लिए स्वरोजगार योजना(SRMS) को ही इस साल से ख़त्म कर दिया।'
सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाडा विल्सन अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहते हैं – 'सरकार मैला ढोने की प्रथा का अंत करने की दावा करती है पर तीस साल पुरानी मैला ढोने वालों के लिए बनी स्वरोजगार योजना को ही हटा देती है। यह सफाई समुदाय के लोगों के साथ धोखा है।'
उनका कहना है कि देश में सीवर-सेप्टिक टैंको में हो रही हत्याओं पर सरकारों का चुप्पी साध लेना देश हित में नहीं है। इन मौतों को तुरंत बंद करो और सफाई कर्मचारियों के पुनर्वास के लिए पैकेज की घोषणा करो। वे इस बजट को जुमला बजट बताते हैं। बात सही भी है अधिकतर घोषणाएं जुमलेबाजी ही हैं। जिनसे इन समुदायों को कोई लाभ नहीं होने वाला है। आजादी के 75 वर्ष बाद अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को प्राथमिकता दी जानी चाहिए थी, ताकि दलित और आदिवासी भी इसे अमृत काल का बजट कह सकते, पर इस बजट में ऐसी कोई उल्लेखनीय पहल नहीं की गई है।
इस बजट में नमस्ते नाम की एक नई योजना के लिए 97 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं जिसका उद्देश्य स्वच्छता कार्य में मशीनीकरण को बढ़ावा देना है। पर यह भी कितना हो पायेगा यह आने वाला समय बताएगा। अधिकतर तो यह ही देखने में आता है कि योजनाएं बन जाती हैं पर उनका उचित कार्यान्वयन नहीं होता।
वित्त-वर्ष 2023-24 कुल बजट 49,90,842.73 करोड़ रुपये का है और अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए कुल आवंटन 1,59.126,22 करोड़ रुपये और अनुसूचित जनजाति के लिए कुल आवंटन 1, 19,509.87 करोड़ रुपये है। पर हकीकत यह है कि इसमें दलितों को पहुँचने वाली लक्षित राशि 30,475 करोड़ रुपये है और आदिवासियों को पहुचने वाली लक्षित राशि 24,384 करोड़ रुपये है। ज्ञात हो कि दलित संगठन पोस्ट मेट्रिक स्कोलरशिप स्कीम के लिए 10,000 करोड़ रुपये के आवंटन की मांग कर रहे हैं। इस वर्ष भी कुल आवंटन इस मांग से कम है। पर पहले से कुछ बढोतरी की गई है।
जैसा कि दलितों और आदिवासियों के बजट आवंटन में हर बार होता है इस बार भी इन समुदायों की महत्वपूर्ण जरूरतों की अनदेखी की गई है। उन समुदायों के लिए मंजूर किए गए बजट के बड़े हिस्से को अप्रासंगिक और सामान्य योजनाओं के लिए आवंटित किया गया है।
दलित और आदिवासी महिलाओं के लिए आवंटित बजट का भी यही हाल है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली सक्षम आंगनवाडी और मिशन शक्ति योजना के लिए कुल आवंटन 20,554 करोड़ रुपये है, जिसमे से 5038 करोड़ रुपये अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए हैं और 2166 करोड़ रुपये अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आवंटित किए गए हैं। पर इन योजनाओं में लक्ष्य तय नहीं किए गए हैं। इसलिए इस योजना दलित और आदिवासी समुदायों के लिए लक्षित योजना नहीं कहा जा सकता।
इस बार के बजट का फोकस इंफ्रास्ट्रक्चर विकास पर ज्यादा है जबकि समुदाय केन्द्रित योजनाओं पर ज्यादा जोर देने की आवश्यकता थी।
दलित और आदिवासी समुदाय के लिए काम करने वाली संस्था दलित आर्थिक अधिकार अभियान- राष्ट्रीय दलित मानव अधिकार अभियान ने सरकार से इस बजट के बारे में कुछ सिफारिशें और सुझाव दिए हैं जो सही हैं और इस प्रकार हैं :
1. कुल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति बजट में से करीब 50% आवंटन वाली 46 योजनाएं सामान्य योजनाएं हैं जिनके लिए अजा और अजजा समुदायों के लिए कोई लक्ष्य तय नहीं किए गए हैं। हमारी सिफारिश है कि सभी संबंधित मंत्रालयों को नीति आयोग और वित्त मंत्रालय की ओर से स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित करने और इनके तहत पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करने के निर्देश जारी किए जाने चाहिए।
2. करीब 50,000 करोड़ रूपए अप्रासंगिक योजनाओं के लिए आवंटित किए गए हैं जिनका अजा और अजजा विकास और कल्याण से कोई संबंध नहीं है। इस बजटीय राशि को MSJE और MoTA को वापस लौटाया जाना चाहिए।
3. नीति आयोग के 2018 के दिशानिर्देशों के अनुसार, सभी अनिवार्य मंत्रालयों द्वारा दलितों और आदिवासियों के लिए उनकी आबादी के अनुपात में बजटीय राशि आवंटित की जानी चाहिए।
पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति, छात्रावास और कौशल विकास कार्यक्रम जैसी सीधे तौर पर लाभ पहुँचाने वाली योजनाओं के बजटीय आवंटन को बढ़ाया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इनके तहत हर हाल में वित्तीय सहायता लाभार्थियों तक सही समय पर पहुंचे। राष्ट्रीय ओवरसीज योजना को लागू किया जाना चाहिए।
4. दलित महिलाओं के लिए कम से कम 50% आवंटन और दलित महिलाओं के लिए विशेष संघटक योजना का गठन किया जाए, जिसके तहत प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए मजबूत निगरानी प्रक्रिया शामिल की जानी चाहिए।
5. मैला ढोने का काम करने वाली महिलाओं के पुनर्वास के लिए योजनाओं को फिर से शुरू किया जाना चाहिए और इस प्रथा को खत्म करने के लिए पर्याप्त आवंटन किया जाना चाहिए।
6. स्वच्छता के मशीनीकरण के लिए इस वर्ष नमस्ते नामक एक नई योजना शुरू की है, इसलिए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह योजना महिलाओं को भी उपलब्ध कराई जाए।
7. विकलांग व्यक्तियों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सभी स्कूलों और छात्रावासों को विकलांगों के अनुकूल बनाया जाना चाहिए।
8. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए क़ानूनात्मक ढांचे के अभाव के कारण ही ज़्यादातर योजनाओं को प्रभावी रूप से लागू नहीं किया जा रहा है। इसलिए एक SCP/TSP कानून पारित करने की तुरंत आवश्यकता है।
9. सीधे तौर पर नकद सहायता उपलब्ध कराने वाली सभी योजनाओं के तहत सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह सहायता जल्द से जल्द और बिना किसी भ्रष्टाचार के लाभार्थियों तक पहुंचे।
10. दलित महिलाओं, पुरुषों, बच्चों, विकलांग व्यक्तियों और क्वेर और ट्रांस व्यक्तियों के खिलाफ अपराधों की रोकथाम के लिए PoA कानून के कार्यान्वयन के लिए आवंटन को बढ़ाया जाना चाहिए। जाति-आधारित भेदभाव और हिंसा के पीड़ितों को सुरक्षा और संबल प्रदान करने के लिए स्पष्ट प्रक्रिया स्थापित करने की आवश्यकता है। वर्तमान आवंटन बिलकुल अपर्याप्त है। आपराधिक मामलों के त्वरित निपटान के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना की जानी चाहिए, और जाति और जातीयता-आधारित अत्याचारों के पीड़ितों को दिए जाने वाले मुआवजे को बढ़ाया जाना चाहिए।
अनुसूचित जाति और जनजाति समुदायों द्वारा अनुभव किए जा रहे विशेष जलवायु जोखिमों और जलवायु परिवर्तन के उन पर होने वाले असमान प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, सरकार से उन्हें इन नकारात्मक परिवर्तनों से जूझने में मदद करने के लिए विशेष कदम उठाने की सिफारिश की गई है जैसे कि राष्ट्रीय जलवायु बजट की शुरुआत की जाए जिसके तहत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और उनके अनुकूल बदलाव लाने के लिए केंद्रीय क्षेत्र की ओर से केंद्रीय प्रायोजित योजनों के ज़रिए सक्रिय रूप से कदम उठाए जाएं।
यहां देखना यह होगा कि क्या सरकार इन सिफारिशों और सुझावों को अमल में लायेगी या फिर खानापूर्ति भर करेगी।