लॉकडाउन में बेरोजगार हुए दो युवा, एक ने 'चाय मंत्रालय' बनाकर कमाया नाम तो दूसरा बन गया चरस तस्कर
सलीम मलिक की रिपोर्ट
हल्द्वानी। कोरोना महामारी के चलते देश भर में लगे लॉकडाउन ने न सिर्फ लोगों की जिंदगी को अस्त-व्यस्त कर बर्बाद किया बल्कि ऐसे मोड़ पर भी ले जाकर खड़ा कर दिया जहां दूर-दूर तक अंधकार की सिवाए कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। ऐसे ही घनघोर निराशा के माहौल में जिले में परस्पर विरोधी दो विचार जन्म लेते हैं। एक विचार का सफर जेल की काल कोठरी में पहुंचकर थम जाता है तो दूसरे विचार का सफर हल्द्वानी से बाहर निकलकर देश-दुनिया के फलक पर अपनी छाप छोड़ने को आतुर है।
देशव्यापी लॉकडाउन के बाद एक झटके से बेरोजगारी के कुएं में गिरे देशभर के तमाम नौजवान अपनी आगे की ज़िन्दगी का स्टार्टअप तलाश रहे थे तो इन बेरोजगारों की भीड़ में उत्तराखण्ड के दो युवा भी अपने भविष्य के ताने-बाने को बुनने में मशगूल थे। इन युवाओं में रुद्रपुर सिडकुल की एक कम्पनी से अपनी नौकरी गंवा चुके भीमताल के भौरसा गांव के किशोर पलड़िया तो दूसरे दिल्ली के होटल से बेरोजगार हुए सारांश सती थे। दोनों का ही उद्देश्य पैसा कमाकर अपना भविष्य सुरक्षित करना था। लेकिन दोनों ने आगे बढ़ने की जिस राह पर अपने कदम बढ़ाये वह राह एक-दूसरे के विपरीत जाती थीं।
किशोर ने जल्दी पैसा कमाने की ललक में जुर्म की दुनिया में कदम रखने का फैसला कर चरस के काले कारोबार से तो सारांश ने घर-घर में पहले से मौजूद चाय को नए इनोवेटिव आइडिये के साथ मध्यम वर्ग के सामने परोसकर अपने-अपने ख्वाबों को पर देने शुरू किए। किशोर ने अपने गांव के आस-पास ग्रामीणों से फुटकर चरस सस्ते में खरीदकर आगे चरस की बड़ी खेप महंगे दामों में बेचने के इरादे से आठ किलो चरस इकट्ठा की।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पचास लाख कीमत की इस चरस के साथ पुलिस ने किशोर को अगस्त के तीसरे हफ्ते में उसे समय पकड़ लिया जब वह अपनी कार से चरस की डिलीवरी देने जा रहा था। किशोर एनडीपीएस एक्ट के इस मुकदमें में फिलहाल जेल की कोठरी में कैद है। छः महीने में जमानत और दस साल की सजा वाले इस मुकदमे में फंसकर किशोर बेरोजगारी की दलदल से भी ज्यादा की गर्त में वहां पहुंच गया जहां समाज को देने के लिए उसके पास कुछ भी सकारात्मक नहीं है।
वहीं सारांश ने अपने आइडिये में अपनी ही जैसी स्थिति में पहुंचे अंकित के साथ मिलकर इसी साल फरवरी में हल्द्वानी में 'मिनिस्ट्री ऑफ चाय' के ग्लोरोफाई नाम से चाय की दुकान खोल दी। मध्यम वर्ग के साथ ही युवाओं को लुभाने के लिए सारांश ने चाय को चॉकलेट चाय, अदरक चाय, रोज चाय, इलायची चाय, पान चाय, मसाला चाय, केसर चाय, तुलसी चाय, लेमन टी जैसे कई फ्लेवर में पेश करते हुए इसे अच्छा-खासा ब्राण्ड बना दिया। ब्राण्ड चर्चा में रहे इसके लिए अलग-अलग फ्लेवर की चाय को मंत्रालय के विभाग का नाम दिया गया। नतीजे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जुड़ी चाय की तमाम किदवंतियों और भाजपा के 'चाय पर चर्चा' नाम से चलाये गए राजनैतिक अभियान से प्रेरित सारांश की इस दुकान पर चाय के शौकीन दूर-दूर से चाय पीने पहुंच रहे हैं।
सारांश के ही शब्दों में "चाय मंत्रालय नाम सुनकर दूर-दूर से लोग चाय पीने के लिए पहुंचते हैं। दुकान में चाय की चुस्की के साथ राजनीतिक गलियारों की चर्चाएं आम बात है। सभी प्रकार के लोग चाय मंत्रालय में पहुंच रहे हैं। लोग चाय की चुस्की लेकर अपनी दिनचर्या की शुरुआत के साथ-साथ शाम की थकान भी मिटाते हैं।" 10 रुपये से लेकर 50 रुपये तक कीमत की करीब ढाई सौ से तीन सौ चाय बेचकर दस हज़ार तक की कुल सेल पर पहुंच चुके 'मिनिस्ट्री ऑफ चाय' के इस ब्रांड को सारांश यहीं तक सीमित नहीं रखना चाहते। ग्लोबल वर्ल्ड के ज़माने में वह वह अपने इस ब्रांड को राज्य के दूसरे हिस्सों से लेकर देश-विदेश तक पहुंचाए जाने का संकल्प लिए हुए हैं।
कुल मिलाकर एक जैसी परिस्थितियों से निकलकर ज़िन्दगी में आगे बढ़कर जद्दोजहद करने की दो युवाओं इस यह दास्तान का एक पहलू किशोर है, जहां शायद ही कोई जाना चाहे। दूसरा पहलू सारांश है, जो अपने इनोवेटिव आइडिये की महक से अपने जैसे तमाम युवाओं के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं। ज़िन्दगी में विकट परिस्थितियां आने के बाद जब लगे कि कोई रास्ता नहीं बचा, तो विश्वास जानिए तब भी एक ऐसा रास्ता होता है जो हमारे जीवन को नया मोड़ दे सकता है। बस धैर्यपूर्वक उस रास्ते पर मेहनत से चलना पहली ज़रूरत होती है। सारांश और अंकित के 'मिनिस्ट्री ऑफ चाय' (चाय मंत्रालय) की सफलता इसी का नया उदाहरण भर है।