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एक साल पहले मीडिया ने मरकज के खिलाफ चलाया था अभियान, थाली-ताली बजाने को बताया था उपलब्धि

Janjwar Desk
14 Jun 2021 7:52 AM GMT
एक साल पहले मीडिया ने मरकज के खिलाफ चलाया था अभियान, थाली-ताली बजाने को बताया था उपलब्धि
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(थाली, ताली बजाने पर महिलाओं की टिप्पणियों के आंकड़ो की बात करें तो 35 प्रतिशत महिलाएं इसके समर्थन में थी और 65 प्रतिशत महिलाएं मोदी के इस आह्वान को गलत बता रही थी।)

थाली-ताली बजाने के समर्थन में मात्र 22 प्रतिशत लोग शामिल थे तो इससे रुष्ठ होने वाले लोगों का प्रतिशत 78 था....

हिमांशु जोशी का वीडियो विश्लेषण

जनज्वार। 'जनज्वार' ने हर रविवार एक विशेष श्रंखला 'पत्रकारिता में पहला प्रयोग' ख़बर का दर्शकों की राय के आधार पर विश्लेषण' शुरू की है। यह श्रंखला जनज्वार के फेसबुक पेज पर आने वाले वीडियो की टिप्पणियों पर आधारित होगी। यह भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में पहला प्रयोग है जिसका प्रयोग पत्रकारिता में अब तक लगभग असंभव माने जाने वाले फीडबैक को प्राप्त करने के लिए होगा।

इसका उद्देश्य यह जानना होगा कि समाचारों में दिखाई जा रही इन खबरों के प्रति समाज के लोगों का क्या नज़रिया है, क्या ऐसी खबरों को दिखाए जाने के बाद लोग अपराध कम करते हैं , क्या अपने मन में इतनी नफ़रत पाले लोगों को पत्रकारिता के माध्यम से जागरूक कर सुधारा जा सकता है, क्या वह खबरों के आधार पर किसी चुनाव में अपनी पार्टी चुनते हैं, क्या वह किसी छुपी प्रतिभा को सामने लाने में सहयोग करते हैं, क्या पाठक किसी भ्रष्ट व्यक्ति को सजा दिलाने में अहम किरदार निभाते हैं। यह वीडियो विश्लेषण उन वीडियो का होगा जिनको कम से कम 5 लाख पाठकों ने देखा होगा और 500 से अधिक कमेंट होंगे।

इस श्रंखला पर दूसरा वीडियो विश्लेषण करने के लिए प्रधानमंत्री द्वारा किए गए आह्वान पर शंख, थाली, ताली बजाते दिखाई दे रहे लोगों पर बने वीडियो को चुना गया, जिसने पिछले साल कोरोना फ़ैलाने में मरकज़ से ज्यादा भूमिका निभाई थी पर मुख्यधारा मीडिया जहां मरकज़ में शामिल लोगों के खिलाफ़ एक कैम्पेन चलाता दिखा तो शंख, थाली, ताली बजाने वालों को एक उपलब्धि और उत्सव की तरह दिखा रहा था।

कोरोना की वज़ह से होने वाली लाखों मौतों से अनजान भारतीयों को ऐसा जश्न मनाते देख अभी एक साल बाद यह विचार आता है कि बिना वैज्ञानिक सोच पैदा किए कैसे यह देश कभी विकसित हो पाएगा।

23 मार्च 2020 को फ़ेसबुक पर अपलोड किए गए इस वीडियो को अब तक बीस लाख से ज़्यादा बार देखा जा चुका है जिस पर 27 हज़ार से ज्यादा लोगों की प्रतिक्रियाएं आई हैं, सत्तर हज़ार से ज्यादा बार साझा किए गए इस वीडियो पर 4208 से ज्यादा टिप्पणियां आ चुकी हैं।

शंख, थाली , ताली पर दर्शकों की विचारधारा जानने के लिए वीडियो पर की गई 4208 टिप्पणियों में पहली 400 टिप्पणियों को चुना गया जिसके आधार पर पूरी 4208 टिप्पणियों का एक अनुमान लिया गया।

वीडियो पर की गई पहली टिप्पणी से ही दर्शकों का रुख साफ दिखने लगा जब रणजीत राम इस वीडियो को देश के बाहर नही दिखाना चाहते ताकि देश की बदनामी न हो। थाली , ताली बजाने का विरोध करने वाले लोगों का प्रतिशत 78 था।

थाली ताली बजाने के समर्थन में शामिल मात्र 22 प्रतिशत लोगों में से एक उत्तम कुमार पत्र लिखते हैं कि सबको यह जानना चाहिए कि मोदी ने यह नही कहा कि इससे कोरोना से रिकवर होंगे, उन्होंने कहा इससे कोरोना से लड़ने का हौंसला मिलेगा।

वीडियो पर टिप्पणी करने वाले अधिकतर पुरुष थे, जिनका प्रतिशत 73 था, वहीं मात्र 27 प्रतिशत महिलाओं ने अपनी टिप्पणी दी।

थाली, ताली बजाने पर महिलाओं की टिप्पणियों के आंकड़ो की बात करें तो 35 प्रतिशत महिलाएं इसके समर्थन में थी और 65 प्रतिशत महिलाएं मोदी के इस आह्वान को गलत बता रही थी।

शिल्पा विशे इसका समर्थन करती हुई लिखती हैं कि तुम लोग बस खामियां निकालते रहो, कभी चश्मा सीधा करके देखो।

चांदनी प्रजापति भी समर्थन में लिखती हैं कि डॉक्टर और नर्स को धन्यवाद बोलने के लिए बजाया गया था, इसका गलत मतलब निकाला जा रहा है।

प्रधानमंत्री के आह्वान से रुष्ठ तमन्ना शेख लिखती हैं एक ही उल्लू काफ़ी है हिंदुस्तान को बर्बाद करने के लिए यहां तो हर डाल पर उल्लू बैठा है।

ऐसी ही एक और दर्शक पूनम रमोला लिखती हैं घर के अंदर कहा था ये लोग सभी को ले डूबेंगे।

वीडियो पोस्ट करने का वक्त लगभग वही था जब जमात वाली ख़बर को मीडिया के एक वर्ग द्वारा देश में ऐसे परोसा जा रहा था कि उससे देश भर में साम्प्रदायिक नफ़रत फैल रही थी। हल्द्वानी में मुस्लिम की दुकान हटाए जाने वाली ख़बर हो या अन्य , तब मुस्लिम नाराज़ ही थे और इसका प्रमाण वीडियो में की गई टिप्पणियों को पढ़ने से भी मिलता है, थाली-ताली के विरोध की अधिकतर टिप्पणियां मुस्लिम समुदाय के लोगों की तरफ़ से ही आई हैं।

आरिफ़ इलियास लिखते हैं कि डियर, बिल्कुल सही कहा आपने। यह समय जश्न का नही है भाई।

शाबाद आलम लिखते हैं कि हम ऊपर से नीचे तक मूर्खता में लिपटे हैं, मेडिकल स्टाफ़ बुरी तरह जूझ रही है, उसके पास सुरक्षा के लिए संसाधन नही है, मास्क नही है। थाली, ताली से क्या होगा।

वीडियो विश्लेषण करने पर दो बातें स्पष्ट तौर पर सामने आती हैं।

पहली - समाचार चैनलों पर थाली, शंख और ताली बजाए जाने के जो वीडियो दिखाए जा रहे थे उनसे यह लग रहा था कि प्रधानमंत्री के आह्वान का पूरे देश पर सकारात्मक असर पड़ा और हर किसी ने उनकी बात मानी लेकिन जब हम 'जनज्वार' के पेज़ पर पोस्ट किए गए इस वीडियो पर दर्शकों की टिप्पणियों पर नज़र डालते हैं तो हमें यह पता चलता है कि मीडिया हम पर कितना गहरा असर कर सकता है, हम समाचार चैनलों पर दिखाई जा रही उन खबरों का ही विश्वास करते रहे जिनमेें कहा गया था कि पूरा देश प्रधानमंत्री के इस आह्वान में साथ है।

मिडिया हम पर कुछ भी थोप सकता है। समाज में अगर किसी बात का विरोध हो भी रहा हो तो अगर मीडिया चाहे तो हमें उसकी वास्तविक तस्वीर न दिखा कर दूसरी तस्वीर दिखा सकता है, जिस पर हम भी आंख मूंद कर भरोसा कर लेते हैं।

दूसरी - तब्लीगी जमात पर बनाए गए माहौल का देेश पर बहुत गहरा असर पड़ा। कोई भी ख़बर दिखाने से पहले मीडिया को यह सोच लेना चाहिए कि समाज पर इसका क्या असर पड़ेगा।

कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने में मिली नाकामी को छुपाने के लिए मीडिया के एक वर्ग द्वारा जमातियों को खलनायक बना दिया गया और इससे धर्म विशेष के मन में सरकार के खिलाफ़ रोष भर गया था। मीडिया द्वारा ऐसा ही कोई कार्य देश में साम्प्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के लिए किया जाए तो वह उसके अपने लोकतांत्रिक कर्तव्यों को पूरा करने जैसा होगा।

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