Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

Madhavrao Scindia Biography in Hindi: माधवराव सिंधिया की जनसंघ से कांग्रेस तक की सफल यात्रा, 20 साल पहले प्लेन क्रैश में हुई थी मौत

Janjwar Desk
30 Sept 2021 11:12 PM IST
Madhavrao Scindia Biography in Hindi
x

Madhavrao Scindia Biography in Hindi। आज 30 सितंबर को ग्वालियर के महाराजा और कांग्रेस दिग्गज नेता माधवराव सिंधिया की पुण्यतिथि है। 30 सितम्बर 2001 को प्लेन क्रैश में माधव राव सिंधिया की दर्दनाक मौत हो गयी थी। ये प्लेन दुर्घटना उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में हुई थी।

प्लेन क्रैश के दौरान माधवराज सिंधिया के साथ कुछ पत्रकार भी थे। प्लेन दुर्घटना का कारण भारी बारिश की वज़ह से बहुत कम दिखायी देना था। सिंधिया के साथ जिन पत्रकारों की दुर्घटना हुई थी, उनमें दिल्ली की पत्रकार अंजू शर्मा (हिंदुस्तान टाइम), संजीव सिन्हा (इंडियन एक्सप्रेस), रंजन झा (आज तक), गोपाल बिष्ट (आज तक कैमरामैन ) और उनके निजी सचिव रुपिंदर सिंह, पायलट राय गौतम, को पायलट ऋतु गौतम शामिल थे।

राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा आम थी कि अगर सिंधिया ज़िंदा होते तो यूपीए सरकार में मनमोहन सिंह की जग़ह प्रधानमंत्री की कुर्सी पर वही होते, क्योंकि पार्टी के भीतर ज्यादातर नेताओं की राय थी कि मनमोहन सिंह कम बोलते हैं और माधवराव सिंधिया उनसे कहीं ज्यादा लोकप्रिय थे।

कांग्रेस में सिंधिया की लोकप्रियता इस हद तक थी कि पार्टी वर्किंग कमेटी के जितने चुनाव उन्होंने लड़े थे, सभी चुनावों में बड़े अंतर से विजयी रहे। उनके बारे में यह बात प्रसिद्ध है कि वह कांग्रेस के इकलौते ऐसे नेता थे जो कांग्रेस की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी का नाम लेकर यानी 'सोनिया' कहकर उन्हें बुलाते थे। यह भी कहा जाता है कि सोनिया गांधी भी उन्हें माधव ही कहती थी और अक्सर उन्हें चाय या कॉफी पर अपने साथ बुलाती रहती थीं। सोनिया गांधी के साथ उनके नजदीकी संबंध इसलिए थे क्योंकि राजीव गांधी से 1968 में सोनिया गांधी के विवाह के समय से ही वह उनसे परिचित थे।

यह भी कहा जाता है कि 1999 में इटली मूल की होने के कारण कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को ऐसे शख्स की तलाश थी, जिस पर वह आंखें मूंदकर भरोसा कर सकें और समय आने पर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर भी बैठा सकें। माना जाता है जिस शख्स पर वह आंखें मूंदकर भरोसा करती थीं उनमें माधवराज सिंधिया का नाम पहली पंक्ति में शामिल था। इसके पीछे एक बड़ा कारण माधवराज सिंधिया का जन—जन के बीच लो​कप्रिय होना भी था और दूसरा कारण उनके सोनिया गांधी के परिवार से बेहद करीबी रिश्ता। कांग्रेस की सरकार में माधवराज सिंधिया रेल मंत्री, सिविल एविएशन और मानव संसाधन मंत्री रहे।

21 मई 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद भी माधवराव कांग्रेस के टॉप नेताओं में शुमार थे। कई विश्लेषकों की राय थी कि माधवराज ही कांग्रेस में एकमात्र ऐसे नेता थे, जो राजीव के विजन और विरासत को आगे ले जा सकते थे। माधवराव के साथ उस वक्त राजेश पायलट का भी नाम था। हालांकि बाद में समीकरण ऐसे बदले कि नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने। राव ने अपनी कैबिनेट में माधवराव को जगह दी थी और उन्हें सिविल एविएशन मिनिस्टर बनाया। एक साल के भीतर ही एक प्लेन की क्रैश लैंडिंग के बाद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए माधवराव ने इस्तीफा दे दिया था। 1995 में वह HRD मंत्री के रूप वापस कैबिनेट में शामिल हुए।

माधवराज सिंधिया का जन्म मराठा राज परिवार में हुआ था। ग्वालियर के अंतिम राजा जीवाजीराव सिंधिया थे। ये देश के सबसे पुराने राजघरानों में से एक है, जो आज़ादी के बाद भी राजनीतिक गलियारों के जरिये ग्वालियर के सत्ता पर काबिज़ है। इस राजघराने का अपना एक इतिहास ये भी है कि ये सत्ता में काबिज रहा है, फिर चाहे आज़ादी से पहले अंग्रेज़ों से समझौता कर अपनी सत्ता को बरक़रार रखना हो या फिर आज़ादी के बाद सत्ताधारी पार्टियों के साथ मिलकर अपना रसूख़ और सत्ता दोनों को बरकरार रखना।

आज माधवराव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपानीत मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। माधवराव सिंधिया की प्राथमिक शिक्षा स्कूल ग्वालियर में हुई थी और उच्च शिक्षा की पढाई ऑक्सफ़ोर्ड के (Winchester College and at New College) से। यूके से पढाई पूरी करके वापस आने के बाद वे अपनी माता विजया राजे सिंधिया द्वारा तैयार विरासत के ज़रिये राजनीति में आये। माधव राव सिंधिया ने 1971 में लोकसभा का चुनाव जनसंघ की टिकट पर लड़ा और सबसे कम उम्र 25 वर्ष के युवा सांसद बने।

सिंधिया की राजनीतिक विरासत

माधव राव सिंधिया ने अपनी राजनीतिक क़रियर की शुरुआत 1971 में जनसंघ की टिकट पर देश के सबसे युवा सांसद बनकर की, जिसमें भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी काफी मदद की थी। हालांकि माधवराव ज्यादा दिन तक जनसंघ में नहीं टिक पाये और अपनी माता विजया राजे से बग़ावत कर उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया था।

जून 1975 में आपातकाल लागू होने के बाद माधवराव सिंधिया लंदन चले गये। कहा जाता है कि वह तब वहां भागकर गये थे और जब वापस लौटे तो उन्होंने जनसंघ से इस्तीफ़ा दे दिया और कांग्रेस से जुड़ गए। 1980 में फ़िर गुना से उन्होंने चुनाव जीता। 1984 के चुनाव में अपनी माँ से सीधे टकराव से बचने के लिये ग्वालियर से चुनाव लड़ा और यह चुनाव इतिहास बन गया।

इस चुनाव में माधवराव सिंधिया ने कभी राजनीति में उनके काफी मददगार रहे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को हराया। यहीं से माधवराव की राजनीति का घोड़ा दिल्ली की सड़कों पर रफ़्तार से दौड़ने लगा। उसके बाद वह जब तक जीवित रहे कांग्रेस सरकार में कई अहम मंत्रालयों की ज़िम्मेदारी निभाई। जिस मंत्रालय का पद संभाला, उसे बख़ूबी से निभाया और नाम भी बहुत कमाया, लेकिन जैन हवाला डायरी में नाम आने के बाद पीवी राव उन्हें मंत्रालय में जग़ह नहीं दी।

हालांकि जैसे ही सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष बने, उन्हें फ़िर मंत्रालय में जगह मिल गयी। ये वही सीताराम केसरी थे, जिनके बारे कहा जाता है "न खाता न बही, जो चचा केसरी कहें वही सही". माधवराव सिंधिया कुल 45 साल यानी 9 बार लोकसभा सांसद रहे।

महाराजा के मंत्रालयों की लंबी फ़ेहरिस्त

राजीव गाँधी के शासनकाल (1984-1986) में माधव राव एक सफ़ल रेल मंत्री के तौर पर जाने जाते हैं। माधवराव ही शताब्दी ट्रेन भारत लेकर आये। रेल के आधुनिकीकरण और रेलवे में कंप्यूटराइज़ेंशन लाने का श्रेय इन्हें ही दिया जाता है। पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में माधवराव ने (1991-1931) उड्डयन मंत्रालय और टूरिज्म मंत्रालय का कार्यभार संभाला। जब इन्होंने उड्डयन मंत्रालय का कार्यभार संभाल तो थोड़ा मुश्किल दौर गुज़रा, उसी वक्त इन्हें इण्डियन एयरलाइन के कर्मचारियों के विरोध का सामना भी करना पड़ा। फिर कुछ समय बाद प्लेन क्रैश की ज़िम्मेदारी लेते हुए मंत्रालय से इस्तीफ़ा दे दिया।

1995 में शिक्षा मंत्री के तौर पर माधवराव सिंधिया ने कार्यभार संभाला और 1998 में सोनिया गाँधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सोनिया गाँधी उस वक्त सहज़ तरीक़े से हिंदी नहीं बोल पाती थीं, तो माधव राव ने संसदीय कार्यवाही के ज़िम्मेदारी ली। माधव राव ने संसद के बाहर और पार्टी के मामलों में ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया। माधव राव को खेल से भी लगाव था और वे 1990-1993 के बीच बीसीसी अध्यक्ष के तौर पर रहे।

माधव राव की लोकप्रियता

माधव राव की लोकप्रियता जितनी कांग्रेस पार्टी के अंदर थी, उससे कहीं कम पार्टी से बाहर भी नहीं थी। कांग्रेस में मनमोहन सिंह से ज्यादा लोकप्रिय माधवराव थे। पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने अपने एक साक्षात्कार में यहां तक कह दिया था कि अगर आज माधवराव सिंधिया जीवित होते तो मनमोहन सिंह की जग़ह प्रधानमंत्री वही होते। उनके मंत्रालय में अक्सर महँगे गिफ़्ट, परफ्यूम और गुलदस्ते रखे रहते। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश के कोने कोने से लोग उन्हें गिफ्ट भेजते थे और गिफ़्ट में लिखा रहता था मेरे महाराज।

Janjwar Desk

Janjwar Desk

    Next Story

    विविध