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समाज

जब एक संस्कारी परिवार के बेटे के बैग में कंडोम मिला तो क्या रही मां की प्रतिकिया

Janjwar Desk
24 Nov 2020 1:13 PM GMT
जब एक संस्कारी परिवार के बेटे के बैग में कंडोम मिला तो क्या रही मां की प्रतिकिया
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मां ने कहा, मुझे देख कर हंसी आ गयी कि मेरा बेटा अब बड़ा हो गया है और ये संतोष भी हुआ कि वो "सेफ़ सेक्स" जानता है...

सिद्धार्थ ताबिश की टिप्पणी

मेरी एक फ्रेंच मित्र हैं जो कनाडा में रहती हैं.. बीस साल पुरानी दोस्ती है मेरी.. उनका एक बेटा है सोलह साल का.. काफी पहले मेरी जब उनसे बात हो रही थी तो मुझ से कहने लगीं कि 'जानते हो ताबिश आज क्या हुआ, आज मैं जॉर्डन (उनका बेटा) का रूम सेट कर थी तो मुझे ड्रॉर में कंडोम के पैकेट्स मिले.. मुझे देख कर हंसी आ गयी कि मेरा बेटा अब बड़ा हो गया है और ये संतोष भी हुवा कि वो 'सेफ़ सेक्स' जानता है'... वो मुझे ये ऐसे बता रही थीं जैसे एकदम नार्मल बात हो ये.. और ये सच भी है.. क्यूंकि ये पूर्णतयः प्राकृतिक है और उनकी स्वीकार्यता भी समझदारी भरी थी।

यहीं भारत में मेरे कॉलेज के दिनों में मेरे एक मित्र के बैग में उसकी माँ को 'कंडोम' मिल गया था.. कहने की ज़रूरत नहीं कि फिर क्या हुआ.. माँ को जैसे 'दौरा' पड़ गया.. पहले तो ख़ूब रोई, फिर वो कंडोम ले जा कर उसने अपने पति को दे दिया.. दोस्त मेरा जब कॉलेज से वापस आया तो उसके पिता ने बिना कोई बात किये उसे मारना शुरू कर दिया.. ख़ूब मारा और उसे महीनों घर से बाहर नहीं निकलने दिया.. इस बात का मेरे दोस्त पर बहुत बुरा असर पड़ा.. हम सब जानते थे कि उसके बैग में वो "कंडोम" एक दोस्त ने शरारत में रख दिया था.. मगर उसके बाप और माँ ने उसकी एक सफाई न सुनी।

इस घटना से मैं बहुत सदमे में था.. मेरा दोस्त तो जाने कितने महीनों सदमे में था और उसकी माँ ने महीनों मेरे दोस्त से ऐसे बात की जैसे कि उसने कोई अपराध कर दिया हो.. उसके मां और बाप हम लोगों से भी बात करने में कतराने लगे और उन्हें ये लगने लगा था कि हम सब मिलकर उनके लड़के को "बिगाड़" रहे हैं.. उसके पिता ने तो महीनों हम सब का उसके घर मे आना जाना प्रतिबंधित कर दिया था।

सोचिये ज़रा.. एक ही दुनिया.. एक ही इंसानी नस्ल.. एक मेरी फ्रेंच मित्र और दूसरे मेरे दोस्त के माँ बाप.. और जीवन के नज़रिए का फ़र्क देखिये.. फ्रांस की वो महिला न तो आध्यात्म जानती है और न ही काम, क्रोध, लोभ, मोह की फिलोसॉफी.. और यहां मेरे दोस्त की माँ है जो सैकड़ों बार हर तरह के आध्यात्म, काम, मोह के प्रवचन सुनी हुई हैं.. खजुराहो भी जा चुकी हैं.. नग्नता और काम में कैसा आध्यात्म है वो भी दशकों से सुनती आ रही हैं.. लिंग और योनि का दर्शन उनका घरेलू दर्शन है और जिसे वो सदियों से मान रही हैं.. मगर कहीं से कहीं तक न तो ये दर्शन उनको समझ आया है और न ही वो इसे स्वीकार कर पाई हैं।

इसके उलट मेरी फ्रेंच मित्र के लिए जो प्राकृतिक है वो स्वीकार्य हैं.. इसके लिए उसे किसी भारी भरकम दर्शन और धर्म की किताब समझने की ज़रूरत नहीं पड़ी.. वो जानती है कि किस उम्र में लड़कों और लड़कियों के 'हार्मोन' उबाल मारते हैं और वो सब बिल्कुल प्राकृतिक है.. ये उन्होंने विज्ञान और आम इंसानी समझ से सीखा है.. यहां ये प्रकृति के उलट ये उम्मीद लगाए बैठी रहती हैं कि उनका लड़का "लंगोट" बांध के घर बैठे.. और अगर ये जान लें कि लड़के ने किसी के साथ सेक्स कर लिया तो 'शॉक' हो जाती हैं।

लोग जब मुझ से कहते हैं कि उन्होंने फलानी धर्म की किताब पढ़ के इंसान होना सीखा है या फ़लाने अवतार या पैग़म्बर से ये जीवन जीने का ये गुण सीखा है तो मैं समझ जाता हूँ कि ये इंसान एकदम झूठ बोल रहा है.. ऐसे लोग कुछ भी किसी से भी नहीं सीखते हैं.. बस झूठ बोलते हैं.. इनका धार्मिक दर्शन क्या है, इनकी सांस्कृतिक परंपराएं क्या हैं, उस से कोई फ़र्क नहीं पड़ता है.. ये बस एक "बेहोश" चरसी की तरह वो कर्मकांड और परंपराएं मानते हैं।

जिस देश मे नदियां पूज्य होती है वहां की नदियां दुनिया की सबसे गंदी नदियां होती हैं.. जिस देश में पेड़ पौधे पूज्य होते हैं वहां के शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर होते हैं.. जिस देश में काम सूत्र लिखी गयी, खजुराहों के मंदिर बने, लिंग और योनि को पूज्य माना गया वहां पार्क या सार्वजनिक स्थानों पर चुम्बन लेना भी अपराध माना जाता है.. यहां जवान लड़के के बैग में कंडोम मिलने पर मां बाप शॉक हो जाते हैं।

सब कुछ उलट पलट है.. जो भी प्राकृतिक है वो हमें स्वीकार्य नहीं है.. रिश्ते और संबंध क्या प्राकृतिक हैं और क्या मान्य, ये हमारी समझ में नहीं है.. शव को जला कर और मुखाग्नि दे कर हम आसक्ति के बंधनों से मुक्त होना सीखते हैं मगर उसके उलट रिश्तों और नातों में सबसे ज़्यादा आसक्ति और चिपकाव हम लोगों में होता है.. मां बेटे से चिपकी रहती है, बेटा मां से, बाप बेटी से, बेटी अपने बेटों से.. सब भयंकर आसक्ति और मोह में बंधे रहते हैं.. मगर कथाओं और कहानियों और धार्मिक दर्शन में आसक्ति और मोह से मुक्ति का रास्ता ढूंढा करते हैं।

वहीं इसके उलट, अंग्रेज़ और फ्रेंच बिना किसी ऐसे धार्मिक दर्शनों के, इन सब बेवकूफ़ी भरे बंधनों से मुक्त होते हैं.. प्राकृतिक क्या है, समझते हैं और प्रकृति की बिना पूजा किये जितनी देखभाल वो करते हैं हम कभी सोच भी नहीं सकते.. वो काम हमसे बेहतर समझते हैं और हम पोथी पोथी कामसूत्र लिख के चुम्बन और कंडोम की निगरानी करते हैं।

(यह टिप्पणी सिद्धार्थ ताबिश फेसबुक वाल से साभार प्रकाशित)

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