Begin typing your search above and press return to search.
वीडियो

Uttarakhand Election 2022 : दलित MLA यशपाल आर्य के क्षेत्र में दलितों का बुरा हाल, कहा- 'नेता केवल वोट मांगने आते हैं'

Janjwar Desk
9 Jan 2022 3:04 AM GMT
x
Uttarakhand News: अनुसूचित जाति की सुषमा देवी की छह बेटियां हैं, वे बताती हैं कि 'सरकार सिर्फ बातें करते हैं। नेता केवल वोट मांगने आते हैं, जब वे अपने पद जीत जाते हैं, तो हमें उनके पीछे चक्कर काटने पड़ते हैं...

Uttarakhand Election 2022 : चुनाव से पहले राजनीतिक पार्टियों द्वारा किए गए चुनावी वादे चुनाव के साथ ही खत्म हो जाते हैं। चुनाव जीत जाने के बाद क्षेत्र के प्रतिनिधियों को न तो जनता के समस्या से मतलब होता है और न ही उन समस्याओं के समाधान से। भाजपा शासित उत्तराखंड राज्य भी इससे अछूता नहीं है। प्रदेश के उधमसिंह नगर के बासुर विधानसभा क्षेत्र में दलित वर्ग का विकास से दूर दूर तक कोई नाता नहीं है। दलित और पिछड़े लोगों की शिकायत है कि बड़े ही उम्मीदों के साथ उन्होंने अपने दलित वर्ग के नेता यशपाल आर्य को विधायक चुना था। मगर, चुनाव जीत जाने के बाद विकास की बात तो दूर, विधायक यशपाल आर्य एक बार दर्शन देने भी नहीं आए।

जनज्वार ने इन दलित वर्ग के लोगों के बीच जाकर इनसे इनकी समस्याओं के बारे में बात की। इसी क्षेत्र के चतर सिंह का परिवार रहता है। चतर सिंह मजदूरी करके अपने परिवार संग जीवन यापन करते हैं। चतर सिंहर के परिवार में पति पत्नी के अलावा 5 बच्चे हैं। चतर सिंहर बताते हैं कि लेबर मजदूर करके तीन सौ रुपये मिलते हैं। कभी काम मिलता है, तो कभी बिना काम के ही रहना पड़ता है। वे और उनकी पत्नी बिमार भी रहते हैं। चतर सिंह की पत्नी ने बताया कि 'सरकार की तरफ से कोई सुविधा नहीं मिलती। पांच बच्चियां है। बेटा अभी छोटा है। परिवार में इतनी आमदनी नहीं है कि बच्चों को स्कूल भेजा जाए। पैसे की किल्लत ने बच्चों की स्कूल भी छुड़वा दी।' परिवार ने बताया कि 'बेटियों की शादी के लिए लड़कों द्वारा दहेज की मांग होती है। तीन सौ रुपये रोज के कमाने वाला परिवार दहेज की मांग कहां से पूरी करेगा।'

चतर सिंह की पत्नी ने बताया कि 'विधायक यशपाल आर्य से भी मुलाकात हुई थी। चार पांच साल पहले कागल पर नाम लिखकर ले गए थे, लेकिन उसके बावजूद किसी तरह की सहायता नहीं मिली।' महिला ने बताया कि 'वोट लेने के समय लोग कहते हैं कि जीतने के बाद ये काम करेंगे, वो काम करेंगे। मगर, जीत जाने के बाद कुछ सुविधा नहीं मिलती।'

वहीं, बासुर विधानसभा के नवगांव में सुषमा देवी का परिवार रहता है। अनुसूचित जाति से ताल्लकु रखने वाली सुषमा देवी की छह बेटिया हैं। करीब तीन साल पहले इनके पति का देहांत हो गया, जिसके बाद ये दर दर की ठोकरें खाकर अपनी बच्चियों का लालन पोषण कर रही हैं। सुषमा देवी ने बताया कि कुछ समय पहले तक वे एक स्कूल में बतौर रसोइयां काम करती थी, जिससे परिवार का पेट पल जाता था। मगर, स्कूल वालों ने यह कहकर नौकरी से निकाल दिया कि अब बच्चे कम हैं, तो रसोइया कि जरूरत नहीं है। सुषमा बताती हैं कि स्कूल से नौकरी छूट जाने के बाद वे मजदूरी का काम करने के लिए मजबूर हो गईं। एक कमरें के घर में छह बेटियों के साथ रहने वाली सुषमा देवी के घर में शौचायल तक की व्यवस्था नहीं है। वहीं, घर भी बारिश के दिनों में टपकता हैं, जिससे उसमे रहना मुश्किल हो जाता है।

पति के मौत के बाद सुषमा देवी ने अपनी बेटियों की पढ़ाई जारी रखवाई। उनकी छह बेटियों में कोई एमए और बीए में पढ़ती हैं , तो कोई 9वीं और 10वीं की छात्रा हैं। सुषमा की बेटी बताती है कि 'पिता के मौत के बाद मां ने कभी किसी तरह की कमी महसूस होने नहीं दी। हमें पढ़ाई लिखाई की पूरी आजादी मिली। वे मेहनत करती हैं। हमें कोचिंग कराती हैं और स्कूल कॉलेज भेजती है।' सुषमा देवी की बेटियां बताती हैं कि 'सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती। सभी नेता सिर्फ बातें करते हैं। नेता केवल वोट मांगने आते हैं। जब वे अपने पद जीत जाते हैं, तो हमें उनके पीछे चक्कर काटने पड़ते हैं।' वहीं, इन बच्चियों को पढ़ाई के लिए सरकार की तरफ से किसी भी तरह की कोई मदद भी नहीं मिलती। सालों से इन छात्राओं को स्कॉलरशिप भी नहीं दी गई हैं।

(जनता की पत्रकारिता करते हुए जनज्वार लगातार निष्पक्ष और निर्भीक रह सका है तो इसका सारा श्रेय जनज्वार के पाठकों और दर्शकों को ही जाता है। हम उन मुद्दों की पड़ताल करते हैं जिनसे मुख्यधारा का मीडिया अक्सर मुँह चुराता दिखाई देता है। हम उन कहानियों को पाठक के सामने ले कर आते हैं जिन्हें खोजने और प्रस्तुत करने में समय लगाना पड़ता है, संसाधन जुटाने पड़ते हैं और साहस दिखाना पड़ता है क्योंकि तथ्यों से अपने पाठकों और व्यापक समाज को रु-ब-रु कराने के लिए हम कटिबद्ध हैं।

हमारे द्वारा उद्घाटित रिपोर्ट्स और कहानियाँ अक्सर बदलाव का सबब बनती रही है। साथ ही सरकार और सरकारी अधिकारियों को मजबूर करती रही हैं कि वे नागरिकों को उन सभी चीजों और सेवाओं को मुहैया करवाएं जिनकी उन्हें दरकार है। लाजिमी है कि इस तरह की जन-पत्रकारिता को जारी रखने के लिए हमें लगातार आपके मूल्यवान समर्थन और सहयोग की आवश्यकता है।

सहयोग राशि के रूप में आपके द्वारा बढ़ाया गया हर हाथ जनज्वार को अधिक साहस और वित्तीय सामर्थ्य देगा जिसका सीधा परिणाम यह होगा कि आपकी और आपके आस-पास रहने वाले लोगों की ज़िंदगी को प्रभावित करने वाली हर ख़बर और रिपोर्ट को सामने लाने में जनज्वार कभी पीछे नहीं रहेगा। इसलिए आगे आएं और अपना सहयोग दें। सहयोग राशि : 100 रुपये । 500 रुपये। 1000 रुपये।)

Next Story

विविध