'हमारी सिर्फ एक मांग, मुफ्त का उपहार हमारी छाती पर न लादे सरकार'
(चोर दरवाजे से कृषि कानून वापस लाने का माहौल बना रही सरकार, SC की ओर से गठित पैनल की रिपोर्ट पर बोले योगेंद्र यादव)
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। आंदोलनकारी किसानों को सड़कों से हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसपर गुरुवार को सुनवाई हुई। कोर्ट ने कहा कि आंदोलन करना किसानों का अधिकार है। कोर्ट ने बातचीत होने तक सरकार को कृषि कानून लागू न करने का सुझाव दिया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर किसान नेता योगेंद्र यादव ने जनज्वार से खास बातचीत में कहा, 'एक मायने में मुझे राहत महसूस हो रही है। चूंकि जिस तरह की बातचीत सुप्रीम कोर्ट में हुई थी उसको लेकर मेरे मन में आशंका थी। इन तीनों कानूनों की वैधानिकता के बारे में सुप्रीम कोर्ट को जांच करनी चाहिए। ये तीनों कानून गैरकानूनी और संविधान के अनुरूप हैं। संविधान में जो केंद्र और राज्य शक्तियों का बंटवारा किया गया है उसमें ये विषय राज्य के पास आते हैं तो संसद को इसको बनाने का अधिकार नहीं है। इसे जांच करने का काम सुप्रीम कोर्ट का है। फैसला चाहे जो भी हो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत होना चाहिए।'
'कल से चर्चा दो चीजों पर चल रही है जो सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर की हैं। पहला, सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि आपकी बात नहीं बन पा रही है, हम आपकी बात करवा देते हैं। किसान इसके लिए इंटरेस्टेड नहीं हैं। चूंकि किसान कह रहे हैं कि हमें सरकार से बात करनी है, उन्हें कोर्ट से नहीं बात करनी है।'
यादव ने बातचीत में आगे कहा, 'सुप्रीम कोर्ट पिछले पांच साल में दो बार स्पष्ट रूप से कह चुका है किसान से संबंधित सरकार की नीतियों पर चर्चा कोर्ट नहीं करेगा। यह नीति का मामला है जो सरकार और किसानों के बीच में होना चाहिए। दूसरा सवाल सड़क पर रुकने का है यह सुप्रीम कोर्ट का सवाल नहीं है, यह कार्यपालिका का सवाल है। सुप्रीम कोर्ट न ही सड़क से उठाने के बारे आदेश दे रहा है, न कोई समिति बनाने का आदेश दे रहा है। कोर्ट का दखल न देना राहत का विषय है।'
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