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National Security : राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर केवल अपनी सुरक्षा देख रही है सरकार
(फेसबुक ने बताया- भारत में भड़काऊ पोस्ट के मामले सबसे ज्यादा )
वरिष्ठ पत्रकार महेंद्र पाण्डेय का विश्लेषण
National Security। लोकतंत्र (Democracy) का एक मौलिक सिद्धांत होता है – सरकार और देश बिलकुल अलग विषय होते हैं, सरकार की नीतियों का विरोध देश का विरोध नहीं होता। जब सरकारें अपने आपको देश समझने लगती हैं तब उसे तानाशाही और निरंकुश शासन (Anarchy or Dictatorship) कहा जाता है। हमारे देश में वर्ष 2014 के बाद निर्विवाद रूप से लोकतंत्र को कुचल कर कर निरंकुश शासन चल रहा है। सरकार के लिए देश धार्मिक कट्टरवाद, पार्टी फण्ड में अथाह चंदा देने वाले पूंजीपतियों, उच्च वर्गीय हिन्दू और हिन्दू संगठनों में सिमट गया है, और जब इन वर्गों के हितों पर जरा सा भी संकट आता है तब सरकार बड़े गर्व से राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security) का प्रश्न खड़ा करती है, अब तो सरकार से सवाल पूछना भी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन गया है।
सबसे बड़ी बात तो यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और मनगढ़ंत राष्ट्रीय संस्कृति (Indian culture and tradition) का हवाला देकर सेना और पुलिस ही नहीं बल्कि तमाम कट्टरवादी हिन्दू संगठन और इनके साथ जुडी उन्मादी भीड़ किसी को कहीं भी घेरकर बाकायदा पुलिस और राजनैतिक संरक्षण में मार सकती है, कहीं भी ह्त्या कर सकती है, किसी को भी अपनी सरकारी गाडी से रौंद सकती है, और हरेक ऐसी घटना के बाद प्रधानमंत्री का सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास वाला नारा थोडा और बड़ा हो जाता है। दुनिया में बहुत कम ऐसे देश हैं जहां स्वयं सरकार ही देश, उसकी संस्कृति और सामाजिक समरसता (Social Harmony) के लिए खतरा बन जाती है – और दुखद यह है कि हमारा देश उन चन्द देशों में से एक है।
यहां सरकारें स्वयं बता रही हैं कि निम्न वर्ग के हिन्दू का कोई अस्तित्व नहीं है, मुस्लिम देश लूट रहे हैं और आतंक का पर्यायवाची हैं, वे बस पाकिस्तान में बसने लायक हैं और उनकी भाषा यानी उर्दू, जिसे तहजीब और अदब की भाषा कहा जाता है, जिसकी उत्पत्ति हमारे देश में हुई और संविधान से मान्य भाषा है, दिल्ली समेत अनेक राज्यों की राजकीय भाषा (official language) है – यह भाषा भी देश में स्वीकार्य नहीं है। दूसरे तरफ सरकार यह भी बता रही है कि भले ही तमाम आश्रमों में ऐयाशी का कारोबार किया जा रहा हो और बाबाओं और स्वामियों में से अधिकतर शातिर अपराधी हों, पर देश का तथाकथित न्यू इंडिया का भला इन्ही से होगा। कुछ समय पहले तक सरकार बड़े जोर-शोर से असहिष्णुता (Intolerance) का तमगा बुद्धिजीवियों को दे रही थी, पर तथ्य तो यह है कि असहिष्णु तो पूरी सरकार, मेनस्ट्रीम मीडिया और सरकार के समर्थक हैं – बाकी जनता तो देश के इतिहास के किसी भी दौर की तुलना में सबसे अधिक सहिष्णु है।
उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ सरकार (Aditynath Government of Uttar Pradesh) , जो हमारे माननीय प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष की नज़रों में सबसे बेहतर सरकार है – का पूरा विकास विभिन्न जगहों के उर्दू नाम बदलकर हिंदी करने तक ही सीमित है| यह सिलसिला अभी तक चल रहा है, हाल में ही फैजाबाद (Faizabad) का नाम अचानक से बदल कर अयोध्याकैंट (Ayodhya Cantt) कर दिया गया, इससे पहले भी कभी इलाहाबाद तो कभी मुग़लसराय का नाम बदला जाता रहा।
फैशन ब्रांड फैबइंडिया (FabIndia) ने हाल में ही लाल साड़ी पहने मॉडलों के तस्वीर के साथ एक विज्ञापन प्रकाशित किया जिसका शीर्षक था – जश्ने रिवाज (Jashn-e-Rivaaz)। अब भला, कट्टरपंथी और धार्मिक उन्माद से सराबोर समाज और कट्टरपंथी राजनेताओं को साड़ी के साथ उर्दू का मेल कुछ हजम नहीं हुआ, इन्हें उर्दू का मतलब पाकिस्तान नजर आता है। अब, इसपर ऑनलाइन विरोध का दौर शुरू किया गया और इस महान विकास के कार्य में बीजेपी के अनेक संसद सदस्य शामिल हुए। बीजेपी के सांसद तेजस्वी सूर्या ने फैबइंडिया के आर्थिक बहिष्कार (economic boycott) का आह्वान कर दिया और कहा कि हिन्दुओं के त्यौहार दिवाली से सम्बंधित कलेक्शन पर उर्दू हिन्दू धर्म का अपमान है| फैबइंडिया ने इस विज्ञापन को वापस ले लिया, पर साथ ही यह भी बता दिया कि यह उनके दिवाली कलेक्शन का विज्ञापन नहीं था।
आप अगर यह समझते हैं कि बीजेपी के जन प्रतिनिधि जनता के भले के बारे में सोचते हैं तो यह पूरी तरह से सही नहीं है। कुछ जन-प्रतिनिधि का ध्यान कहाँ रहता है, यह समय-समय पर जाहिर होता है। पिछले वर्ष जब पॉप गायिका रिहाना ने किसान आन्दोलन के समर्थन में ट्वीट किया था, तब बहुत सारे जन-प्रतिनिधि और विश्वविख्यात आईटी सेल रिहाना के न्यूड और टॉपलेस तस्वीरों (Nude and topless pictures of Pop Singer Rihana) पर नजरें गडाए था, और ऐसी तस्वीरों में खोज रहा था कि रिहाना ने पेंडेंट पर कौन सी तस्वीर लगाई है।
इसी तर्ज पर अब फैबइंडिया के विज्ञापन में तमाम अनुसंधान के बाद बीजेपी जनप्रतिनिधियों ने और आईटी सेल ने पता लगाया कि मॉडल्स ने लाल साड़ी तो पहनी है, पर बिंदी नहीं लगाई है। यह देश के विकास का मुद्दा बन गया और राष्ट्रीय सुरक्षा का भी – फिर सोशल मीडिया पर #NoBindiNoBusiness को ट्रेंड कराया गया। हमारे देश में सरकार ऐसा ही विकास चाहती है, यदि बिंदी होती तो कंगन या चूड़ी खोजी जाती, यदि वह भी होती तो माथे पर सिंदूर खोजा जाता, यदि वह भी होता तो मंगलसूत्र खोजा जाता, यदि वह भी होता तो कान की बालियाँ/झुमके खोजे जाते| कुछ भी हो, इन महान देशभक्त नेताओं ने एक विज्ञापन हटवाकर देश को सुरक्षित कर लिया।
यह सब उस देश में सभ्यता और संस्कृति बचाने के नाम पर किया गया जिस देश में सिलाई, कढाई, कशीदाकारी, लेस का काम और वस्त्रों में फैशन का काम मुस्लिम ही लेकर आये थे, और शताब्दियों तक उन्हीं का यह काम बना रहा। जब तक हाथों से काम किया जाता रहा, तब तक यह काम उन्हीं का रहा, फिर मशीनों और वस्त्रों के ब्रैंड आने पर सिलाई, कढाई का काम उपेक्षित होता चला गया| पर, आज भी रफू, काज, बकरम जैसे शब्द खालिस उर्दू में ही हैं।
भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच (Indo-Pak Cricket Match) को एक खेल नहीं बल्कि युद्ध में तब्दील कर दिया जाया, एक अजीब सा उन्माद पैदा किया जाता है और यदि किसी ने अच्छे खेलने वाले की तारीफ़ कर दी, तो फिर आप उसी समय देशद्रोही करार दिए जाते हैं। आप भारत पाकिस्तान मैच के बाद लचर प्रदर्शन करने वाली टीम की तारीफ़ जरूर कीजिये, अच्छे खेल की तारीफ़ कतई मत कीजिये। हमारे देश में देशभक्त वही है जो मोर्फेड फोटो (morphed pictures) लगाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करे कि नीरज चोपड़ा के भाले को पाकिस्तानी खिलाड़ी ने चुरा लिया था या फिर तोड़ दिया था| देशभक्त बनाना चाहते है तो फिर भारतीय टीम के मुस्लिम खिलाड़ियों पर पूरे हार की जिम्मेदारी डाल दीजिये, उन्हें पाकिस्तान का एजेंट बता दीजिये।
हिन्दू-मुस्लिम में सरकारी अंतर देखना है तो इस समय आर्यन खान और आशीष मिश्र का मामला सबके सामने है। किसानों को अपने केन्द्रीय मंत्री पिता की गाडी से कुचलने वाले आशीष मिश्रा सरकार और पुलिस की नज़रों में महान हैं और जेल के नाम पर वीवीआईपी ट्रीटमेंट से सराबोर हैं, जबकि आर्यन खान महज एक पुराने ट्वीट के कारण जेल में बंद हैं। ये दोनों मामले भले ही सामान्य से दीखते हों, पर सरकार की विचारधारा पूरी तरह उजागर करते हैं।
आर्यन खान (Aryan Khan) मामले में संभ्रांत और अपने कारोबार में अग्रणी मुस्लिमों के लिए सरकारी सन्देश है कि उसकी नजर में मुस्लिम बस मुस्लिम हैं, अल्पसंख्यक हैं, अधिकारविहीन हैं।दूसरी तरफ आशीष मिश्रा के मामले में सरकार बता रही है कि सरकार विरोधियों के प्रति अपराध एक पुरस्कार का काम है – यकीन मानिए, जनता और किसान भले ही जोर-शोर से मंत्री अजय कुमार मिश्र (Ajay Kumar Mishra) के त्यागपत्र की मांग कर रहे हों, पर उनका कद मोदी मंत्रिमंडल में पहले से बड़ा हो गया होगा और अगले मंत्रिमंडल विस्तार में आप उन्हें पहले से बड़े पद पर पायेंगें।
सरकारों का अपराधियों और हिंसक हिंदूवादी कट्टरपंथियों के समूह को संरक्षण इस कदर तक बढ़ गया है कि हाल में ही फिल्म निर्देशक प्रकाश झा और उनकी यूनिट के सदस्यों के साथ हाथापाई और मारपीट करने वाले, शूटिंग के उपकरणों को नुकसान पहुंचाने वाले समूह पर कोई कार्यवाही करने के बदले मध्यप्रदेश सरकार अब शूटिंग से पहले फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़ने का फरमान जारी कर चुकी है। यह तथाकथित न्यू इंडिया का न्याय है और यही देश की राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा भी।
विज्ञापनों की भाषा और विजूअल का हिंसक विरोध और धार्मिक नजरिया वर्ष 2014 के बाद से एक सामान्य बात है| हाल में ही एक टायर कंपनी के विज्ञापन में आमिर खान सडकों पर खतरनाक और प्रदूषणकारी पटाखों को ना फोड़ने की सलाह देते दिखे थे, इस विज्ञापन को हटाना पड़ा| डाबर के करवाचौथ के समय एक विज्ञापन में समलैंगिकता नजर आ रही थी, इसलिए हटाना पड़ा। तनिष्क के एक विज्ञापन में हिन्दू लड़की मुस्लिम से शादी का जश्न मना रही थी, इसलिए इसे हटाना पड़ा। वर्ष 2018 में क्लोज़अप के विज्ञापन "फ्री टू लव" को हटाना पड़ा क्योंकि इसमें भी हिन्दू-मुस्लिम दम्पति नजर आ रहे थे| यह सब, उस देश की घटनाएं हैं जिसमें संविधान के शुरू में ही देश को धर्मनिरपेक्ष बताया गया है और हमारे प्रधानमंत्री संविधान पर मत्था टेकते हैं।
वर्तमान सरकार और समर्थक देश की और हिन्दू की नई परिभाषा गढ़ने में पूरी तरह व्यस्त हैं, जाहिर है बेरोजगारी, महंगाई और अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। सरकार बार-बार कहती है कि जनसंख्या हरेक समस्या की जड़ में है, पर देश की हरेक समस्या सरकार से शुरू होती है, और जाहिर है कभी ख़त्म नहीं होती।