चुनाव से 6 महीने पहले तुर्की में पत्रकारों और विपक्षी नेताओं को सरकार डाल रही जेलों में, भ्रामक खबरें फैलाने का लग रहा आरोप
चुनाव से 6 महीने पहले तुर्की में पत्रकारों और विपक्षी नेताओं को सरकार डाल रही जेलों में (इंसेट में सेना के जवानों द्वारा 14 साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न की खबर उजागर करने वाले पत्रकार सिनान को डाला जेल में)
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
6 months prior to elections, journalists and opposition leaders are being jailed in Turkey. Human Rights groups say, rulers do not want justice and democracy in the country. तुर्की में 15 दिसम्बर को दक्षिण पूर्वी क्षेत्र में कुर्द बहुल शहर बित्लिस के न्यायालय ने एक पत्रकार, सिनान अंगुल, को भ्रामक खबरें फैलाने का आरोपी माना है। अभी इस मामले पर फैसला आना बाकी है, पर इस मामले में उन्हें तीन वर्ष के कारावास की सजा हो सकती है।
दो महीने पहले ही तुर्की की संसद ने भ्रामक और झूठी खबरों के विरुद्ध एक क़ानून लागू किया है। इसे सत्ता ने जनता को झूठी खबरों से बचाने वाला कदम बताया, पर पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता इस क़ानून को अभिव्यक्ति की आजादी का हनन मानते हैं और इनके अनुसार इस क़ानून का सत्ता सही खबरों को दबाने के लिए करेगी।
सिनान अंगुल ने ट्विटर पर एक पोस्ट किया था, जिसमें बताया था कि किस तरह एक 14 वर्षीय लड़की का यौन उत्पीड़न पुलिस और सेना के जवानों ने किया। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि सिनान अंगुल द्वारा किया गया ट्वीट समाज में भय और असुरक्षा की भावना उत्पन्न करेगा, और इससे देश की शांति खतरे में पड़ सकती है।
दरअसल पूरी दुनिया में अब एक चलन सा हो गया है कि सत्ता की खामियों को उजागर करने वाला हर समाचार सत्ता और पुलिस द्वारा भ्रामक करार दिया जाता है, और न्यायालय भी वही करती हैं जैसा सत्ता चाहती है। हमारे देश में याद कीजिये कोविड 19 का दौर जब हरेक खबर और चित्र जो सत्ता की असफलता दर्शाती थी, झूठी और भ्रामक करार दी जाती थी और इसे पोस्ट करने वालों को जेल में डाला जाता था। हाथरस सामूहिक बलात्कार काण्ड के समय भी सत्ता और पुलिस ने यही खेल खेला था।
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तय्यिप एरदोगन पूरी तरह से निरंकुश शासक हैं, और सत्ता में बने रहने के लिए विपक्ष को घेरने, मानवाधिकार हनन और अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने का सहारा लेते हैं। अगले 6 महीनों के भीतर वहां चुनाव होने हैं, इसलिए पिछले कुछ महीनों से वे सेना, पुलिस और न्यायालय की मदद से प्रमुख विपक्षी नेताओं को सलाखों के पीछे भेज रहे हैं। तुर्की के सबसे बड़े शहर, इस्तांबुल को प्रमुख विपक्षी दल, रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी का गढ़ माना जाता है।
वर्ष 2019 से इस्तांबुल के मेयर, एक्रेम इमामोग्लू, इसी दल के हैं और राष्ट्रपति एरदोगन को गंभीर चुनौती देने में सक्षम हैं। 14 दिसम्बर को एक न्यायालय ने उन्हें 2 वर्ष 7 महीने और 15 दिनों की कैद और राजनीति से बाहर रहने का फैसला दिया है। यह सजा उन्हें तीन वर्ष पहले की एक प्रेस रिलीज़ के लिए सुनाई गयी है, जिसमें उन्होंने देश के चुनाव आयोग के सदस्यों को "बेवकूफ" करार दिया था। इसी वर्ष के शुरू में रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी के इस्तांबुल अध्यक्ष कैनन काफ्तान्क्रोग्लू को एक न्यायालय ने तुर्की गणराज्य और राष्ट्रपति एरदोगन के अपमान का आरोप लगाकर 5 वर्ष की कैद और राजनीति से बाहर रहने की सजा सुनाई है।
अगले वर्ष जनवरी में सर्वोच्च न्यायालय में दूसरी प्रमुख विपक्षी पार्टी, कुर्दिश पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, को पूरे तरह राजनीति से प्रतिबंधित करने की याचिका पर सुनवाई होनी है। मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार सत्ता और न्यायपालिका की यह मिलीभगत तुर्की की न्याय व्यवस्था को कलंकित कर रही है और सत्ता देश में प्रजातंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त कर रही है। इस्तांबुल के मेयर, एक्रेम इमामोग्लू ने न्यायालय के फैसले के बाद कहा है कि हम एक ऐसे देश में हैं जहाँ से क़ानून और न्याय पूरी तरह से समाप्त कर दिया गया है।
तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तय्यिप एर्दोगन ने अपने देश को वर्ष 2021 में एक ऐसे समझौते से अलग कर लिया है जो महिलाओं की सुरक्षा से सम्बंधित था। यह समझौता कौंसिल ऑफ़ यूरोप एकॉर्ड के नाम से जान जाता है, इसे इस्तांबुल समझौता भी कहा जाता है। इसमें महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने और लैंगिक समानता की बात कही गयी है। तुर्की ने इस समझौते को वर्ष 2011 को स्वीकार किया था, पर अब जबकि महिलाओं की हिंसा टर्की में सामान्य घटना हो गयी है, यह समझौते से अलग हो गया है।
वहां के मानवाधिकार कार्यकर्ता बताते हैं कि तुर्की में घरेलू हिंसा, यौन हिंसा और महिलाओं की हत्या के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और सरकार इसके प्रति पूरी तरह से उदासीन है। तुर्की एक ऐसा देश है, जहां महिलाओं की ह्त्या के आंकड़े सरकारी तौर पर रखे ही नहीं जाते, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार टर्की में 38 प्रतिशत से अधिक महिलायें घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं, जबकि शेष यूरोप में यह औसत 25 प्रतिशत है।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार समय-समय पर राष्ट्रपति महिलाओं की हत्या की भर्त्सना तो करते हैं, पर इसे रोकने के लिए कोई प्रभावी कदम नहीं उठाते। तुर्की, इस समझौते से अलग होने वाला पहला यूरोपीय देश नहीं है, बल्कि इससे पहले पोलैंड ने यह कदम उठाया था।
राष्ट्रपति के जनता के प्रति संवेदनहीनता का एक उदाहरण इसी वर्ष 22 अक्टूबर को देखने को मिला, जब एक सरकारी खान में विस्फोट के बाद 41 मजदूरों की मौत हो गयी और दूसरे मजदूर घंटों खान ने फंसे रहे। इस खान दुर्घटना में राहत और बचाव का जायजा लेने पहुंचे राष्ट्रपति की पहली प्रतिक्रिया थी, यह भाग्य का खेल है। इससे पहले भी वर्ष 2014 में तुर्की की सबसे भयानक खान दुर्घटना, जिसमें 301 मजदूरों की मृत्यु हो गयी थे, के दौरे के समय उन्होंने कहा था – ऐसी घटनाएं सामान्य हैं, होती रहती हैं।
तुर्की की जो स्थिति है और चुनावों को जीतने की राष्ट्रपति एर्दोगन में जो छटपटाहट दिख रही है, वह भारत समेत पूरे विश्व में दिखाई दे रही है। विपक्ष को जांच एजेंसियों, न्यायालय और पुलिस की मदद से कुचलना, महिलाओं पर बढ़ाते अत्याचार पर खामोश रहना, मीडिया पर पूरा नियंत्रण, अभिव्यक्ति की आजादी का हनन और हरेक दुर्घटना को ईश्वर की कृपा साबित करने का कारनामा तो हम लोग भी वर्षों से झेल रहे हैं।