मास्क को लेकर युवक व पुलिस के बीच झड़प पर जनता बोली-लोकतंत्र में पुलिस का ऐसा व्यवहार स्वीकार्य नहीं
(हाल ही में उत्तराखंड पुलिस का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें पुलिस घर में मास्क न पहनने पर एक युवक के साथ दुर्व्यवहार करती है।)
हिमांशु जोशी का वीडियो विश्लेषण
जनज्वार। 'जनज्वार' ने एक विशेष श्रृंखला 'पत्रकारिता में पहला प्रयोग, ख़बर का दर्शकों की राय के आधार पर विश्लेषण' पर शुरू की है। इस रविवार श्रृंखला का तीसरा भाग लेकर हम आपके सामने आ रहे हैं, यह वीडियो 'जनज्वार' के फ़ेसबुक पेज़ पर दो जून 2021 को अपलोड की गई थी। उत्तराखंड में ली गई इस वीडियो में अपने घर के बाहर बैठे एक युवा से पुलिस मास्क पहनने के लिए कहती दिखती है और उस युवा द्वारा घर में ही रहने पर मास्क पहनने से इंकार करने पर बलपूर्वक अपने साथ ले जाने का प्रयास करती दिखती है।
● इस वीडियो पर 6.9 हज़ार लोगों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी हैं।
● यह वीडियो अब तक लगभग दस लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है।
● वीडियो 11 हज़ार से ज्यादा बार साझा किया जा चुका है और वीडियो पर लगभग 1.1 हज़ार लोगों ने अपनी टिप्पणी दी हैं।
वीडियो विश्लेषण के लिए यह कोशिश की गई कि पहली पांच सौ टिप्पणियों में हर बीसवीं टिप्पणी ली जाए, अपशब्दों का प्रयोग कर लिखी गई टिप्पणी को नही लिया गया।
निरंजन सिंह लिखते हैं कि क्या पुलिस प्रशासन अपने आपको सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश समझते हैं, जो नए कानून बनाते हैं। अब तो हद ही हो गई है, लोगों के घर में घुस-घुस कर अतिक्रमण कर रहे हैं और मानव अधिकारों का हनन कर रहे हैं। सच में पुलिस की तानाशाही चरम पर है, जब चाहे फर्जी एनकाउंटर कर दें, जब चाहे झूठा केस बना कर चालान कर दें।
संजय वर्मा लिखते हैं पुलिसवाले अपनी वर्दी का जलवा दिखा रहे हैं, सस्पेंड करो इसकी दादागिरी चल रही है।
शब्बीर अली की बात ज़रा रोचक नज़र आती है और पुलिस-राजनीति को जोड़ते हुए वह लिखते हैं ये होता है बीजेपी को वोट देने का नतीज़ा। पश्चिम बंगाल में देख लेना तो समझ आ जाएगा पुलिस किसे कहते हैं क्योंकि हमने राइट च्वाइस चुनी है, ऑनली दीदी।
विनोद कुमार भी पुलिस और राजनीति को जोड़ते हुए लिखते हैं कि पुलिस आम जनता को परेशान कर रही है, नो वोट फ़ॉर बीजेपी।
नसरीन काज़मी की टिप्पणी महिलाओं में पहली टिप्पणी है वह लिखती हैं कि शेमफुल, मुझे बड़ा नाज़ था यूके पुलिस पर। मुझे लगता है, कुछ तो गलत है।
कर्मा सिंह जाट लिखते हैं कि इस मामले में पुलिस की गलती जरूर है, जरूर लड़के से कोई पुरानी रंजिश निकाल रहे हैं।
मुकेश कौशल पुलिस व्यवहार पर सवाल उठाते हुए लिखते हैं कि गलत है, यह पुलिस अधिकारी अच्छे से बात करते तो विवाद नही होता।
रीता कुल्लू लिखती हैं कि वर्दी वाले गुंडे, खुद लोगों की निजी जिंदगी में दखल कर रहे हैं और सरकारी कार्य में बाधा कह रहे हैं।
एडवोकेट महिपाल सिंह बडोटकर फिर से ऐसे फ़ेसबुक यूज़र हैं जो पुलिस के कार्य को सीधे राजनीति से जोड़ते हैं, वह लिखते हैं बैन ईवीएम की सरकार है, अभी तो कुछ नही आगे और ज़्यादा है।
लक्की पंडित पुलिस ढांचे पर ही सवाल खड़े कर देते हैं और लिखते हैं कि घर में घुस कर मार रही है पुलिस और रैलियों में पूरी चौकीदार बनी होती है।
कोरोना काल में पुलिस ने अपने अच्छे कार्यों पर बहुत वाहवाही लूटी पर पुलिस के इस कार्य से उन सब को दरकिनार करते हुए आरती पांडेय लिखती हैं कि पुलिस अपनी वर्दी का कुछ ज्यादा ही गलत इस्तेमाल कर रही है, यह कोई पहला केस नही है।
वीडियो विश्लेषण में यह बात चौंकाने वाली रही कि मात्र 1.2 प्रतिशत महिलाओं द्वारा वीडियो पर अपनी टिप्पणी दी गई थी, शायद पुलिस के कार्यों पर महिलाओं की विशेष रुचि न रही हो।
टिप्पणी करने वालों में एक भी फ़ेसबुक यूज़र पुलिस के पक्ष में लिखता नही दिखा जिससे यह बात स्पष्ट होती है कि एक स्वतन्त्र राष्ट्र में पुलिस द्वारा किया गया ऐसा व्यवहार किसी को भी स्वीकार्य नही है।
वीडियो विश्लेषण से हमें यह भी पता चलता है कि पुलिस द्वारा किए गए किसी भी कार्य को जनता सीधे सत्ता में काबिज़ सरकार के आईने के रूप में देखती है, मतलब पुलिस जो भी कार्य करती है उसका जिम्मेदार सीधे तौर पर हमेशा सरकार को ठहराया जाता है। सिर्फ़ दो-तीन पुलिसकर्मियों के बुरे व्यवहार से पूरे पुलिस बल और सरकार की छवि पर बट्टा लग जाता है।
अपने घर के बाहर बैठे व्यक्ति से मास्क पहनने के लिए कहना कितना ठीक है, यह तो नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार कानून व्यवस्था के मामले में सर्वश्रेष्ठ उत्तराखंड पुलिस के जवान ही जानें पर जिस तरह का दुर्व्यवहार पुलिस द्वारा एक युवा से किया गया वह निराशाजनक था।
भारत में इस तरह के वीडियो हमेशा सामने आते रहते हैं और पुलिस द्वारा किए गए ऐसे कार्य उसके सभी अच्छे कार्यों पर भी पर्दा डाल देते हैं। भारतीय पुलिस अब भी अंग्रेजों के बनाए नियमों के अनुसार चल रही है ,जिस वज़ह से उसके द्वारा ऐसा व्यवहार करने पर अचरज़ नही जताया जाना चाहिए।
स्वयं पुलिसकर्मियों और जनता दोनों के लिए वर्षों से सरकारी कार्यालयों की अलमारियों में धूल फांकती पुलिस सुधार की फाइलों पर कार्य किया जाना आवश्यक है।
नोट- यह श्रंखला जनज्वार के फेसबुक पेज पर आने वाले वीडियो की टिप्पणियों पर आधारित होगी। यह भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में पहला प्रयोग है जिसका प्रयोग पत्रकारिता में अब तक लगभग असंभव माने जाने वाले फीडबैक को प्राप्त करने के लिए होगा।
इसका उद्देश्य यह जानना होगा कि समाचारों में दिखाई जा रही इन खबरों के प्रति समाज के लोगों का क्या नज़रिया है, क्या ऐसी खबरों को दिखाए जाने के बाद लोग अपराध कम करते हैं , क्या अपने मन में इतनी नफ़रत पाले लोगों को पत्रकारिता के माध्यम से जागरूक कर सुधारा जा सकता है, क्या वह खबरों के आधार पर किसी चुनाव में अपनी पार्टी चुनते हैं, क्या वह किसी छुपी प्रतिभा को सामने लाने में सहयोग करते हैं, क्या पाठक किसी भ्रष्ट व्यक्ति को सजा दिलाने में अहम किरदार निभाते हैं। यह वीडियो विश्लेषण उन वीडियो का होगा जिनको कम से कम 5 लाख पाठकों ने देखा होगा और 500 से अधिक कमेंट होंगे।